केंद्र ने राज्यों के साथ मिलकर गैर-विनियमित कर्ज को संज्ञेय और गैर-जमानती अपराध के रूप में वर्गीकृत करने का प्रस्ताव किया है। इसमें जुर्माने के साथ 10 साल तक की कैद का भी प्रावधान शामिल होगा। वित्त मंत्रालय ने बुला (गैर-विनियमित उधारी गतिविधियों पर प्रतिबंध) विधेयक के मसौदे पर 13 फरवरी तक हितधारकों से प्रतिक्रिया मांगी है।
विधेयक के मसौदे के अनुसार, ‘ऐसी गतिविधियों को गैर-विनियमित उधारी गतिविधियों के रूप में परिभाषित किया जाता है जो किसी भी कानूनी ढांचे द्वारा शासित नहीं होती हैं और उसका संचालन ऐसी इकाइयों द्वारा किया जाता है जिसे भारतीय रिजर्व बैंक (आरबीआई) या अन्य नियामकीय संस्थाओं द्वारा अधिकृत नहीं किया गया हो। यह विधेयक उन कंपनियों या व्यक्तियों द्वारा ऋण गतिविधियों पर रोक लगाता है जो कानून या आरबीआई या अन्य नियामक द्वारा पंजीकृत नहीं है।’
प्रस्तावित कानून का उल्लंघन संज्ञेय और गैर-जमानती अपराधा माना जाएगा और दोषी पर भारी जुर्माना लगाने और जेल की सजा का भी प्रावधान किया गया है। विधेयक में कहा गया है कि अवैध ऋण गतिविधियां चाहे डिजिटल हो या किसी अन्य रूप में, संचालित करने वालों को 2 से 7 साल की सजा हो सकती है और साथ ही 2 लाख से लेकर 1 करोड़ रुपये तक का जुर्माना भरना पड़ सकता है। साथ ही जो ऋणदाता उधारकर्ताओं को परेशान करने या ऋण वसूलने के लिए गैर-कानूनी तरीकों का इस्तेमाल करते हैं उन्हें 3 से 10 साल की कैद और भारी जुर्माने का सामना करना पड़ सकता है।
मसौदा विधेयक में प्रावधान किया गया है कि ऋणदाता, कर्ज लेने वाले या संपत्ति कई राज्यों या केंद्र शासित प्रदेशों में हों और यदि लेनदेन का मूल्य सार्वजनिक हित को व्यापक रूप से प्रभावित करने वाला हो तो उसकी जांच का जिम्मा सीबीआई संभालेगी। मसौदा कानून में संविधान की पहली अनुसूची के तहत 20 मौजूदा कानूनों का संदर्भ दिया गया है, जो विनियमित ऋण गतिविधियों को नियंत्रित करते हैं।
नांगिया एडरसन इंडिया में निदेशक-रेगुलेटरी मयंक अरोड़ा ने कहा, ‘डिजिटल ऋण मामले में असर समस्या यह है कि कर्ज लेने वालों को वास्तविक ऋणदाताओं के बारे में पता नहीं होता है क्योंकि कर्ज लेनदेन में आमने-सामने कोई बातचीत नहीं होती है। वित्तीय सेवा क्षेत्र में तेजी से विकास हो रहा है और नियामक भी इस पर नजर रखने के लिए लगातार प्रयास कर रहे हैं। इसके लिए बीते समय में भी कई तरह के उपाय किए गए हैं।’