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नया बीमा संशोधन विधेयक का होगा असर! ज्यादा कमीशन वाले एजेंटों का घटेगा भुगतान

उद्योग से जुड़े सूत्रों ने कहा कि अधिक कमीशन देने के मामले में कभी कभी पॉलिसीधारक के हितों से समझौता करना पड़ता है और कंपनियां दावों में काट छांट करती हैं।

Last Updated- December 19, 2025 | 9:46 AM IST
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नया बीमा संशोधन विधेयक लागू होने के बाद ज्यादा कमीशन पाने वाले बीमा मध्यस्थों के भुगतान में कमी आ सकती है। इस विधेयक में भारतीय बीमा नियामक और विकास प्राधिकरण (आईआरडीएआई) को बीमाकर्ताओं और मध्यस्थों के गैरकानूनी लाभों को वापस लेने का अधिकार दिया गया है। साथ ही मध्यस्थों को कमीशन के भुगतान की सीमा तय करने का अधिकार भी दिया गया है।

बहरहाल विशेषज्ञों का कहना है कि इस प्रावधान का इस्तेमाल इस पर निर्भर है कि इसके लिए किस तरीके से नियम बनाए जाते हैं। मध्यस्थों में बैंकाश्योरेंस भागीदार, ओईएम-लिंक्ड साझेदारी या इसी तरह के हाई वॉल्यूम चैनल शामिल हैं।

उद्योग से जुड़े सूत्रों ने कहा कि अधिक कमीशन देने के मामले में कभी कभी पॉलिसीधारक के हितों से समझौता करना पड़ता है और कंपनियां दावों में काट छांट करती हैं। अधिक कमीशन होने की स्थिति में विधेयक में इसमें कटौती किए जाने का अधिकार दिया गया है। उद्योग से जुड़े सूत्रों ने कहा कि यह देखना होगा कि विधेयक को लेकर किस तरह से नियमन किया जाता है।

विशेषज्ञों ने यह भी कहा कि कुछ वितरण व्यवस्थाएं हैं, जिसमें असमान रूप से ज्यादा भुगतान किया जाता है, जबकि दावों के प्रदर्शन और निरंतरता के संकेतकों से इस तरह के भुगतान का ढांचा उचित नहीं नजर आता है। इस तरह के उल्लंघन के मामले में नियामक को कार्रवाई करने की अतिरिक्त शक्तियां दी गई हैं, ऐसे में मानकों का उल्लंघन करने वाली इकाइयां व्यापक रूप से नियामकीय जांच के दायरे में आ सकती हैं, जिनमें बीमाकर्ता और मध्यस्थ दोनों ही शामिल हैं।

क्विकइंश्योर के सह संस्थापक और सीईओ आनंद श्रीखंडे ने कहा, ‘वाहन बीमा पर कमीशन कम होने की उम्मीद है।’
पॉलिसीधारकों के दावों का कुप्रबंधन करने वाले बीमाकर्ता भी गहन जांच के दायरे में आ सकते हैं। साथ ही आईआरडीएआई के दिशानिर्देशों का उल्लंघन करने वाली इकाइयों पर जुर्माना मौजूदा 1 करोड़ से बढ़ाकर 10 करोड़ रुपये कर दिया गया है।

आईबीएआई के प्रेसीडेंट नरेंद्र भरींदवाल ने कहा, ‘सेबी की तरह ही आईआरडीएआई को भी मजबूत पर्यवेक्षी ढांचे की शक्ति दी गई है, जिससे दीर्घावधि के पॉलिसीधारकों के हितों की रक्षा हो सके।  इस प्रावधान का इरादा दंडात्मक नहीं, बल्कि सुधारात्मक है। इसका उद्देश्य एक निवारक के रूप में कार्य करना है और संभवतः केवल असाधारण परिस्थितियों में ही इसका प्रयोग किया जाएगा, जहां वितरण प्रोत्साहन और पॉलिसीधारक के दावों के निपटान साफतौर पर बेमेल नजर आते हैं।’

First Published - December 19, 2025 | 9:46 AM IST

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