निर्यातकों के लिए अब प्राइवेट बीमा क्षेत्र के रास्ते खुल गए हैं। रिजर्व बैंक के नए निर्देशों के तहत अब निर्यातकों के निजी बीमा कंपनियों द्वारा निपटाए गए क्लेम भी विदेशी मुद्रा कानून के दायरे में आएंगे।
अब तक केवल एक्सपोर्ट क्रेडिट गारंटी कार्पोरेशन (ईसीजीसी) द्वारा निपटाए गए क्लेम ही इस विदेशी मुद्रा कानून के दायरे में आते हैं। उस स्थिति में जब एक विदेशी खरीददार का पेमेंट निर्यातक को न मिले।
इस कदम से न्यू इंडिया इंश्योरेंस, बजाज एलायंज, आईसीआईसीआई लोंबार्ड, इफको-टोकियो जनरल और टाटा एआईजी की क्रेडिट इंश्यारेंस कवर सेवा की बिक्री बढ़ने की उम्मीद है। ये कंपनियां निर्यात किए गए माल के बीमे पर गुड रिसिप्ट कंप्लायंस(जीआर)का लाभ उठाएंगी। रिजर्व बैंक की ओर बैंको को यह अधिकार दिया है भारत में दर्ज किसी बीमा कंपनी द्वारा इस तरह के दावों का निपटारा किया गया है तो वे इन निर्यात बिल को अपने खाते से हटा दें।
फेमा और बैंकिंग के कानून ने किसी निर्यातक के लिए यह अनिवार्य बना दिया है कि वे एक नियत समय में विदेशी मुद्रा लाना अनिवार्य बना दिया है। निर्यातक को एक बार विदेशी खरीददार से पेमेंट मिल जाने के बाद उसे बैंक द्वारा जारी किया गया जीआर फार्म हासिल करना अनिवार्य है।
विदेशी खरीददार के डिफॉल्टर हो जाने की स्थिति में इस दावे के निपटारे के लिए बीमा कंपनियों के पास जाता है। अब तक इस तरह के सभी दावों का निपटारा ईसीजीसी द्वारा ही किया जाता था। यह एक मात्र संस्था जीआर आवश्यकताओं, फेमा और बैंकिंग कानून के तहत अधिकृत थी।
इंश्योरेंस कंपनी के एक कार्यकारी के अनुसार आरबीआई का यह कदम निवेशकों के हित में तो है ही इसके साथ ही इससे सभी बीमा कंपनियों को प्रतिस्पर्धा के लिए एक सा मैदान तैयार होगा। अब सभी कंपनियों द्वारा निपटाए गए दावों को जीआर फार्म जारी करना माना जाएगा। के्रडिट बीमा पॉलिसी में भारत से निर्यात किए सामान या फिर सेवा का विदेशी खरीददार या देश द्वारा भुगतान न किए जाने पर रिस्क कवर किया जाता है।
इसके तहत दावा करने वाले निर्यातक को अपनी सेवा या फिर सामान की कीमत का 80-90 फीसदी भुगतान किया जाता है जिसका विदेशी खरीददार के डिफॉल्टर या फिर दिवालिया हो जाने या निर्मित युध्द या गृह युध्द की स्थिति, विप्रेषण पर पाबंदी या फिर माल के आयात पर लगे प्रतिबंध भुगतान रुक जाता है। इस पॉलिसी की शुरुआत छोटे और मझौले उद्योग और व्यापार जगत के दूसरे धड़ों ने करवाई थी ताकि उन्हें उधार लेने वाले के पेमेंट न कर पाने की स्थिति में नुकसान न झेलना पड़े।
रिजर्व बैंक ने अपने निर्देश में कहा है कि उससे निर्यातकों और कारोबार के दूसरे धड़ों के प्रतिनिधियों ने बट्टे खाते में डालने की यह यह सुविधा सभी बीमा कंपनियों को देने का अनुरोध किया था।