बजट 2008-09 हमें किसी तरह से प्रभावित नहीं करता या यह हमारे लिए लाभकारी नहीं है, यह कहना काफी आसान है। इस बजट से यकीनन कोई भी बहुत बड़ा बदलाव बाजार में देखने को न मिले, किसानों के ऋण को छोड़ कर। हालांकि यह काफी सुखद आश्चर्य है कि चुनावी वर्ष में आने वाला यह बजट बेहद कम लोक लुभावन बजट रहा है। यहां तक कि इस बजट में कुछ ऐसे उपाय किए गए हैं, जिससे उपभोक्ता व्यय बढेग़ा और केन्द्र पर सब्सिडी का बोझ कम पड़ेगा, जिससे की अर्थव्यवस्था रूपी गाड़ी 2008-09 में दौड़ती रहेगी।
स्थिर दीर्घावधि अनुमानों की बात करने वाले विश्लेषकों को इससे खुश होना चाहिए। कर नीति में किए गए आमूल परिवर्तनों के कारण अचानक उनके अनुमान नहीं बदलने चाहिए। अगर आप बजट से पहले किसी भी किसी उद्योग या शेयर के लंबी अवधि के विकास के संभावनाएं किए हुए थे तो निश्चित ही इस कर नीति से आपके अनुमान बामुश्किल बदले होंगे।
आर्थिक सर्वेक्षण से जोड़ते हुए बजट से यह स्पष्ट हो गया है कि अगले पांच सालों तक ऐच्छिक सकल घरेलू उत्पाद (जीडीपी) विकास दर को बनाए रखने में उपभोक्ता व्यय काफी नहीं है। भारतीय अर्थव्यवस्था को विशाल निवेश की जरूरत है और अगली सरकार का पहला काम यही होगा कि वह किस तरह से निवेश के लिए जरूरी माहौल को बना पाती है। और बजट 2008-09 में इस क्षेत्र के लिए लगभग न के बराबर कदम उठाए हैं।
प्रत्यक्ष कर उपयों में कुछ दिलचस्प आशय भी जुड़े हुए हैं। भारतीय कॉरपोरेट जगत इस बात से आश्वस्त है कि दरें और नहीं बढ़ेंगी। लेकिन अधिभार, न्यूनतम वैकल्पिक कर (मैट), लाभांश वितरण कर (डीडीटी) तो है ही। विकास दर अगले वित्त वर्ष कम से कम पहले 6 महीनों तक कम ही बनी रहेगी और जिससे कॉरपोरेट जगत तो खुश नहीं होगा।
अगर वैयक्तिक स्तर पर देखा जाए तो सूचना प्रौद्योगिकी को मिली राहत उचित है। हालांकि वित्तीय व्यापारी और निवेशक थोड़े बहुत निराश हो सकते हैं। एसटीसीजी कर में बढ़ोतरी अनिश्चित बाजार में स्टोरियों के लिए दुखदायी है और उस पर से नए जिंस लेन-देन कर (सीटीटी) की मार उन्हें बहुत परेशान कर सकती है। शुक्र है कि दीर्घावधि पूंजी लाभांश इस कर की चोट से परे है।
कुछ भारतीय लोग जो शेयर बाजार और जिंस बाजार में निवेश करते हैं, इससे वे भी बाजार में कम कारोबार करेंगे। जब शुरू में एसटीटी लागू किया गया था वहां भी माना जा रहा था कि सेकेंडरी बाजार में नकदी में कमी आज जाती और जिंस एक्सचेंज में भी नकदी कारोबार गिर जाता। जो कि प्राइमरी बाजार में भी उथल-पुथल मचा देता। उसके बाद मजबूती खो चुका आईपीओ बाजार भी भारत में जरूरी नए निवेशों को आकर्षित करने में नाकामयाब रहता।
इसलिए वित्त क्षेत्र में इसका प्रतिकूल असर हो सकता है। वर्तमान स्थितियों में सूचीबध्द ब्रोकर कंपनियों को उच्च पीई शेयरों की, जिनसे बहुत उम्मीद होती है, बिक्री का दबाव भी झेलना पड़ सकता है।
ठीक इसी समय में सार्वजनिक क्षेत्र के बैंकों की बैलेंस शीट भी किसानों के ऋण माफ होने के चलते प्रभावित होंगी। फिर चाहे इससे बिक्री बैंकिंग क्षेत्र के पार बिक्री की स्थिति बन चाहे। इसके बजाए हो सकता है कि इससे उद्योग जगत के अंदर ही आमदनी कम हो जाए। ऐसे में जिन बैंकों के शेयर सस्ते हैं वे बुरी तरह मात खाएंगे।
अप्रत्यक्ष करों की तरफ बढ़ते हुए उत्पाद और सीमा शुल्क ने सभी को हैरान कर दिया है। कच्चे माल पर सीमा शुल्क के कम हो जाने से निजी क्षेत्र को मुनाफा होगाऔर उत्पाद शुल्क कम होने से ऑटो उद्योग को भी मुनाफा होगा। इससे इत्तर उद्योग जगत को इसके अलावा कोई और बड़ा परिवर्तन देखने में नहीं मिलेगा। ऑटो और रिफाइनिंग क्षेत्र में लागत में बढ़ोतरी के होने से कुछ मुश्किलें हो सकती हैं। इसलिए इन दोनों क्षेत्रों में जोखिम जरूर है।
2007-08 की तीसरी तिमाही के नतीजों को देखते हुए कहा जा सकता है कि 2008-09 कॉरपोरेट आमदनी की वृध्दि की नजर से एक बेहतर वर्ष नहीं होगा। भारत और अमेरिका में आर्थिक संकंट और सिर पर चुनावों से बाजार को छोटे-छोटे झटके लगते रहेंगे और बाजार में अस्थिरता कायम रहेगी। बजट इन दोनों में से किसी भी परिस्थिति में बदलाव लाने में नाकामयाब रहेगा और न ही इन क्षेत्रों में निवेशकों को स्पष्ट विकल्प नहीं दिखा पाएगा।
इसलिए फिलहाल बाजार नीतिगत दीर्घावधि निवेशकों के लिए बेहतर है। अगर अगले 12-18 महीनों की बात की जाए तो, प्रतिफल अनिश्चित है। इससे आगे प्रतिफल काफी सकारात्मक देखे जा सकते हैं। आप किसी भी एक पोर्टफोलियो को चुनें और उसके साथ बने रहें और उससे अधिक से अधिक मुनाफा कमाएं।
