दही के पैकेट पर ‘दही’ लिखने के बाद तमिलनाडु और कर्नाटक जैसे गैर हिंदी भाषी राज्यों के नेताओं द्वारा किए जा रहे विरोध से अब भारत का खाद्य नियामक स्पष्टीकरण देने के लिए मजूबर हो गया।
भारतीय खाद्य संरक्षा एवं मानक प्राधिकरण (एफएसएसएआई) के एक अधिकारी ने गुरुवार को बिज़नेस स्टैंडर्ड को बताया कि देश भर में पैकेट पर दही का इस्तेमाल करने के निर्देश को स्पष्ट कर दिया गया है। अब दुग्ध सहकारी समितियां और दही बनाने वाली कंपनियां पैकेट पर दही के अलावा मोसरू, जामुत दौद, तायिर और पेरुगु आदि नाम लिख सकती हैं।
इससे पहले तमिलनाडु के मुख्यमंत्री एमके स्टालिन ने इसे गैर हिंदी राज्यों पर हिंदी थोपने का प्रयास बताया था। जिसके बाद यह स्पष्टीकरण आया है।
एफएसएसआई ने इस साल 11 जनवरी को एक अधिसूचना जारी कर ‘कर्ड’ शब्द हटाने के लिए कहा था।
गुरुवार को एक बयान में एफएसएसएआई ने कहा, ‘कर्ड शब्द हटाने को लेकर हाल में कई प्रतिक्रियाएं सामने आईं। अब यह तय किया गया है कि एफबीओ लेबल पर कर्ड के साथ अन्य क्षेत्रीय नाम भी लिख सकते हैं।’
नियामक के अनुसार, ‘खाद्य संरक्षा और मानक में स्पष्ट रूप से दिशानिर्देश गया है कि डेरी शब्द का इस्तेमाल किन उत्पादों के लिए किया जाएगा और किन के लिए नहीं किया जाएगा।
इसमे कहा गया है, ‘अगर कर्ड के साथ दही भी लिखा गया है तो इसका प्रयोग गैर डेरी उत्पादों के लिए प्रतिबंधित रहेगा।’
एक अधिकारी ने कहा कि इसलिए अधिसूचना पहले जारी की गई थी जिसे अब स्पष्ट कर दिया गया है और क्षेत्रीय नामों के उपयोग की अनुमति दी गई है।
दुग्ध उत्पादों में घी और मक्खन के साथ दही का भी काफी इस्तेमाल किया जाता है।
इंटरनैशनल मार्केट एनालिसिस रिसर्च ऐंड कंसल्टिंग ग्रुप की एक रिपोर्ट के अनुसार, भारत में दही उद्योग का आकार 2021 में लगभग 1.18 लाख करोड़ रुपये था और 2027 तक यह 2.78 लाख करोड़ रुपये तक पहुंच सकता है।
तमिलनाडु के मुख्यमंत्री एमके स्टालिन ने बुधवार को कहा था कि एफएसएसएआई को स्थानीय भावनाओं का भी सम्मान करना चाहिए। सिर्फ स्टालिन ही नहीं बल्कि कर्नाटक भाजपा के अध्यक्ष के अन्नामलाई ने भी कहा कि था कि यह निर्देश क्षेत्रीय भाषाओं को बढ़ावा देने की केंद्र सरकार की नीति के अनुरूप नहीं है।
अन्नामलाई ने ट्वीट कर कहा था, ‘राज्य की सहकारी समितियों द्वारा उत्पादित दही पाउच में दही शब्द के उपयोग के लिए एफएसएसएआई की अधिसूचना क्षेत्रीय भाषाओं को बढ़ावा देने के लिए हमारे प्रधानमंत्री मोदी के की नीति के अनुरूप नहीं है। इसे तुरंत वापस लेना चाहिए।’
आविन ब्रांड से दूध बेचने वाले तमिलनाडु सहकारी दुग्ध उत्पादक महासंघ के वरिष्ठ अधिकारी और मंत्री एसएम नासर ने कहा कि वे राज्य दही के लिए तमिल शब्द ‘तायिर’ को ही पसंद करते हैं। इसलिए वे भी यही नाम रखने की कवायद करेंगे।
चुनावी राज्य कर्नाटक में नामकरण में हुए अचानक बदलाव को लेकर सत्तारूढ़ भाजपा के नेताओं की ओर से भी विरोध की सुगबुगाहट दिख रही थी।
नंदिनी नाम से कर्नाटक में दूध, दही, घी और मिठाइयां बेचने वाले कर्नाटक मिल्क फेडरेशन पर भी नियम लागू होने पर जेडीएस नेता और प्रदेश के पूर्व मुख्यमंत्री को शक था कि कहीं नंदिनी के उत्पादों को हाईजैक करने की कोशिश तो नहीं की जा रही है।
जेडीएस नेता ने ट्वीट कर इसे कन्नड़ों पर हिंदी थोपने जैसा बताया।
उन्होंने कहा, ‘यह जानते हुए भी कि कन्नड़ों को हिंदी थोपना पसंद नहीं है। एफएसएसएआई का यह निर्देश कि केएमएफ अपने ब्रांड नंदिनी के कर्ड पैकेट पर दही लिखे, यह गलत है।’
उन्होंने कहा कि यह जानते हुए भी कि नंदिनी कन्नड़ों की संपत्ति है, पहचान और लाइफलाइन है हिंदी थोपने का अहंकार दिख रहा है। उन्होंने कहा कि केंद्रीय गृह एवं सहकारिता मंत्री अमित शाह ने अपने मांड्या दौरे के दौरान कहा था कि नंदिनी का गुजरात की अमूल के साथ विलय किया जाएगा।
ऐसा लगता है हर तरफ से दबाव पड़ने पर एफएसएसएआई ने समय रहते अपना स्पष्टीकरण दे दिया है।