उत्तर प्रदेश के परिवहन मंत्री दयाशंकर सिंह ने ‘बिज़नेस स्टैंडर्ड – समृद्धि | उत्तर प्रदेश’ के कार्यक्रम में बताया कि सरकार राज्य की परिवहन व्यवस्था को बेहतर बनाने के लिए कई बड़े कदम उठा रही है। उन्होंने कहा कि बस अड्डों को आधुनिक बनाने, इलेक्ट्रिक बसें बढ़ाने और दूर–दराज के गांवों में बसें पहुंचाने पर तेजी से काम किया जा रहा है। उनका कहना था कि सरकार चाहती है कि पूरे उत्तर प्रदेश में लोगों को आसान, आरामदायक और पर्यावरण के अनुकूल यात्रा सुविधा मिले, जिससे राज्य का विकास और तेज हो सके।
मंत्री दयाशंकर सिंह ने कहा कि उत्तर प्रदेश में 23 बस अड्डों को पीपीपी मॉडल पर पूरी तरह आधुनिक रूप दिया जा रहा है। इन बस अड्डों को एयरपोर्ट की तर्ज पर विकसित किया जा रहा है, जहाँ यात्रियों को यात्रा के साथ–साथ आराम, खरीदारी और साफ–सुथरी सुविधाओं का अनुभव मिलेगा। उन्होंने विशेष रूप से बताया कि बस अड्डों में यात्रियों के लिए आधुनिक लाउंज, साफ शौचालय और रुकने की उत्तम व्यवस्था होगी।
लखनऊ में इस दिशा में सबसे बड़े काम हो रहे हैं। शहर में तीन बड़े बस अड्डे तैयार किए जा रहे हैं—पहला गोमती नगर रेलवे स्टेशन के पास, जहां लगभग 1000 करोड़ रुपये का निवेश हो रहा है। दूसरा चारबाग के पास और तीसरा एयरपोर्ट के निकट बन रहा है। मंत्री ने बताया कि इसके अलावा कानपुर, वाराणसी, मेरठ और अयोध्या सहित कई शहरों में भी नए बस अड्डों का निर्माण तेजी से चल रहा है। कई परियोजनाएँ शुरू हो चुकी हैं, कई का शिलान्यास हो चुका है, और उम्मीद है कि 2027 से पहले इनमें से अधिकतर बस अड्डे यात्रियों को सेवाएँ देने लगेंगे। लक्ष्य है कि हर जिले में कम से कम एक आधुनिक बस अड्डा तैयार किया जाए।
मंत्री दयाशंकर सिंह ने बताया कि उत्तर प्रदेश में 23 बस अड्डों को पीपीपी मॉडल पर बिल्कुल नए और आधुनिक रूप में बनाया जा रहा है। इन बस अड्डों को एयरपोर्ट जैसी सुविधाओं से तैयार किया जा रहा है, ताकि यात्रियों को यात्रा के साथ आराम, खरीदारी, साफ–सुथरे शौचालय और अच्छे लाउंज जैसी सुविधाएं मिल सकें। उनका कहना था कि आने वाले समय में लोग बस अड्डे पर भी उतनी ही अच्छी सुविधाएं पाएंगे जितनी एयरपोर्ट पर मिलती हैं।
उन्होंने बताया कि लखनऊ में इसका काम सबसे तेज चल रहा है। यहां तीन बड़े बस अड्डे बन रहे हैं- एक गोमतीनगर रेलवे स्टेशन के पास जहां लगभग 1000 करोड़ रुपये खर्च हो रहे हैं, दूसरा चारबाग के पास और तीसरा अमौसी एयरपोर्ट के पास बनाया जा रहा है। इसके अलावा कानपुर, वाराणसी, मेरठ, अयोध्या जैसे शहरों में भी नए बस अड्डों का काम शुरू हो चुका है और तेजी से चल रहा है। मंत्री ने कहा कि 2027 से पहले ज्यादातर नए बस अड्डे बनकर तैयार हो जाएंगे, और लक्ष्य है कि हर जिले में कम से कम एक आधुनिक बस अड्डा बनाया जाए।
चर्चा के दौरान मंत्री ने ग्रामीण परिवहन की स्थिति पर भी विस्तार से जानकारी दी। उन्होंने बताया कि उत्तर प्रदेश के 1 लाख 4 हजार गांवों में से केवल 12,400 गांव ही बचे हैं जहां अभी परिवहन निगम की बसें नहीं पहुंचतीं। इस कमी को पूरा करने के लिए सरकार ने एक व्यापक योजना तैयार की है। PWD से बातचीत कर कई स्थानों पर सड़कें चौड़ी कराई जा रही हैं, जिससे बसों की आवाजाही आसान हो सके। मंत्री ने कहा कि अगले तीन महीनों के भीतर 7000 गांवों में बस सेवा शुरू कर दी जाएगी। जहां सड़कें संकरी हैं या बड़े वाहनों की आवाजाही मुश्किल है, वहां छोटे आकार की 32–40 सीटर बसें चलाकर कनेक्टिविटी बेहतर की जाएगी। उनका कहना था कि सरकार का उद्देश्य है कि कोई भी गांव परिवहन से अछूता न रहे।
मंत्री दयाशंकर सिंह ने कहा कि जब उन्होंने पद संभाला था, उस समय यूपी परिवहन निगम के पास 8500 बसें थीं, लेकिन पिछले कुछ सालों में यह संख्या बढ़कर 14,500 हो चुकी है। आने वाले दिनों में 1650 नई बसें और जुड़ेंगी, जिससे कुल संख्या और बढ़ जाएगी। उन्होंने बताया कि सरकार का लक्ष्य है कि 2027 तक बेड़े में कम से कम 25,000 बसें शामिल कर दी जाएं। इससे न केवल बस सेवा व्यापक होगी, बल्कि यात्रियों को बेहतर, सुरक्षित और समय पर परिवहन उपलब्ध कराया जा सकेगा।
इलेक्ट्रिक बसों पर बात करते हुए मंत्री दयाशंकर सिंह ने बताया कि शुरुआत में उत्तर प्रदेश के पास सिर्फ 1500 ईवी बसें थीं और वे केवल शहरों में चलती थीं। लेकिन अब सरकार ने इन्हें बढ़ाकर 43 जिलों और कई ग्रामीण इलाकों तक पहुंचा दिया है। उन्होंने कहा कि सरकार लगातार नई इलेक्ट्रिक बसों के लिए टेंडर निकाल रही है, लेकिन मुश्किल यह है कि पूरे देश में बहुत कम कंपनियां ईवी बसें बनाती हैं। इसी वजह से बसों की सप्लाई समय पर नहीं मिल पाती। मंत्री ने उदाहरण दिया कि पिछले एक साल में 5000 ईवी बसों का टेंडर हुआ, लेकिन कंपनियां उनकी पूरी डिलीवरी नहीं कर सकीं, क्योंकि उनके पास उतनी बड़ी संख्या में बसें बनाने की क्षमता नहीं है।
इसी समस्या को देखते हुए सरकार ने एक बड़ा फैसला लिया है। अशोक लेलैंड जल्द ही लखनऊ में इलेक्ट्रिक बसों की फैक्ट्री शुरू करेगा। उत्तर प्रदेश परिवहन निगम ने तय किया है कि यह हर साल कंपनी से 2500 इलेक्ट्रिक बसें खरीदेगा। मंत्री ने कहा कि सरकार का मकसद है कि आने वाले वर्षों में धीरे–धीरे डीजल बसों की जगह इलेक्ट्रिक बसें चलाई जाएं, ताकि प्रदूषण कम हो और यात्रियों को बेहतर यात्रा का माहौल मिले। उनका कहना था कि अगर सभी बसें इलेक्ट्रिक हो जाएं तो प्रदूषण में लगभग 38% तक कमी लाई जा सकती है, जो पूरे प्रदेश के लिए बड़ा बदलाव होगा।
चर्चा के दौरान मंत्री दयाशंकर सिंह ने बताया कि पहले परिवहन निगम अपनी पुरानी बसों को कबाड़ समझकर बेच देता था, लेकिन अब सरकार ने यह तरीका बदल दिया है। अब पुरानी बसों को फेंकने की बजाय इन्हें इलेक्ट्रिक बसों में बदला जा रहा है। उन्होंने कहा कि एक नई इलेक्ट्रिक बस बनाने में 1 से 1.5 करोड़ रुपये तक खर्च आता है, जबकि पुरानी बस को ईवी में बदलने में सिर्फ 60–70 लाख रुपये खर्च होते हैं। इससे सरकार का पैसा भी बचेगा और पुरानी बसें फिर से नई बनकर सड़कों पर दौड़ेंगी और यात्रियों को अच्छी सुविधा देंगी।
मंत्री ने बताया कि डीजल बसें चलाने में सरकार को 17 रुपये प्रति किलोमीटर तक का खर्च आता था, जबकि इलेक्ट्रिक बसों में यह खर्च घटकर सिर्फ 5 रुपये प्रति किलोमीटर रह सकता है। कई रूटों पर बदली गई इलेक्ट्रिक बसें ट्रायल के रूप में चलाई जा रही हैं और अब तक के परिणाम काफी अच्छे हैं।
दयाशंकर सिंह ने कहा कि इन सभी कदमों से उत्तर प्रदेश की परिवहन व्यवस्था तेजी से बदल रही है। आधुनिक बस अड्डे, गांवों तक बस सेवा और इलेक्ट्रिक बसों का बढ़ता इस्तेमाल। ये सब मिलकर यूपी को एक ऐसी जगह बना रहे हैं जहां यात्रा आसान, आरामदायक और पर्यावरण के लिए बेहतर हो। उनका मानना है कि आने वाले समय में उत्तर प्रदेश परिवहन सुधारों का एक मॉडल राज्य बनकर सामने आएगा।