भारत के तीन सर्वाधिक जनसंख्या वाले राज्यों उत्तर प्रदेश, बिहार और पश्चिम बंगाल में लॉजिस्टिक्स बेहतर होने से देश की अर्थव्यवस्था में तेज वृद्धि होने का अनुमान है। इसका सबसे अच्छा उदाहरण दिल्ली के इंदिरा गांधी अंतरराष्ट्रीय हवाई अड्डे से मात्र 88 किलोमीटर की दूरी पर जेवर (उत्तर प्रदेश) में नोएडा इंटरनैशनल हवाई अड्डा है, जिसका इसी गर्मी में उद्घाटन होना है।
गंगा के मैदानों में शीघ्र ही कई अन्य हवाई अड्डे भी तैयार हो रहे हैं। इसके बाद इस पूरे क्षेत्र में हवाई मार्ग से आवाजाही काफी आसान हो जाएगी। हालांकि यह भी सच है कि यह सभी कुछ अनियोजित ढंग से हो रहा है। यह ऐसा क्षेत्र है जहां हवाई अड्डे और मेट्रो की सेवाओं का विस्तार हो रहा है, लेकिन देश के सर्वाधिक घनी आबादी वाले इस इलाके की क्षमता का लाभ उठाने में रेलवे बहुत पीछे है। यहां सर्वाधिक घनी आबादी वाले तीनों राज्यों का कुल क्षेत्रफल 4.24 लाख वर्ग किलोमीटर है और इनमें अनियमित राज्यों व गैर कृषि कार्यों की 75 प्रतिशत से अधिक पुरुष आबादी वाले कस्बों (सेन्स टाउन) की भरमार है। इन तीन राज्यों का क्षेत्रफल दक्षिण भारत के चार राज्यों के बराबर है।
नोएडा हवाई अड्डे के बाद पश्चिम बंगाल में पहले से ही परिचालित अंडाल हवाई अड्डा भी अवसरों की उड़ान भर सकता है। जेएसडब्ल्यू समूह की योजना अंडाल हवाई अड्डे को विकसित करने की है। इन राज्यों में सबसे पिछड़ा बिहार है, पर इस साल के अंत में यहां भी पटना हवाई अड्डे का जीर्णोद्धार होगा। इसके अलावा कई अन्य हवाई अड्डे भी सिलसिलेवार ढंग से इस क्षेत्र के यातायात को गति देने के लिए प्रस्तावित हैं। नए हवाई अड्डों के अस्तित्व में आने से इन तीनों राज्यों का आर्थिक भूगोल भी बदल जाएगा।
इन परियोजनाओं में सबसे बड़ा नोएडा इंटरनैशनल एयरपोर्ट है। इस परियोजना के ठेकेदार टाटा प्रोजेक्ट्स के अनुसार ज्यूरिख एयरपोर्ट इंटरनैशनल ने इस हवाई अड्डे को विकसित किया है। नोएडा इंटरनैशनल हवाई अड्डे की सालाना यात्री क्षमता 1.2 करोड़ होगी। बाद में इसकी क्षमता सालाना 7 करोड़ यात्री तक बढ़ाई जाएगी। नोएडा इंटरनैशनल हवाई अड्डे के पहले चरण का संचालन नवंबर 2024 से प्रस्तावित था, फिर भी इसने ज्यादा इंतजार नहीं कराया और बहुत कम देरी के साथ तैयार कर लिया गया। पश्चिम बंगाल के अंडाल हवाई अड्डे से रोजाना 16 उड़ानें संचालित हो रही हैं। यह हवाई अड्डा कोलकाता से करीब 80 किलोमीटर दूर है। पश्चिम बंगाल के अत्यधिक घनी आबादी वाले इस दक्षिण क्षेत्र के लिए यह हवाई अड्डा वरदान साबित हुआ है। हाल में जेएसडब्ल्यू के चेयरमैन सज्जन जिंदल ने यह कहकर सुर्खियां बटोरीं कि वह इस हवाई अड्डे में हिस्सेदारी खरीदेंगे। जिंदल ने कोलकाता में कहा था, ‘यह उनका हवाई अड्डा कारोबार में पहला कदम होगा।’
बिज़नेस स्टैंडर्ड की रिपोर्ट के अनुसार जेएसडब्ल्यू समूह की कंपनी जेएसडब्ल्यू इन्फ्रास्ट्रक्चर के निवेश का अर्थ यह है कि वह इस कंपनी का परिचालन करने वाली कंपनी बंगाल एरोट्रोपोलिस प्रोजेक्ट्स लिमिटेड (बीएपीएल) के निजी निवेशकों से हिस्सेदारी खरीदेगा। बीएपीएल में पश्चिम बंगाल सरकार की 26 प्रतिशत और सिंगापुर के चांगी हवाई अड्डे की 33 प्रतिशत हिस्सेदारी है। इस राज्य ने हवाई अड्डे के अन्य विकल्पों को भी तलाशना शुरू कर दिया है। इस क्रम में दार्जिलिंग और गंगटोक दोनों को जोड़ने वाले बागडोगरा से जहाजों का परिचालन बढ़ा दिया गया है।
बिहार में पटना के अलावा दो पूरी तरह विकसित हवाई अड्डे गया और दरभंगा में हैं। इन दोनों हवाई अड्डाें से बौद्ध धार्मिक स्थलों के लिए अंतरराष्ट्रीय उड़ानें बैंकॉक और यांगून के लिए उपलब्ध हैं। इन्होंने प्रवासी आबादी की यात्रा के समय की भी काफी बचत की है। पूर्णिया क्षेत्र में प्रवासियों की आवाजाही अधिक है। अब इन लोगों को पांच घंटे का सफर तय कर पटना हवाई अड्डे से उड़ान नहीं पकड़नी पड़ती। वे दरभंगा से हवाई जहाज में यात्रा शुरू करते हैं। दिल्ली से अहमदाबाद के बीच आम दिनों में टिकट का किराया 5,000 रुपये है लेकिन यह किराया रेलगाड़ी एसी स्लीपर श्रेणी (1,100 रुपये) से कहीं अधिक है। बहरहाल रेलवे से सफर करने में अधिक समय लगता है और टिकट भी कई हफ्ते बाद का मिलता है।
अंडाल हवाई अड्डे के करीब खनिज संपदा संपन्न भूमि है। इसके करीब कोयले की गहरी खानों की पट्टी है। इसके दूसरी तरफ बड़े शहर हैं जहां सघन आबादी है और यह अपने पूर्व में स्थित कोलकाता या पश्चिम में स्थित दिल्ली आने जाने के लिए रेल संपर्क पर निर्भर है। इस क्षेत्र में अपार संभावनाएं हैं लेकिन पुराने जोखिम बदस्तूर जारी हैं। इससे यह परियोजना काफी कारगर साबित हो सकती है। जिंदल ने पहले भी चेतावनी दी थी कि भूमि का मुद्दा चुनौतीपूर्ण हो सकता है। वैसे, उन्होंने कहा, ‘हम सभी मुद्दों का हल चाहते हैं।’ पश्चिम बंगाल में सैन्य हवाई पट्टियां भी हैं और इनको वाणिज्यिक रूप से व्यवहार्य बनाने के लिए भूमि उपलब्ध नहीं है। लिहाजा इन्हें बंद कर दिया गया है। नदी के करीब पटना हवाई अड्डे का विस्तार भी भूमि संबंधित मुद्दों के कारण लंबित है। इसका संचालन करने वाले भारतीय हवाई अड्डा प्राधिकरण भी इस निष्कर्ष पर पहुंचा है कि वह मात्र दो किलोमीटर लंबी इस हवाई पट्टी का विस्तार नहीं कर सकता है। इसके बावजूद हवाई अड्डे पर जहाजों को उतरने या उड़ान भरने के लिए समानांतर टैक्सी ट्रैक की सुविधा दी गई है।
सरकारी स्वामित्व वाली इस कंपनी ने पटना हवाई अड्डे के टर्मिनल का जीर्णोद्धार कर दिया है और यह एक तरह से बिल्कुल नया सा बन गया है। इस हवाई अड्डे की सालाना यात्री क्षमता 30 लाख से बढ़कर 1 करोड़ हो गई है। इसका उद्घाटन इस साल जनवरी में होना था लेकिन फिर इसे अप्रैल कर दिया गया। राज्य के लोगों की लंबे समय से मांग रही है कि अंतरराष्ट्रीय उड़ानें शुरू की जाएं। अब उनकी यह मांग पूरी होने की उम्मीद है।
बीएपीएल और पटना दोनों को बड़े कार्गो संचालन के लिए स्थान मुहैया कराने की जरूरत होगी। इसका कारण यह है कि क्षेत्र के शहरों में कम लॉजिस्टिक्स लागत की मांग तेजी से बढ़ रही है। नैशनल काउंसिल ऑफ एप्लाइड इकनॉमिक रिसर्च (एनसीएईआर) ने दिसंबर 2024 में ‘भारत में लॉजिस्टिक्स लागत के आकलन के मसौदे’ शीर्षक से अध्ययन किया है। इसमें कहा गया है, ‘लॉजिस्टिक्स लागत का देश के विनिर्माण क्षेत्र, निर्यात प्रतिस्पर्धात्मकता और वैश्विक स्थिति पर प्रभाव पड़ता है।’ इस लागत को कम करने का एक तरीका सहजता से भूमि खंड उपलब्ध कराना है। वाणिज्य एवं उद्योग मंत्रालय की लॉजिस्टिक्स ईज एक्रास डिफ्रंट स्टेट्स 2024 के नवीनतम संस्करण में बिहार और पश्चिम बंगाल को प्रदर्शन और लॉजिस्टिक्स के मामले में क्रमश: दूसरे व तीसरे पायदान पर रखा गया है। सभी तरफ जमीन से घिरे हुए राज्यों में उत्तर प्रदेश के साथ हरियाणा, तेलंगाना व उत्तराखंड ने भी अच्छा प्रदर्शन किया है। लेकिन बेहतर यातायात संपर्क के लिए अभी इन राज्यों को लंबा सफर तय करना है।
हवाई अड्डों के वाणिज्यिक रूप से व्यवहार्य बनने के लिए लॉजिस्टिक्स संचालन की जरूरत होती है और उसके लिए जमीन की आवश्यकता होती है। बिहार और उत्तर प्रदेश में दो-दो हवाई कार्गो टर्मिनल हैं जबकि पश्चिम बंगाल में एक हवाई कार्गो टर्मिनल है।
क्रिसिल के आंकड़ों से पता चलता है कि सरकार ने देश में क्षेत्रीय संपर्क को मजबूत करने के लिए योजना ‘उड़े देश का आम नागरिक’ के तहत 84 हवाई अड्डों और 579 मार्गों को चालू कर दिया था। इससे हवाई यात्रा करने वाले आम लोगों की संख्या में काफी वृद्धि हुई है। क्रिसिल ने कहा, ‘अभी इसका प्रभाव कम है, इन हवाई अड्डों का घरेलू हवाई यातायात में लगभग दो प्रतिशत योगदान है। ये हवाई मार्ग महत्त्वपूर्ण हैं क्योंकि इनसे महानगरों के हवाई अड्डे तक यात्री आते हैं।’
कार्गो हब के लिए भी परिदृश्य में धीरे-धीरे बदलाव की उम्मीद है। पटना और अयोध्या में हाल ही में शुरू किए गए एयरपोर्ट मुख्य रूप से यात्रियों के लिए हैं। दरअसल, जेवर भारत का सबसे बड़ा कार्गो हब बनने की उम्मीद है। इसका कारण यह है कि उत्तर प्रदेश स्वयं को विनिर्माण केंद्र के रूप में आगे बढ़ा रहा है। बिहार के बिहटा में भी कार्गो पर ध्यान केंद्रित किए जाने की उम्मीद है। बिहार को बिहटा कार्गो से खाद्य प्रसंस्करण क्षेत्र में अपनी क्षमता को साकार करने का मौका मिलेगा। वित्त वर्ष 2026 के बजट में केंद्रीय वित्त मंत्री निर्मला सीतारमण ने घोषणा की थी कि बिहार में एक खाद्य प्रसंस्करण संस्थान स्थापित किया जाएगा। अंडाल का महत्त्व भी कार्गो हब के रूप में होगा। कार्गो व्यवसाय के विस्तार से अहम बाधा दूर होने की उम्मीद है। अभी भारतीय एयर कार्गो का लगभग 90 प्रतिशत केवल छह हवाई अड्डे संचालित करते हैं और ये सभी महानगरों में हैं।
ट्रेड ऐंड ट्रांसपोर्ट ग्रुप की लॉजिस्टिक्स कंसल्टिंग फर्म ‘ट्रेड डेटा सर्विसेज’ की रिपोर्ट ‘एयर कार्गो आउटलुक 2025-2029’ में अनुमान जताया गया है कि भारत का इस दशक के अंत तक एयर कार्गो लगभग 60 लाख टन (एमटी) तक पहुंच जाएगा जबकि यह वर्ष 2025 में लगभग 37 लाख टन से अधिक है।
हालांकि, डेटा ई-कॉमर्स के विकास के अनुमानों पर आधारित है। इसमें उत्तर भारतीय मैदानों के हवाई अड्डों का प्रमुख व्यवसाय शामिल नहीं किया गया है। दुबई स्थित सोलिटएयर जैसी कार्गो कंपनियां भारतीय कार्गो बाजार में प्रवेश करने की योजना बना रही हैं और इस क्रम में दिल्ली, मुंबई और अमदाबाद पर ध्यान केंद्रित कर रही हैं। बहरहाल एनसीएईआर की पिछले साल की रिपोर्ट में कहा गया है, ‘भारत में लॉजिस्टिक्स लागत असंगत रूप से अधिक मानी जाती है, जो विनिर्माण विकास और आर्थिक प्रतिस्पर्धात्मकता को प्रभावित करती है।’ इन आंकड़ों को प्रभावी रूप से बदलने में गंगा के मैदानों के श्रृंखलाबद्ध हवाई अड्डे महत्त्वपूर्ण योगदान दे सकते हैं।