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  वित्त-बीमा  फायदे में बदलें नुकसान को
वित्त-बीमा

फायदे में बदलें नुकसान को

बीएस संवाददाता बीएस संवाददाता —September 1, 2008 12:01 AM IST0
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मुनाफा और नुकसान निवेश के साथ खुद ब खुद जुड़ा रहता है। अगर आप कर प्रबंधन में माहिर हैं तो भले ही आपको  नुकसान ही क्यों न उठाना पड़ा हो तब भी आप उसका फायदा उठा सकते हैं।


अगर घाटे वाले शेयर आपके पास एक साल से ज्यादा समय से हैं तो उस घाटे की भरपाई किसी भी दूसरी कमाई से करना संभव नहीं है। लेकिन जब घाटा हो रहा हो तो दूसरे वित्तीय लेनदेन से कर के बोझ को कम जरूर किया जा सकता है।

संपत्ति को बेचने पर होनेवाले घाटे, घटते वेतन और मुनाफे में गिरावट- इन सब के लिए करदाताओं के लिए एक आसान सा नियम है, वह है घाटे की भरपाई अपने लाभ से करें। आप घाटे को आठ साल तक आगे ले जा सकते हैं। यहां तक कि शेयरों की कीमतों में गिरावट या म्युचुअल फंड के कुल परिसंपत्ति की कीमत में गिरावट को चार सालों तक आगे ले जाया जा सकता है।

आयकर जमा करते वक्त आयकर फॉर्म में घाटे को दिखाने के लिए सूचियां बनी होती हैं और इन सूचियों में कैरी फार्वर्ड नुकसान को दिखाने का भी कॉलम होता है। आयकर विभाग दिखाए गए कैरी फार्वर्ड घाटे का अध्ययन करता है और उसके बाद उस साल में दिए जाने वाले आयकर से उसे समायोजित किया जाता है। इसके अलावा यहां कुछ और तरीकेहैं जिसके द्वारा आप घाटे के बावजूद मुनाफे में रह सकते हैं।

मकान

सबसे पहले घाटे की बात लें, अगर आपने इस साल अपना घर नुकसान के साथ बेचा है तो आने वाले समय में आपको जो पूंजीगत लाभ होता है उसके साथ आप इस नुकसान को समायोजित कर सकते हैं। इसकी वजह है- अगर आप इसे अगले वित्तीय वर्ष में जारी रखना चाहते हैं तो आपको इसे अपने पूंजीगत लाभ के खिलाफ समायोजित करना होगा।

इसके अलावा स्वयं खरीदी गई संपत्ति पर भी घाटा होने की गुंजाइश होती है यदि आप खुद ही उस घर में रहते हों, क्योंकि कल्पित आय नगण्य होती है साथ ही कर्ज पर ब्याज देने से आमदनी नेगेटिव निकलती है। इन बातों के अलावा अगर दो घर हैं तो एक घर के नुकसान को दूसरे घर की आमदनी से पूरा किया जा सकता है।

हालांकि नगरपालिका के करों का भुगतान समय पर करना न भूलें क्योंकि ऐसा न करने पर आयकर में छूट का दावा निरस्त किया जा सकता है। जहां पर संपत्ति को किराए पर लगा दिया जाता है और वहां पर आप मासिक किश्त या ईएमआई के ब्याज वाले हिस्से को किराए से समायोजित कर सकते हैं।

कारोबारी नुकसान

अगर आप दो से ज्यादा कारोबार संभालते हैं तब इस स्थिति में एक कारोबार में हुए घाटे को दूसरे कारोबार में हुए फायदे से पूरा करना आसान होता है। कर कानून के तहत घाटे को किसी दूसरे नए कारोबार से होने वाले मुनाफे से पूरा कारने की इजाजत मिलती है।

पति या पत्नी की कारोबारी आमदनी का इस्तेमाल भी घाटे की क्षति-पूर्ति को पूरा करने में किया जा सकता है। जहां तक डूबे हुए कर्ज की बात है, जैसे कच्चे माल की आपूर्ति के लिए एडवांस का डूब जाना तो, आप इसे घाटे की श्रेणी में रख सकते हैं।

अन्य आमदनी

किसी दूसरे स्त्रोत से होनेवाली आमदनी में होने वाले घाटे को इस वित्तीय वर्ष में समायोजित करना अनिवार्य है। दूसरे साधन को इस वित्तीय वर्ष में समायोजित किया जाता है नहीं तो फिर वे बेकार हो जाते हैं।

उदाहरण के लिए एक बीमा अभिकर्ता अपने कमीशन के घाटे को जमीन के किसी टुकड़े से आनेवाले किराए से पूरा कर सकता है। मशीन और फर्नीचर में सुधार, बैंक डिपॉजिट पर ब्याज दर और परीक्षा-पत्र की जांच दूसरे स्त्रोतों से आनेवाली आमदनी का उदाहरण है।

लाभ से पूंजी बनाएं

अगर 5 लाख कीमत से ज्यादा के शेयरों का मूल्य गिरकर बाजार में आई गिरावट के बाद 2 लाख रुपये हो जाता है तब ऐसी स्थिति में उनको 3 लाख का घाटा सहकर बेचने से लघु अवधि में होनेवाले पूंजीगत नुकसान के बराबर माना जाएगा और इसे दूसरे शॉर्ट टर्म पूंजीगत मुनाफे से सेट ऑफ किया जा सकता है।

लेकिन एक सलाह- कभी भी लघु अवधि में पूंजी में होने वाले घाटे की पूर्ति दीर्घ अवधि में पूंजी में होने वाले मुनाफे से न करें। यह एक तरह से खराब कर नियोजन माना जाएगा। उदाहरण के लिए शेयरों में लघु अवधि वाले पूंजी के घाटे को म्युचुअल फंड या बेहतर लाभ कमा रहे सूचीबध्द शेयरों से कभी पूरा करने की कोशिश न करें।

हालांकि स्थिति ऐसी बन पड़े कि इस स्थिति को टालना एकदम मुश्किल हो तब इसकी क्षति-पूर्ति सोने की लघु अवधि वाले या एस्टेट या म्युचुअल फंड में होनेवाले मुनाफे से करें क्योंकि इन पर कर लगता है। अगर सूचीबध्द शेयर या इक्विटी म्युचुअल फंड इकाई एक साल से ज्यादा समय से आपके पास है तब उनकी बिकवाली कभी न करें।

लघु अवधि वाले पूंजी में हुए घाटे को किसी भी श्रेणी में बिल्कुल आगे बढाया नहीं जा सकता है। हालांकि डेट फंड पर दीर्घ अवधि के  घाटे को आवश्यकता पड़ने पर सोने से आनेवाली दीर्घ अवधि के लाभ से पूर्ति की जा सकती है। शेयरों के मामले में तीन रास्ते हैं जिससे कि घाटे को फायदे में बदला जा सकता है-पहला कि इक्विटी को दोस्त या सगे-संबंधी को बाजार मूल्य पर घाटे पर बेचकर घाटे को बुक करें और करों में कमी करें।

इनको घाटे के रूप में दिखाया जा सकता है और साथ ही इस पर दावा भी किया जा सकता है। दूसरा कि डेट फंड अगर एक साल केबाद बेचे जातें हैं तो ये बिना इंडेक्सेशन के साथ 10 प्रतिशत तक का मुनाफा और इंडेक्सेशन के साथ 20 प्रतिशत तक का मुनाफा देते हैं। इनको पांच साल से ज्यादा समय तक केलिए रखना और 10 प्रतिशत के विकल्प को चुनना, करों में कमी लाता है।

डेप्रीसिएशन के जरिए घाटे को करें कम

डेप्रीसिएशन केघाटे का दावा हमेशा करें क्योंकि आपकेकारोबारी मुनाफे से इसकी भरपाई की जा सकती है। ये कारोबार से होनेवाले मुनाफेको प्रभावी तरीके से घटा सकते हैं। मौजूदा वित्त वर्ष के दौरान अगर कारोबार से होने वाला मुनाफा या आमदनी पर्याप्त नहीं है तब डेप्रीसिएशन को अगले वित्त वर्ष तक ले जाना कभी न भूलें।

बचे हुए डेप्रीसिएशन को मुनाफे के किसी भी स्त्रोत से पूरा कर सकते हैं जिसके लिए कारोबार ही एकमात्र स्त्रोत नहीं है। उपकरण, फिक्सचर और मशीनरी सभी की कीमतों में गिरावट आती है और इसे पूरा किया जाता है। इनकेअलावा कंप्यूटर, कार और फर्नीचर सभी में डेप्रीसिएशन होता है। यहां तक कि मोबाइल को भी डेप्रीसिएशन की श्रेणी में रखा जा सकता है। सबसे महत्वपूर्ण फायदा यह है कि बचे हुए डेप्रीसिएशन घाटे की क्षति-पूर्ति सालों -साल तक की जा सकती है।

अन्य विविध खर्चों जैसे स्टांप डयूटी, आवासीय संपत्ति परिचालन की पंजीयन फीस और शेयर डीलों में कानूनी और यात्रा संबंधी फीस पर उस समय दावा किया जा सकता है जब घाटे की आपूर्ति की जा रही है या उनको आगे ले जाया जा सकता है। इंडेक्सेशन तब बहुत महत्वपूर्ण होता है जब बेची जा रही संपत्तियों का आकलन महंगाई के साथ सामंजस्य बैठाने के लिए किया जाता है।

डेट के फायदे

माना कि कोई व्यक्ति वर्ष 2001 में 25,000 रुपये में डेट म्युचुअल फंड की इकाइयां खरीदता है और इसे वर्ष 2006 में 5,00,000 रुपये में बेच डालता है।
दोनों की तुलना के लिए हम वर्ष 2001 के लिए इंडेक्स 259 लेते हैं और वर्ष 2006 के लिए इंडेक्स 497 लेते हैं।

विकल्प एक
इकाई की लागत : 25,000 रुपये
इकाइयों की बिक्री : 5,00,000 रुपये
इंडेक्स लागत : 25,000 की दर पर 497259 =47,973
पूंजीगत लाभ : 5,00,000-47,973= 4,52,027
पूंजीगत लाभ कर : 4,52,027 की दर पर  20 प्रतिशत
                     = 90,405.40 रुपये

विकल्प दो
इकाइयों की लागत : 25,000 रुपये
इकाइयों की बिक्री : 5,00,000 रुपये
पूंजीगत लाभ : 5,00,000-25,000=475,000
पूंजीगत लाभ कर = 4,75000 की दर पर 10 प्रतिशत
                   =47,500 रुपये
विकल्प दो बेहतर है।

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