बीमा विनियामक एवं विकास प्राधिकरण (आईआरडीएआई) ने इसी साल मार्च में एक परिपत्र जारी कर बीमा कंपनियों को ‘पहले से धारणा या अनुमान बनाकर’ बीमा दावे खारिज नहीं करने की हिदायत दी है। नियामक ने यह भी कहा कि बीमा कंपनियों को दावा खारिज होने की सूचना में स्पष्ट रूप से बताना होगा कि दावा पॉलिसी की किस शर्त के तहत खारिज किया गया है।
अनुमान पर दावा खारिज नहीं
दावों के निपटान के दौरान बीमा कंपनियां उपलब्ध सबूतों के हिसाब से ही अपना मन बनाते हैं। इसके उदाहरण भी हैं। मान लीजिए कि कोई व्यक्ति 24 घंटे के लिए अस्पताल में भर्ती होता है। उसका किसी तरह का इलाज नहीं होता है बल्कि उसे केवल निगरानी के लिए रोका जाता है। इस मामले में बीमा कंपनी यह कहकर दावा खारिज कर सकती है कि अस्पताल में भर्ती किए जाने की जरूरत ही नहीं थी। ऐसे ही किसी अन्य मामले में बीमा कराने वाले व्यक्ति को उच्च रक्तचाप की शिकायत हो सकती है। हो सकता है कि उसने ऐसी स्वास्थ्य बीमा पॉलिसी ली हो, जिसमें उच्च रक्तचाप या उसकी वजह से होने वाली दूसरी समस्याओं को पूरे चार साल के लिए बीमा कवरेज के दायरे से बाहर रखा जाता हो। अगर अगर दो साल बाद अचानक उस व्यक्ति को दिल का दौरा पड़ जाता है तो यह तय करना मुश्किल हो जाएगा कि दौरा उच्च रक्तचाप की वजह से पड़ा है या उसके पीछे कोई और वजह थी। पॉलिसीबाजार में स्वास्थ्य कारोबार प्रमुख अमित छाबड़ा करते हैं, ‘मानव शरीर पेचीदा होता है और पुख्ता तौर पर नहीं कहा जा सकता कि बीमारी किस वजह से हुई है। इसलिए अनुमान लगाया जाता है।’ बीमा कंपनियों के लिए भी यह बहुत मुश्किल मसला होता है। स्टार हेल्थ ऐंड अलाइड इंश्योरेंस के प्रबंध निदेशक एस प्रकाश कहते हैं, ‘फर्जी दावे छांटकर हटाने की जिम्मेदारी बीमा कंपनियों की होती है। अगर वे ऐसा नहीं करेंगी तो प्रीमियम बढ़ेगा और ईमानदार ग्राहक खमियाजा भुगतेगा।’
दावा नकारने का कारण बताएं
बीमा नियामक के इस परिपत्र के बाद बीमा कंपनियों को दावों के मूल्यांकन में ज्यादा सतर्क होना पड़ सकता है। सिक्योरनाउ इंश्योरेंस ब्रोकर के सह-संस्थापक एवं प्रबंध निदेशक कपिल मेहता कहते हैं, ‘मुझे लगता है कि बीमा कंपनियां अब ज्यादा सतर्क हो जाएंगी क्योंकि उन्हें पता है कि नियामक की नजर उन पर है।’ अभी दावा खारिज होने पर ग्राहक को सबूत लाकर बताना पड़ता है कि उसका दावा असली है। मेहता के मुताबिक इस परिपत्र के बाद बीमा कंपनियों को दावा खारिज करने का कारण बताना पड़ सकता है। कुछ सूत्र कहते हैं कि नियामक का संदेश साफ है – अगर बीमा कंपनी से गलती होती है तो वह दावा खारिज करने की गलती नहीं हो बल्कि दावे के भुगतान की गलती हो।
किस शर्त के तहत हुआ खारिज
बीमा कंपनियां दावा खारिज होने की सूचना तो ग्राहको को देती हैं, लेकिन अक्सर उनकी भाषा गोलमोल होती है। गोलमोल सूचना में बताया जाता है कि बीमा के नियम और शर्तों पर खरा नहीं उतरने के कारण दावा खारिज हुआ है। ग्राहक समझ ही नहीं पाता कि पॉलिसी की कौन सी शर्त उसने पूरी नहीं की थी। बीमा कंपनी से दोबारा पूछा जाए तब वे नया पत्र भेजकर सही वजह बताएंगी। मेहता कहते हैं, ‘आगे से आप बीमा कंपनियों की पहली चि_ी में ही दावा खारिज होने का सही आधार पता लगने की अपेक्षा कर सकते हैं।’
पॉलिसी को ठीक से समझें
पॉलिसी खरीदते समय साफ-साफ बता दें कि पहले आपका कौन सा ऑपरेशन हुआ है, आपको रक्तचाप की समस्या तो नहीं है और आप कौन सी दवा ले रहे हैं। अक्सर ऐसा नहीं बताने के कारण ही दावे खारिज होते हैं। कई ग्राहक पॉलिसी की शर्तों, उससे बाहर रखी गई बीमारियों, सब-लिमिट, को-पेमेंट प्रावधान आदि को समझ ही नहीं पाते। उन्हें पॉलिसी खरीदते समय या अस्पताल में भर्ती होने से पहले बीमा कंपनी के कॉल सेंटर में फोन कर सब पता कर लेना चाहिए ताकि बाद में निराशा हाथ न लगे।
यह भी देख लें कि डॉक्टर ने उस अवधि का सही-सही जिक्र किया है यानहीं, जिस अवधि में आपको बीमारी रही है। मेहता कहते हैं, ‘ऐसा नहीं हुआ तो बीमा कंपनी कह सकती है कि पॉलिसी खरीदते समय आपने बीमारी के बारे में नहीं बताया था।’ अंत में अस्पताल से छुट्टी मिलने पर यह जरूर देख लें कि डिस्चार्ज समरी में यह स्पष्ट तौर पर लिखा है कि अस्पताल में भर्ती होना क्यों जरूरी था।