सूचीबद्घ डिबेंचर के धारकों को अंतर-लेनदार समझौते (आईसीए) में सक्षम बनाने वाले भारतीय प्रतिभूति एवं विनिमय बोर्ड (सेबी) के नए दिशा-निर्देशों को क्रियान्वयन से जुड़ी चुनौतियों का सामना करना पड़ रहा है।
उद्योग दिग्गजों और कानूनी विश्लेषकों ने 13 अक्टूबर को जारी सर्कुलर में संशोधन के लिए बाजार नियामक से संपर्क किया है। इसमें डिबेंचर ट्रस्टियों (डीटी) द्वारा अमल की जाने वाली प्रक्रियाओं को भी निर्धारित किया गया है।
सर्कुलर के एक प्रमुख क्लॉज में कहा गया है कि डीटी आईसीए कर सकते हैं, या निवेशकों के हित को देखते हुए समाधान योजना पर सहमति जता सकते हैं। इसके अलावा, ट्रस्टी को बकाया कर्ज में 75 प्रतिशत वैल्यू से जुड़े निवेशकों से मंजूरी हासिल करने की भी जरूरत होगी।
विश्लेषकों का कहना है कि ‘निवेशकों के श्रेष्ठ हित’ वाला क्लॉज डीटी को आईसीए करने से रोक सकता है, क्योंकि इससे उन पर बड़ी जिम्मेदारी आ जाएगी।
प्रमुख विधि फर्म जे सागर एसोसिएट्स (जेएसए) द्वारा एक रिपोर्ट में कहा गया है, ‘ऐसा लगता है कि यह पता करने की जिम्मेदारी ट्रस्टी पर डाली जा सकती है कि क्या आईसीए करना निवेशकों के हित में है और कोई निर्णयात्मक कदम उठाने से ट्रस्टियों को रोका जा कसता है। जब ज्यादा मात्रा में निवेशक आईसीए करने की सहमति देंगे तो ट्रस्टी पर जिम्मेदारी नहीं डाली जा सकेगी। निवेशकों के तहत में आईसीए की यह शर्त अनावश्यक लग रही है और प्रक्रिया को आसान बनाने के लिए इसे समाप्त किया जाना चाहिए।’
विश्लेषकों का कहना है कि कई डीटी यह स्पष्ट करने से हिचकिचाएंगे कि समाधान योजना निवेशकों के पक्ष में है और चाहेंगे कि निवेशक यह निर्णय लेंगे।
केएस लीगल ऐंड एसोसिएट्स में मैनेजिंग पार्टनर सोनम चांदवानी का कहना है, ‘भले ही सेबी का सर्कुलर कई पहलुओं के संदर्भ में अस्पष्ट है, लेकिन यह ऋण पुनर्गठन प्रक्रिया को सुगम बनाने के लिए एक स्वागतयोग्य कदम है। इसलिए 13 अक्टूबर के सर्कुलर को स्पष्ट बनाया जाना चाहिए जिससे कि इसके सभी फायदों को अनुकूल बनाया जा सके और इस तक व्यापक पहुंच बनाई जा सके।’
जून 2019 में भारतीय रिजर्व बैंक (आरबीआई) ने फंसे कर्ज की जल्द पहचान, रिपोर्टिंग और समयबद्घ तरीके से समाधान के लिए एक रूपरेखा तैयार की। केंद्रीय बैंक द्वारा दिए गए निर्देश सिर्फ बैंकों और कुछ खास वित्तीय संस्थानों के लिए लागू थे। बेहद महत्वपूर्ण बात यह है कि इसमें डिबेंचर धारकों को अलग रखा गया, जिससे डेट रिजोल्यूशन पैकेज के क्रियान्वयन में समस्याएं पैदा हुईं। हालांकि सेबी के सर्कुलर में अब इस पहलू का ध्यान रखा गया है।
जेएसए की रिपोर्ट में कहा गया है, ‘सेबी के सर्कुलर में यह भी स्पष्ट नहीं किया गया है कि क्या यह बैंकों या उन वित्तीय संस्थानों के लिए लागू है जो सूचीबद्घ डेट प्रतिभूतियों के धारक हैं। सेबी के सर्कुलर से पहले, हमने यह समझा कि ऐसी इकाइयों ने आईसीए किया है, क्योंकि वे आरबीआई निर्देशों के अधीन थीं। हालांकि अब सेबी ने सूचीबद्घ डेट प्रतिभूतियों के संबंध में खास सर्कुलर जारी किया है तो ऐसी इकाइयों को आरबीआई के निर्देशों के तहत आईसीए करना होगा या उन्हें आईसीए करने से पहले सेबी सर्कुलर के तहत प्रक्रिया पूरी करने की जरूरत होगी।’
