लगातार बढती महंगाई जो 12 फीसदी के स्तर पर पहुंच चुकी है, इस बीच औसत रूप से सालाना 10 फीसदी का रिटर्न देने वाले डेट इंस्ट्रुमेंट में निवेश करना एक तरह से निगेटिव रिटर्न प्राप्त करने वाला है।
कच्चे तेल की बढती कीमतों, जिंस की कीमतों और अर्थव्यवस्था में मंदी को संज्ञान में लिया जाए तो इक्विटी में निवेश करना भी आर्कषक प्रतीत नहीं होता है। लेकिन इस मुश्किल भरे समय में डिविडेंड देने वाले स्टॉक एक विकल्प हैं जो मंदी झेल रहे बाजार में भी बेहतर प्रदर्शन करते हैं।
हालांकि इस तरह के स्टॉक का चयन करना चुनौतीपूर्ण है। उदाहरणस्वरुप इन तरह केस्टॉक में निवेश करने से पहले स्टॉक का लगातार ट्रैक रिकार्ड, कंपनी की अपने कारोबार में मजबूती , उसकी बाजार में स्थिति, प्रबंधन की क्षमता,मजबूत बिजनेस मॉडल और ऊंची ग्रोथ हासिल करने की क्षमता देखनी चाहिए।
अगर किसी कंपनी के स्टॉक में इतनी क्वालिटी हैं तो वह बाजार के मंदी में रहते समय में भी अच्छा रिटर्न देगी। यहां उन दस कंपनियों के संबंध में जानकारी दी गई हैं जिनके पास बेहतर डिविडेंड देने की क्षमता होने के साथ आगे चलकर 12 से 15 महीनों में बढ़िया प्रदर्शन करने की संभावनाएं भी हैं।
अशोक लीलैंड
ट्रकों की बिक्री घटने के बाद भी कंपनी वित्तीय वर्ष 2008 में अपनी शुध्द बिक्री में 7.8 फीसदी की वृध्दि रिकार्ड कर इसे 7,729 करोड़ रुपये तक ले जाने में सफल रही। इस दौरान कंपनी की बसों की बिक्री में 51 फीसदी सालाना, इंजिन में 36.7 फीसदी और स्पेयर पार्टस की बिक्री में 44.7 फीसदी का इजाफा हुआ।
इस भारी वाहन निर्माता कंपनी ने वित्तीय वर्ष 2008 में अपनी लागत घटाने के साथ कीमतों में वृध्दि के जरिए अपने परिचालन लाभ को 14 फीसदी बढ़ाकर 796 करोड़ रुपये करने के साथ शुध्द लाभ को 6.4 फीसदी बढ़ाकर 469 करोड़ ररुपये करने में सफलता अर्जित की है। अशोक लिलेंड ने अपने राजस्व के स्रोतों में विविधता लाने और प्रॉडक्ट पोर्टफोलियो में व्याप्त अंतर को पाटने के लिए निसान कंपनी के साथ हल्के व्यावसायिक वाहन निर्माण के लिए गठाजोड़ किया है।
वह अपने राजस्व में 30 फीसदी का योगदान देने वाले बस, निर्यात, इंजिन व स्पेयर पार्टस व डिफेंस किट जैसे दूसरी पांत के कारोबारों आनुपातिक ढंग से बढ़ा रही है। उसकी उत्तराखंड में निर्माणाधीन एकीकृत विनिर्माण इकाई के इसी वित्तीय वर्ष से उत्पादन प्रारंभ करने की संभावना है। इससे कंपनी को न सिर्फ बाजार को मांग को पूरा करने में मदद मिलेगी, बल्कि उसे करों से भी राहत मिलेगी। हालांकि उससे पहले अब से थोड़े समय बाद कंपनी को मार्जिन और मांग दोनों दबाव झेलना पड़ सकता है।
इससे उसके मिडियम टर्म की अच्छी संभावनाओं पर कोई असर नहीं पड़ेगा, क्योंकि वित्तीय वर्ष 2010 में हल्के व्यावसायिक वाहनों के उत्पादन के अच्छे नतीजे सामने आने की उम्मीद है। 28.75 रुपये पर अशोक लिलेंड का शेयर वित्तीय वर्ष 2009 व वित्तीय वर्ष 2010 की अनुमानित आय क्रमश: 3.7 रुपये और 4.3 रुपये से क्रमश: 7.7 गुने और 6.6 गुने पर कारोबार कर रहा है। यह अगले 18 माह में 30 फीसदी रिटर्न देने में सक्षम है।
कैस्ट्रॉल इंडिया
केस्ट्रोल इंडिया देश के ऑटोमेटिव ल्युब्रिकेंट क्षेत्र में खासी दखल रखता है। वह अपने प्रॉडक्ट केस्ट्रोल प्रिमियम और बीपी(मॉस) के नाम से रिटेल ग्राहकों और वास्तविक उपकरण निर्माताओं (ओईएम) को बेचते हैं। केस्ट्रोल ने अपने ताकतवर ब्रांड, उन्नत तकनीकी और उत्पाद व वृध्दि के क्षेत्र को पहचानने की काबिलियत के चलते अब तक जोरदार प्रदर्शन किया है। पिछले तीन सालों में कंपनी की बिक्री और लाभ 13.4 फीसदी और 19.3 फीसदी सीएजीआर (संयुक्त सालाना वृध्दि दर) से बढ़ा है।
कंपनी के वाल्यूम में हुई यह वृध्दि ग्राहकों में हाई टेक प्रॉडक्ट की बढ़ती चाहत है। उदाहरण के लिए देश की अग्रणी वाहन निर्माता कंपनी टाटा मोटर्स ने अपने व्यावसायिक वाहनों के लिए ऑयल उपयोग के नए मानक तय किए हैं। इसके तहत इंजिन ऑयल (इसे दोगुना कर 36,000 किमी कर दिया गया है।) और ल्युब्रिकेंट्स(इसे बढ़ाकर 72,000 किमी) बदलने की सीमा बढ़ाई गई है। हालांकि इसका अर्थ यह है कि खपत कम की गई है, लेकिन दूसरा अर्थ यह भी है कि अब तकनीकी रूप से बेहद उन्नत प्रॉडक्टों का उपयोग बढ़ेगा नतीजतन ल्युब्रिकेंट्स निर्माताओं की अहमियत बढ़ेगी।
इस समय यात्री कार भी उन्नयन के दौर से गुजर रही है। इसके तहत जहां नई कंपनियां इस क्षेत्र में उतर रहीं हैं, वहीं पहले ही पैर जमाए बैठी कंपनियां भी अपना तकनीकी उन्नयन कर रहीं हैं। इन सबसे इस क्षेत्र में हाई टेक प्रॉडक्ट की मांग बढ़ रही है। ब्रिटेन स्थित अपनी पैतृक कंपनी के ब्रांड का उपयोग करने वाली केस्ट्रोल कंपनी इस तरह से बन रहीं संभावनाओं को झपटने के लिए तैयार हैं। कंपनी ने वोल्वो, फोर्ड, ऑडी(कार), टाटा मोटर्स(संयुक्त उपक्रम) जैसे ब्रांडों के साथ करार किया है। इसके साथ ही उसे टाटा मोटर्स की बहुप्रतिक्षित कार नेनो में सबसे पहले भरे जाने वाले ऑयल का अधिकार मिल चुका है।
भारत में हर साल 10 लाख कार व यूटिलिटी वाहन और 60 लाख दोपहिया वाहन हर साल सड़कों में उतरते हैं। यह देखते हुए ऑटोमेटिव ल्युब्रिकेंट्स की मांग में अच्छी खासी बढ़त होती रहेगी। इसके साथ ही बुनियादी क्षेत्र में हो रहे विस्तार और औद्योगिक क्षेत्र में बढ़ ल्युब्रिकेंट्स की मांग से भी इसे खासा लाभ होने की उम्मीद है। इसके लिए तेल की कीमतों में आया तूफान ही चिंता का प्रमुख सबब है, जिसकी इसकी बिक्री में 50-60 फीसदी हिस्सेदारी है। केस्ट्रोल ने इससे निपटने के लिए अपनी कीमतों में इजाफा कर दिया है।
उसे आयात शुल्क में की गई 5.13 फीसदी की कटौती से भी लाभ पहुंचा है। इसके चलते निकट भविष्य में उसके मार्जिन पर कुछ खास फर्क नहीं पड़ने वाला। केस्ट्रोल की उच्च तकनीकी युक्त उन्नत प्रॉडक्ट की बिक्री के जरिए विकास के प्रयास और सभी प्रमुख क्षेत्रों में बढ़ रहे वाल्यूम के चलते दीर्घावधि में उसका भविष्य बेहद उज्ज्वल है। अगले दो वर्षों में कंपनी की टॉपलाइन और बॉटमलाइन वृध्दि 10-15 फीसदी रहने का अनुमान है। 258.70 रुपये पर कंपनी का शेयर वर्ष 2009 की परिकलित आय की तुलना में 12 गुने पर कारोबार कर रहा है। एक साल में यह 18-20 फीसदी रिटर्न दे सकता है।
क्लेरिएंट केमिकल्स
इनपुट लागत के लगातार बढ़ने के बाद भी क्लेरिएंट केमिकल्स ने जून 2008 को खत्म हुई छमाही अपने शुध्द लाभ को 44 फीसदी बढ़ाकर 41.7 करोड़ रुपये करने में सफलता अर्जित की है। इस दौरान कंपनी की शुध्द बिक्री 7 फीसदी बढ़कर 466 करोड़ रुपये हो गई है। उसे उत्पादों की कीमतें बढ़ाने की क्षमता के साथ लागत घटाने और एक छोटी संस्था होने का भी लाभ मिलेगा।
कंपनी डाई और विशेषरूप से केमिकल्स के लिए जानी जाती है, जिसका इसकी बिक्री में 55 फीसदी हिस्सा है। अब वह टेक्नीकल टेक्सटाइल के क्षेत्र में भी ध्यान केंद्रित कर रही है। यह एक तेजी से बढ़ता हुआ क्षेत्र है, जिसके 2015 तक 14 फीसदी की दर से बढ़ने की उम्मीद है। पिछले साल रुपये में आए उछाल के कारण कंपनी को टेक्सटाइल केमिकल्स के क्षेत्र में नुकसान उठाना पड़ा।
पहली छमाही में कंपनी को दूसरे सबसे बड़े क्षेत्र(बिक्री में 40 फीसदी का योगदान) से मिलने वाला मार्जिन दोगुना होकर 14.1 फीसदी हो गया। यहां से आगे जाते हुए कंपनी अब तकनीकी टेक्सटाइल के क्षेत्र में सेफर पिगमेंट्स, फ्लोरो केमिकल्स और कोटिंग पर आधारित प्रॉडक्ट पर ध्यान केंद्रित कर रही है। 2008 में रुपये ने कमजोरी के संकेत दिए हैं। इसका लाभ क्लेरिएंट को भी मिला है। 230 रुपये पर कंपनी का शेयर जारी वर्ष 2008 की परिकलित आय 17.14 रुपये की तुलना में 13.5 रुपये पर कारोबार कर रहा है।
ग्रेट ऑफशोर
जनवरी 2008 में कंपनी का शेयर 1,149 रुपये पर था। उसके बाद से अब तक इसमें 66 फीसदी करेक्शन आ चुका है। अब यह 4.11 फीसदी के शानदान लाभांश पर उपलब्ध है। कंपनी का पिछले वर्षों में प्रदर्शन जोरदार रहा है। पिछले दो वर्षों में उसकी बिक्री दोगुना होकर 676.31 करोड़ रुपये हो गई और वह लगातार अच्छा लाभांश बाट रही है।
यह वित्तीय वर्ष 2006 के 51 फीसदी के स्तर से बढ़कर वित्तीय वर्ष 2008 में 160 फीसदी हो गया है। यह देखते हुए अनुमान लगाया जा रहा है कि वह तेल की कीमतों में इजाफे के बाद बदली हुई परिस्थितियां और बढ़ते ऑफशोर एक्सप्लोरेशन और प्रॉडक्शन(ई एंड पी) के बाद भी अपने राजस्व में वृध्दि दर को बरकरार रखने में कामयाब रहेगा।
कंपनी के बढ़ते ई एंड पी निवेश से न सिर्फ उसके वाल्यूम में बढ़ोतरी होगी, बल्कि उसका रियेलाइजेशन भी बढ़ेगा। ग्रेट ऑफ शोर के पास इस समय 40 अलग-अलग तरह के जहाज हैं। इनमें रिग, पीएसवी, एचटीएसवी और मल्टी सपोर्ट वेसल प्रमुख हैं। इसके जरिए वह विदेशों में ऑफ शोर सेवाओं की कमी की स्थिति का पूरा लाभ लेना चाहता है। उसने जेक अप रिग और एमएसवी आदि नए जहाजों का भी आर्डर दिया है, जिनकी आपूर्ति मई 2009 तक होने की उम्मीद है। इन जहाजों को अपने बेड़े में शामिल करने के बाद कंपनी वित्तीय वर्ष 2010 तक वर्तमान दर से 300 करोड़ रुपये का अतिरिक्त राजस्व एकत्र कर सकता है।
वित्तीय वर्ष 2008 में उसका राजस्व 40 फीसदी बढ़कर 745 करोड़ रुपये हो गया। इसके साथ कंपनी सेमी-सबमर्सिबल डीप वाटर रिग के अधिग्रहण और डीप वाटर ड्रिलिंग क्षेत्र में प्रवेश कर अपने राजस्व में अतिरिक्त वृध्दि करना चाहता है। इस कदम से उसके राजस्व में इजाफे के अतिरिक्त कैश फ्लो(कंपनी का वर्तमान में कैश प्रॉफिट मार्जिन 44 फीसदी है) में भी बढ़ोतरी होगी। इसी के चलते कंपनी से मिलने वाले लाभांश में बढ़ोतरी की उम्मीद है। यह उल्लेखनीय है कि कंपनी के शेयर का वर्तमान मूल्य पर वित्तीय वर्ष 2009 और वित्तीय वर्ष 2010 की अनुमानित आय की तुलना में क्रमश: 8 व 5 गुने पर कारोबार कर रहा है।
एचपीसीएल
तेल की कीमतों के आसमान पर जाने के बाद एचपीसीएल जैसी तेल विपणन कंपनी (ओएमसी) की स्थिति किसी से छुपी नहीं है, जिन्हें सरकार केपेट्रोल, डीजल, एलपीजी और कैरोसिन आदि पेट्रोलियम पदार्थों को दी जा रही सब्सिडी शेयर करने के निर्णय से भी खास लाभ नहीं हुआ। तेल कंपनियों के लिए सबसे राहत की बात यह है कि बांडों को जारी होने में हो रही देरी और दी जा रही सब्सिडरी में ओएमसी की हिस्सेदारी को लेकर व्याप्त अनिश्चितताओं के बाद भी एचपीसीएल जैसी कंपनी को वार्षिक आधार पर नुकसान नहीं हुआ।
कंपनी का रिकार्ड लाभांश देने का रिकार्ड रहा है। बस 2005-06 ही इसका अपवाद रहा,जब उसने प्रति शेयर महज 3 रुपये का लाभांश दिया था। हाल-फिलहाज कच्चे तेल की कीमत 145 डॉलर प्रति बैरल से गिरकर 125 डॉलर प्रति बैरल तक पहुंच जाने से भी ओएमसी कंपनियों को राहत मिली है। अगर यह रुख जारी रहता है तो उनकी अप्रप्त सब्सिडी भी कम होगी। सरकार ने ओएमसी को अनुमति दी है कि वे अपने बांड रिजर्व बैंक को बेचकर नगद राशि प्राप्त कर सकते हैं। यह कदम भी इन कंपनियों के हित में है। इसके कंपनियों को अपने कर्ज चुकाने ब्याज में होने वाले खर्च को भी कम करने में मदद मिलेगी।
वित्तीय वर्ष 2007 में एचपीसीएल के पास 6,000 करोड़ रुपये के बांड अतिरिक्त थे, जबकि उस पर कर्ज 10,500 करोड़ रुपये का है। कारोबार के लिहाज से एचपीसीएल की एकीकृत रिफाइनिंग क्षमता 1.3 करोड़ टन प्रतिवर्ष है। विदेशी रिफाइनरी क्षेत्र में प्रवेश उसके लिए एक अच्छा संकेत साबित हुआ है। इसकी रिफाइनिंग क्षमता में 25 फीसदी का विस्तार हुआ है।
यह इसके लाभ में इजाफा कर सकता है। इस समय एचपीसीएल की 22 तेल और गैस के ब्लॉकों, सिटी गैस में इक्विटी शेयर और सीएनजी वितरण कारोबार में 10-20 फीसदी की हिस्सेदारी है। उसने 2,000 करोड़ रुपये एमआरपीएल की 17 फीसदी हिस्सेदारी खरीदने के लिए निवेश किया है। एचपीसीएल के पास पूरे देश में 8,000 पेट्रोल पंप और अचल संपत्तियां हैं। इनका मूल्यांकन उसे सब्सिडी के बोझ से निकालने में सक्षम है।
एचसीएल इंफोसिस्टम्स
पर्सनल कंम्यूटर और इंटरप्राइसेस हार्डवेयर सेगमेंट की प्रमुख कंपनी एचसीएल के शेयरों की कीमतों में जनवरी की अपनी अधिकतम ऊंचाई से 57 फीसदी की गिरावट आई है। इसकी वजह घरेलू पीसी मार्केट में मांग में कमी और मार्केट करेक्सन रहा। कंपनी की टेलीकॉम सेक्टर की ग्रोथ भी कम रही। कंपनी ने नोकिया जीएसएम के मोबाइल सेट के सप्लाई का अधिकार हासिल किया था।
हालांकि बिक्री में आई ये समस्याएं कुछ ही समय के लिए हैं। लेकिन पीसी की कीमतों के बढ़ने और ब्याज दरों में बढ़ोतरी का प्रभाव कंपनी की बिक्री पर पड़ सकता है। लेकिन कंपनी को आशा है कि भारत में पीसी की मांग और ई-प्रशासन के उपायों के बीच कंपनी 20 से 22 फीसदी की बढ़त हासिल कर लेगी। भारत में पीसी का घनत्व वर्ष 2006 तक प्रति 1,000 व्यक्तियों में 18 पीसी था। भारत सरकार इसे बढ़ाकर 65 तक पहुंचाना चाहती है।
एचसीएल इंफोसिस्टम्स पीसी सेगमेंट में लोकप्रिय ब्रांड है और पीसी के घरेलू बाजार में इसकी हिस्सेदारी 15.5 फीसदी है जबकि लैपटाप में कंपनी की हिस्सेदारी 7.4 फीसदी है। जहां पीसी के बाजार में 20 फीसदी की गति से भी अधिक की बढ़त हो रही है वहीं लैपटाप का बाजार और तेजी से बढ़ रहा है। इस लगातार बढ़ती मांग से सबसे ज्यादा फायदा एचसीएल को पहुंचने की संभावना है क्योंकि कंपनी के कम कीमत पर लैपटाप और पीसी के निर्माण करने की क्षमता है।
कंपनी के पास नोकिया के जीएसएम मोबाइल का ठेका होने की वजह से भी कंपनी की ग्रोथ अच्छी रहेगी। हालांकि कंपनी इस आधे अधिकार को कंपनी को वापस कर सकेगी। कंपनी का कोडक और एप्पल के साथ बिक्री के समझौता भी आकार ले रहा है। मौजूदा बाजार मूल्य 129.80 रु पर कंपनी के स्टॉक का कारोबार वित्त्तीय वर्ष 2009 में अनुमानित आय से 5.8 गुना केस्तर पर हो रहा है। इसके अलावा कंपनी 6.31 फीसदी के डिविडेंड देने की घोषणा भी की है।
तमिलनाडु न्यूजप्रिंट
तमिलनाडु न्यूजप्रिंट एंड पेपर्स पेपर उद्योग की प्रमुख कंपनी है। कंपनी के स्टॉक का कारोबार वित्त्तीय वर्ष 2009 में अनुमानित आय से 4.8 फीसदी के स्तर पर हो रहा है। कंपनी राजस्व और कैस प्रॉफिट की दृष्टि से भी तेजी से बढ़ रही है। पेपर की बढ़ती मांग की वजह से कंपनी के कारोबार के बेहतर रहने की संभावना है।
बढ़ती हुई अर्थव्यवस्था और प्रिंट मीडिया की तेज गति पेपर की बढ़ती मांग के लिए जिम्मेदार है। इस सभी कारणों की वजह से कंपनी ने 26 फीसदी का लाभ बरकरार रखा है। जबकि दूसरी ओर लागत की कीमत भी तेजी से बढ़ी है। आगे कंपनी को अपनी क्षमता को बढ़ाने का भी फायदा मिलेगा। कंपनी की योजना जून 2010 तक अपनी क्षमता 230,000 टन से बढ़ाकर 400,000 टन तक पहुंचाने की है। इस विस्तार से कंपनी को लागत पर नियंत्रण पाने भी मद्द मिलेगी।
एलआईसी हाउसिंग फाइनेंस
देश की पांच अग्रणी हाउसिंग कंपनियों में से एक एलआईसी हाउसिंग फाइनेंस की 90 फीसदी आय का जरिया इसके द्वारा रिटेल ग्राहकों को दिया गया लोन और बैलेंस कार्पोरेट हाउसिंग के लिए बिल्डर को दिया जाने वाला लोन है। पिछले दो वर्षों में कंपनी अपने कारोबार को बढाने, क्षमताओं के विकास और जोखिम प्रबंधन क्षमता विकसित करने केप्रति आक्र मक हो गई है। इसका लाभ उसे लाभ और आय में जबरदस्त वृध्दि के रूप में मिला।
दो साल पहले कंपनी की आय में 10 फीसदी की दर से वृध्दि हो रही थी। यह वर्ष 2007 और 2008 में बढ़कर क्रमश:17 फीसदी और 41 फीसदी हो गई, जबकि इस दौरान उसके लाभ में होने वाली वृध्दि क्रमश: 34 और 39 फीसदी रही । वित्त वर्ष 2009 की पहली तिमाही में कंपनी का ब्याज हुई शुध्द आय 43 प्रतिशत की बढ़ोतरी केसाथ 150 करोड रुपये हो गई, जबकि शुध्द लाभ वित्त वर्ष 2008 की पहली तिमाही की तुलना में124 प्रतिशत बढ़ोतरी के साथ 105 करोड़ रुपये हो गया।
जोखिम प्रबंधन में सुधार की प्रक्रि या शुरू करने से कंपनी का नॉन-परफॉरमिंग एसेट(एनपीए) में भी पिछले कुछ वर्षों में गिरावट(वित्त वर्ष 2005 में जहां यह 7 प्रतिशत था वहीं वित्त वर्ष 2008 में यह गिरकर 1 प्रतिशत के आसपास पहुंच गया) देखने को मिली । यहां तक की मैक्रो इनवॉयरमेंट के कठिन हो जाने के बावजुद भी विश्लेषकों का मानना है कि एनपीए के मौजुदा स्तर में कोई बढ़ोतरी होने केआसर नहीं हैं। कंपनी द्वारा लागत खर्च को नियंत्रित कर पाने की वजह से कंपनी का शुध्द ब्याज मार्जिन वित्त वर्ष 2007 के2.4 प्रतिशत की अपेक्षा वित्त वर्ष 2008 में 2.8 प्रतिशत से अधिक का रहा है।
शुध्द ब्याज मार्जिन काआनेवाले समय में मौजूदा स्तर पर ही रहने की संभावना है जबकि विश्लेषकों का अनुमान है कि अगले दो वर्षों में कंपनी की लोन बुक और आबंटन केसालाना 25 प्रतिशत की रफ्तार से बढ़ने केआसार हैं) साथ ही उसके लाभ में 20 से 25 प्रतिशत की दर से बढ़ने का अनुमान है।
कंपनी अपनी सहायक कंपनियों के जरिए थर्ड पार्टी उत्पाद के वितरण में उतरी है। इससे भी उसकी आय और लाभ में वृध्दि होने की उम्मीद है। ताजा तिमाही के परिणामों की घोषणा केएक सप्प्ताह बाद कंपनी का शेयर 30 प्रतिशत कीउछाल के साथ 306 रुपये पर कारोबार कर रहा है। निवेशक खरीददारी करने से पहले कुछ करेक्शन का इंतजार करना पसंद करेंगे।
सविता केमिकल्स
उत्पादों की उंची कीमत और तेल की कीमत केआधार मूल्य के स्थिर रहने की वजह से पेट्रोलियम स्पेशियलिटी प्रॉडक्ट निर्माता कंपनी सविता केमिकल्स ने वित्त वर्ष 2008 में अपेक्षा से बेहतर प्रदर्शन किया है। कंपनी का शुध्द बिक्री 13 प्रतिशत बढ़कर 919 करोड रुपये हो गई, वहीं शुध्द लाभ 30 प्रतिशत की बढ़ोतरी के साथ 62 करोड रुपये हो गया। कच्चे तेल की ऊंची कीमत के कारण कच्चे माल यानी की बेस ऑयल की कीमतों में बढोतरी होने से सविता केमिकल्स के पारिचालन लाभ में लगभग 10 प्रतिशत की गिरावट आने केआसार हैं।
ट्रांसफॉरमर ऑयल मार्केट में 20 प्रतिशत की वृध्दि दर होने से सविता केमिकल्स को लाभ होना चाहिए, क्योंकि सविता केमिकल्स के कुल राजस्व में इस क्षेत्र का 65 प्रतिशत योगदान होता है। कंपनी अपनी उत्पादन क्षमता को 50,000 किलोलीटर से बढ़ाकर 2.6 लाख किलोलीटर कर रही है और इसमें लगभग 10 करोड़ की लागत आएगी।
ऊर्जा उत्पादन के क्षेत्र में नए ट्रांसफॉरमर निर्माताओं के कदम रख देने से ट्रांसफॉरमर ऑयल की मांग में तेजी आने के आसार हैं जिससे सविता केमिकल्स को लाभ मिलने की गुंजाइश है। फिलहाल कंपनी का शेयर 253 रुपये की कीमत पर वित्त वर्ष 2009 केअनुमानित आय 44 रुपये के नौ गुना कीआकर्षक कीमत उपलब्ध है और बेहतर रिटर्न मिलने की अपेक्षा है।
वरुण शीपिंग
वरुण शीपिंग पिछले 23 वर्षों से लगातार लाभांश देती आ रही है और यह देश की सबसे बेहतर लाभांश देने वाली कंपनियों में शुमार है। कंपनी द्वारा दिया जानेवाला सालाना लाभांश वित्त वर्ष 2001 के 15 प्रतिशत की अपेक्षा वित्त वर्ष 2008 में बढ़कर 50 प्रतिशत हो गया है।
कंपनी के शेयरों की कीमत मार्केट करेक्सन केबाद 37 प्रशित की गिरावट के साथ 68.9 रुपये पहुंच गया जबकि इसी वर्ष जनवरी में यह 119.50 रुपये केआसपास था जोकि 7.8 प्रतिशत का आकर्षक लाभांश देता है। लाभांश मिलने के अलावा कंपनी के शेयर का कारोबार 4 मल्टिल वित्त वर्ष 2009 के अनुमानित आय पर हो रहा है।
फिलहाल कंपनी केपास विभिन्न ढ़ंग के 21 वेसेल्स हैं जिनमें 12 एलपीजी कैरियरर्स, 3 डबल हल एफ्रामेकस क्रुड टैंकर्स, 1 प्रोडक्ट टैंकर और 5 एएचटीएस वेसेल्स शामिल हैं। चूंकि कंपनी एलपीजी ट्रांसपोर्टेशन की एक बड़ी खिलाडी है और भारत में लाए जानेवाले कुल पीएससू नियंत्रित एलपीजी कारगोज में कपनी का हिस्सा लगभग 70 प्रतिशत है। ऑयल और गैस क्षेत्र में तेजी से होरहे निवेश का फायदा कंपनी को मिलेगा।
इसके अलावा भारत में ऊर्जा की बढ़ती आवश्यकता और इसके लिए आयात पर निर्भर रहने का फायदा वरूण शीपिंग को मिलेगा। जहाजों की बढ़ती मांग साथ ही इसकी कमी से वॉल्युम में हीं नहीं बल्कि कंपनी के मार्जिन में भी बढ़ोतरी होना चाहिए। इसका एक उदाहरण इस बात से भी मिलता है कि पीबीआईडीटी मार्जिन वित्त वर्ष 2007 के 55.7 प्रतिशत की अपेक्षा वित्त वर्ष 2008 में बढ़कर 62.12 प्रतिशत हो गया है। कपंनी के तेजी से विकास कर रहे ऑफशोर सेगमेंट जहां कि डिमांड और रियलाइजेशन अपेक्षाकृत अधिक है, में कंपनी के कदम रखने से इसके मार्जिन और वॉल्युम में और बढ़ोतरी होना चाहिए।
हाल में ही कंपनी ने थर्ड एंकर हेंडलिंग और टाउविंग सप्लाई वेसेल की डिलेवरी ली है। यह एक विशेष रूप से तैयार वेसेल होता है जिसका उपयोग गहरे समुद्र में तेल की खोज में होता है। इसकी मदद से कपंनी का कुल ऑफशोर से होनेवाला राजस्व वित्त वर्ष के 3.55 प्रतिशत के मुकाबले वित्त वर्ष 2008 में बढ़कर 19.46 प्रतिशत हो गया है। बेहतर लाभांश देने केअलावा कंपनी केशेयर अगले एक वर्ष में 20 से 25 प्रतिशत तक का मुनाफा दे सकता हैं।