जब मांग में मंदी आती है, लागत मूल्य और ब्याज दरों में बढ़ोतरी होती है तो वैसी कंपनियों जिनके पास नकदी अधिक होती है या जिन्होंने अपने बही खातों के अनुसार तरल में निवेश किया हुआ होता, सुरक्षित माने जाते हैं।
वे न केवल ब्याज दरों के बढ़ने (जिससे लाभोत्पादकता प्रभावित होती है) से सुरक्षित होते हैं ब्ल्कि वे ऐसी स्थिति में भी होते हैं कि अपने ऋण चक्र का विस्तार कर सकें और कारोबार में अल्पावधि के दौरान आने वाले उतार चढ़ावों को समायोजित कर सकें।
लेकिन, केवल नकदी होना ही मायने नहीं रख सकता है और वास्तव में यह शेयरधारकों के लिए अहितकर भी हो सकता है। एचडीएफसी सिक्योरिटीज के रिटेल रिसर्च के प्रमुख दीपक जासानी कहते हैं, ‘लंबे समय से बैलेंस शीट में नकदी का बने रहना, जिसका न कहीं इस्तेमाल किया गया हो और न ही शेयरधारकों को लौटाया गया हो, शेयरधारकों के मूल्यों को कम कर सकता है।
दो से तीन साल का समय किसी कंपनी-प्रबंधकों के निर्णय के लिए पर्याप्त है कि वे उस नकदी का इस्तेमाल किस प्रकार करना चाहते हैं।’
कंपनियों के लिए यह भी जरूरी है कि वे इन संसाधनों का इस्तेमाल मूल्य-सहवर्ध्दी तरीके से करें। जासानी कहते हैं, ‘या तो कंपनी को एक निश्चित समय सीमा के भीतर नकदी का इस्तेमाल अपने कारोबार में कर लेना चाहिए या फिर शेयरधारकों को लाभांश या शेयरों की पुनर्खरीद के माध्यम से लौटा देना चाहिए।’
इस नकदी का उपयोग कंपनियां अन्य कंपनियों के अधिग्रहण, नए कारोबार की शुरुआत या अपने कारोबार के विस्तार के लिए कर सकती हैं। अंतत:, कंपनियों द्वारा इस तरह के कदम उठाए जाने से दीर्घावधि में शेयरधारकों को फायदा होता है।
नए कारोबारों का अधिग्रहण या अपने ही कारोबार में निवेश करने का काम तब आसान हो जाता है जब पर्याप्त मात्रा में नकदी होती है।
वारेन बफेट जैसे सफल निवेशक आमतौर पर अपनी कंपनियों के बही खाते पर नकदी का इस्तेमाल बुरे वक्त के दौरान अच्छे कारोबार खरीदने में करते हैं क्योंकि यही वह समय होता है जब अच्छी परिसंपत्तियां कम कीमत पर उपलब्ध होती हैं।
बही खाते में काफी नकदी वाली कंपनियों की पहचान के लिए स्मार्ट इन्वेस्टर ने 1,200 से अधिक कंपनियों को खंगाला। नकद राशि और तरल निवेश की गणना करने के दौरान भुगतान किया जाने वाले बकाए कर्ज को घटा दिया गया है और समूह, सहयोगी, एसोसिएट कंपनियों में किए गए निवेश को छोड़ दिया गया है ताकि कंपनी के पास निवेश योग्य उपलब्ध नकद राशि को मालूम किया जा सके।
केवल उन्हीं कंपनियों पर विचार किया है जिनकी नकदी या नकदी के समतुल्य निवेश उनके बाजार पूंजीकरण के 20 प्रतिशत से अधिक हैं।
उसके बाद गुणात्मक और परिणामात्मक कारकों जैसे पिछला ट्रैक रेकॉर्ड, प्रबंधन एवं प्रवर्तकों की प्रोफाइल, कितने दिनों से कंपनी कारोबार के क्षेत्र में है, परिचालन गतिविधियों से नकदी का धनात्मक प्रवाह और भविष्य में विकास की संभावनाओं आदि पर विचार किया गया है।
यहां मूल रुप से उन बड़ी कंपनियों की सूची प्रस्तुत की जा रही है जिनका बाजार पूंजीकरण 1,000 करोड़ रुपये (उनको छोड़ कर जिन्होंने इक्विटी के रुप में पैसे जुटाए हैं) से अधिक है, जो जांच पर खरे उतरे हैं और जिन पर मध्यावधि से दीर्घावधि तक के निवेश पर अच्छे प्रतिफल के नजरिये से विचार किया जा सकता है।
महत्वपूर्ण बात यह है कि इन कंपनियों से आने वाले वर्षों में अच्छे विकास की उम्मीद की जाती है। अगर वे अपनी नकदी के इस्तेमाल करने में बहुत अधिक वक्त लगाते हैं तो प्रतिफल अनुपात जैसे रिटर्न ऑन कैपिटल इम्पलॉयड और रिटर्न ऑन नेट वर्थ (कुछ महत्वपूर्ण अनुपात जिस पर बाजार निगाह रखती है) नीचे जा सकता है और कंपनियों के मूल्यांकन प्रभावित हो सकते हैं।
भारत इलेक्ट्रोनिक्स
भारतीय रक्षा क्षेत्र की विद्युतीय तथा यांत्रिक जरूरतों को पूरी करने के लक्ष्य के साथ भारत इलेक्ट्रॉनिक्स (बीईएल) की स्थापना की गई थी। इस कंपनी में भारत सरकार की हिस्सेदारी 75.86 प्रतिशत की है इसलिए रक्षा संबंधी अधिकांश जरुरतों को बीईएल पूरी करती है।
यह भी एक कारण है कि नीतिगत इलेक्ट्रॉनिक्स जैसे सेना संचार प्रणाली, राडार, नैवल प्रणाली, टेलीकॉम और ब्रॉडकास्ट प्रणाली, इलेक्ट्रॉनिक वारफयर सिस्टम आदि के घरेलू बाजार में इस कंपनी की हिस्सेदारी 95 प्रतिशत से अधिक है।
इस प्रकार बीईएल का भविष्य भारतीय रक्षा क्षेत्र के खर्चों के साथ लगभग पूरी तरह जुड़ा हुआ है क्योंकि इस कंपनी के राजस्व का 85 प्रतिशत से अधिक रक्षा क्षेत्र से आता है। ऐतिहासिक रुप से देखें तो रक्षा खर्च में 6-8 प्रतिशत सालाना का विकास रहा है। ऐसा अनुमान है कि रक्षा खर्च में विकास का यह सिलसिला सकल घरेलू उत्पाद के विकास के साथ जारी रहेगा।
यद्यपि, विकास की दर अधिक नहीं भी हो सकती है लेकिन रक्षा खर्चों की निरंतरता से कंपनी के लगातार विकास में मदद मिलेगी। कंपनी का वर्तमान ऑर्डर बुक 9,450 करोड़ रुपये का है जो वित्त वर्ष 2008 की तुलना में दोगुना अधिक है। इससे अच्छी आय की उम्मीद नजर आती है।
पिछले 10 वर्षों में कंपनी का राजस्व सालाना 12.19 प्रतिशत की दर से बढ़ता रहा है और पिछले 5 वर्षों में यह दर 15.45 प्रतिशत रही है। यह अविरुध्द नकद प्रवाह भी उपलब्ध कराता है जिसके परिणामस्वरुप कंपनी अपने शेयरधारकों को लाभांश के माध्यम से फायदा देने में सक्षम रही है।
पिछले कई वर्षों में लाभांश का भुगतान 20 प्रतिशत से अधिक रहा है। इसके अतिरिक्त, कंपनी के नकदी में भी पिछले पांच वर्षों में कई गुना बढ़ोतरी हुई है। वित्त वर्ष 2003 में कंपनी के पास 677 करोड़ रुपये नकद थे जो वित्त वर्ष 2008 में लगभग 3,000 करोड़ रुपये होने का अनुमान है जो इसके वर्तमान बाजार पूंजीकरण का लगभग 40 प्रतिशत है।
कारोबार में निरंतर विकास को देखते हुए इस कंपनी के शेयर वित्त वर्ष 2008 की आय के 9 गुना पर उचित मूल्यांकन पर उपलब्ध हैं।
इसके अतिरिक्त चूंकि कंपनी के पास भारी मात्रा में नकदी है इसलिए रक्षा क्षेत्र में निवेश के नये अवसर कंपनी के लिए सकारात्मक होंगे।
इंजीनियर्स इंडिया
हाड्रोकार्बन के क्षेत्र में इंजीनियर्स इंडिया एक बड़ी कंपनी है। रीफाइनिंग, पेट्रोकेमिकल्स, ऑफशोर तेल एवं गैस, पाइपलाइन, उर्वरक, ऊर्जा, बंदरगाह, टर्मिनल और धातुओं की सफाई जैसे उद्योगों से जुड़ी कंपनियों को इंजीनियर्स इंडिया अभियांत्रिकी सेवाएं उपलब्ध कराती है। प्राथमिक तौर पर इस कंपनी का निगमन भारत सरकार द्वारा किया गया था ताकि तेल एवं गैस से जुड़ी कंपनियों के विकास में मदद मिल सके।
इस कंपनी में भारत सरकार की हिस्सेदारी 90.04 प्रतिशत की है। तेल एवं गैस के क्षेत्र से जुड़ी कंपनियों को यह कंपनी तरजीही तौर पर अपनी सेवाएं देती है जिसमें से अधिकांश सरकारी हैं।
कंपनी के विकास की संभावनाएं हाइड्रोकार्बन क्षेत्र की कैपेक्स के साथ संबध्द हैं खास तौर से सार्वजनिक क्षेत्र की कंपनियों की।
बीते वर्षों में कंपनी की आय एकसमान नहीं रही है। हालांकि, पिछले दो वर्षों में आय में बढ़ोतरी हुई है। वित्त वर्ष 2007 में कंपनी की आय 581 करोड़ रुपये थी और वित्त वर्ष 2008 में आय 737.75 करोड़ रुपये रही। प्राथमिक तौर पर इसकी वजह इस हाइड्रोकार्बन उद्योग का उच्च कैपेक्स रहा।
कंपनी के विकास का श्रेय अबू धाबी, ओमान जैसे विदेशी बाजारों में अपनी पहुंच बनाने के साथ-साथ कई विदेशी परियोजनाओं को क्रियान्वित करने को भी जाता है।
हाइड्रोकार्बन क्षेत्र के विकास के अलावा इस कंपनी को अभियांत्रिकी से संबध्द अन्य क्षेत्रों जैसे राजमार्गों और पुलों, हवाईअड्डों, परिवहन तंत्र, बंदरगाह, जल तथा शहरी विकास परियोजनाओं की तरफ विविधिकरण से भी लाभ होना चाहिए।
इस कंपनी ने भारत में इपीसी कार्य तथा विदेशी बाजारों में तेल एवं गैस के क्षेत्र, उर्वरक, ऊर्जा तथा बुनियादी ढांचे के क्षेत्रों के लिए टाटा प्रोजेक्ट्स के साथ समान भागीदारी की है।
वित्त वर्ष 2007 में इंजीनियर्स इंडिया के पास नकदी और बैंक बैंलेस 960 करोड़ रुपये का था तथा उध्दृत डीबेंचर्स के रुप में इसके पास 126 करोड़ रुपये थ्ज्ञे। इस साल (वित्त वर्ष 2008) में कंपनी का नकदी लाभ लगभग 205 करोड़ रुपये होने का अनुमान है।
लाभांश के भुगतान के बाद कंपनी की नकदी और तरल निवेश 1,200 करोड़ रुपये होने का अनुमान है जो इसके बाजार पूंजीकरण का 35 प्रतिशत है। इसके शेयर का कारोबार वित्त वर्ष 2007 की अनुमानित आय के 7 गुना पर किया जा रहा है।
आईसीआई इंडिया
आईसीआई पीएलसी का यूके के एक्जोनोबेल नीदरलैंड्स द्वारा अधिग्रहण (2007 में) किए जाने के बाद आईसीआई इंडिया अब एक्जोनोबेल की 54.33 प्रतिशत की अनुषंगी इकाई है।
पिछले दो वर्षों में कंपनी ने अपने कारोबार के कुछ हिस्से का विनिवेश किया है (जिससे 500 करोड़ रुपये से अधिक का मुनाफा हुआ है) जिससे इसके निवेश पोर्टफोलियो में खासी बढ़ोतरी हुई है।
कुछ अधिशेष राशि का इस्तेमाल 240 करोड़ रुपये के शेयरों की पुनर्खरीद के लिए किया गया था (पुनर्खरीद की पेशकश 11 जुलाई 2008 को बंद हुई थी)। अप्रैल 2008 में आसीआई ने अपने एढेसिव कारोबार की और एक अनुषंगी इकाई में 67 प्रतिशत की बिक्री की घोषणा की थी, जिससे इसका निवेश बढ़ कर 1,000 करोड़ रुपये (260 रुपये प्रति शेयर) या बाजार पूंजीकरण का 53 प्रतिशत हो गया।
यद्यपि, कंपनी ने 17 जुलाई 2008 को हुए बोर्ड मीटिंग में दूसरी पुनर्खरीद संबंधी निर्णय को टाल दिया है। अभी तक कंपनी ने इस बात की घोषणा नहीं की है कि अधिशेष नकदी का इस्तेमाल के लिए कंपनी की ठोस योजनाएं क्या हैं।
कंपनी के अध्यक्ष आदित्य नारायण ने सालाना आम बैठक (एजीएम) में (जुलाई महीने में) कहा था, ‘बोर्ड उपयुक्त निवेश के अवसर की तलाश जारी रखेगी ताकि अधिशेष नकदी को इस्तेमाल लाया जा सके और जिससे दीर्घावधि में शेयरधारकों को लाभ हो।’
बीते वर्षो में आय (कारोबार की निरंतरता से) और कर से पहले के लाभ (¬परिचालन से) में 20 प्रतिशत के सीएजीआर से बढ़ोतरी हुई है और वित्त वर्ष 2008 में यह क्रमश: 1,062 कराड़ रुपये तथा 109 करोड़ रुपये रहा है।
हालांकि, पिछले कुछ वर्षों में कंपनी की लाभोत्पादकता पर दवाब रहा है, इसका श्रेय कच्चे तेल की अधिक कीमतों और आर्थिक विकास में आई मंदी को जाता है। वित्त वर्ष 2009 की पहली तिमाही के लिए अगर केवल मुख्य कारोबार पर विचार करें तो बिक्री में 16 प्रतिशत की बढ़ातरी हुई जबकि लाभ केवल 7 प्रतिशत बढ़ा।
विश्लेषक कहते हैं कि लाभों में वृध्दि होने का अनुमान है क्योंकि आईसीआई ने सॉल्वेंट आधारित पेंट्स की कीमतों में जून 2008 में बढ़ोतरी की है जबकि इमल्सन की कीमतों में अगस्त महीने में बढ़ोतरी किए जाने की संभावना है।
एक्जोनोबेल जो पेंट और कोटिंग के मामले में विश्व की सबसे बड़ी कंपनी है आईसीआई के लिए मददगार साबित होनी चाहिए। गैर-परिचालन आय को छोड़ कर और प्रति शेयर समायोजन के बाद इस कंपनी के शेयर की कीमत वित्त वर्ष 2009 की अनुमानित आय के प्राइस टु अर्निंग के 12.3 गुना है।
इंगरसोल-रैंड
अमेरिका की इंगरसोल-रैंड कंपनी की अनुषंगी कंपनी दबाव वाले एयर सिस्टम केविस्तार के लिए सारी सुविधाएं मुहैया कराती है। इस कंपनी में अमेरिकी इंजरसोल-रैंड की 74 फीसदी हिस्सेदारी है। इस सॉल्यूशन में रोटरी स्क्रू कंप्रेसर,सेंट्रीफ्यूगल कंप्रेसर और रेसीप्रोकेटिंग कंप्रेसर जैसे उत्पाद शामिल हैं। कंपनी एयर ट्रीटमेंट वाले उत्पादों का निर्माण भी करती है।
कंपनी के उत्पाद प्रदर्शन और लागत दोनों में किफायती हैं। कंपनी मॉनिटरिंग उपकरण भी मुहैया कराती हैं जिनसे डाउनटाइम और सर्विस लागत कम लगती है। इन उत्पादों और सेवाओं का उपभोग कई उद्योगों जैसे ऑटोमोबाइल्स, केमिकल्स, इलेक्ट्रानिक, फार्मास्युटिकल्स और धातुओं के कारोबार में लगी कंपनियों द्वारा किया जाता है।
इसमें कोई आश्चर्य नहीं है कि कंपनी की योजनाएं बुनियादी संरचना निर्माण क्षेत्र से गहराई से जुड़ी हुई हैं। इसके बाद कंपनी अपने उत्पादों का निर्यात भी करती है और उसके द्वारा प्राप्त कुल राजस्व का एक बड़ा भाग (लगभग 30 फीसदी) स्पेयर पार्टस की बिक्री से आता है।
वित्त्तीय वर्ष 2008 में कंपनी की बिक्री में निर्यात की भागीदारी कुल बिक्री में 20 फीसदी है। पिछले साल कंपनी ने अपना सड़क विकास और बहुउपयोगी उपकरण कारोबार बेच दिया था और इससे कंपनी ने 212 करोड़ का लाभ अर्जित किया था।
इस कर्ज मुक्त कंपनी के लिए उसका कैस और बैंक बैलेंस दोगुना होकर 516 करोड़ रुपए हो गया है(163 रु प्रति शेयर)। मौजूदा मंदी के माहौल के बावजूद इंगरसोल रैंड अपनी मूल अमेरिकी कंपनी के साथ देश में बढ़ते पूंजीगत निवेश का फायदा उठाने के लिए तैयार है।
मौजूदा बाजार मूल्य 360 रुपये पर कंपनी के शेयर का कारोबार वित्त्तीय वर्ष 2008 में अनुमानित आय से 16 गुना के स्तर पर हो रहा है।
मारुति सुजुकी
किसी कंपनी के शेयर को खरीदने का समय तब होता है जब शेयर बाजार की हालत अच्छी न हो या वह उद्योग जिसमें वह कंपनी परिचालन करती हो, उसकी हालत अच्छी न हो।
मौजूदा माहौल को देखते हुए मारुति सुजुकी जो कुछ ऐसी ही चुनौतियां झेल रही है, ऐसे अवसर उपलब्ध कराती है। जबकि बीते समय के दौरान मारुति सुजुकी की बिक्री की दर 18.6 फीसदी सालाना रही थी और कंपनी का शुध्द लाभ भी 33.7 फईसदी सालाना की अच्छी गति से बढ़ा।
लेकिन पिछले कुछ समय से कंपनी को ज्यादा चुनौतियों का सामना करना पड़ रहा है। मांग कम हो गई है( ब्याज दरों में बढ़ोतरी की वजह से जिससे मांग सबसे ज्यादा प्रभावित होती है), बढ़ती लागत की वजह से लाभ पर असर पड़ा है और कंपनी को भारी प्रतियोगिता का सामना करना पड़ रहा है (नैनो जैसे नए उत्पादों के लांच होने की संभावना के चलते)।
लेकिन पिछले कुछ सालों से मारुति ने प्रतियोगिता से खुद को पार ले जाने जो क्षमता दिखाई है उससे कंपनी पर भरोसा बढ़ता है। नए उत्पादों की लांचिंग, ग्राहकों की आवश्यकताओं को ध्यान में रखना और उच्च श्रेणी की सेवाएं प्रदान करना मारुति की विशेषता रही है।
आगे चलकर मारुति ने वित्तीय वर्ष 2011 तक 10 लाख कारों का लक्ष्य तय किया है( 12 फीसदी की सालाना चक्रवृध्दि की विकास दर से)। इसमें निर्यात में चार गुना होने वाली बढ़ोतरी भी शामिल है। कंपनी के लिए यह लक्ष्य संभव दिखता है।
कंपनी अपनी क्षमताओं को बढ़ाने की प्रक्रिया में है जिसमें हरियाणा के मनेसर संयंत्र की क्षमता को बढ़ाना भी शामिल है। इस संयंत्र की शुरुआत सितंबर 2006 में हुई थी और यहां से कंपनी का उत्पादन 1,00,000 ईकाइयों से बढ़कर वित्तीय वर्ष 2007-08 तक 1,70,000 ईकाइयां हो गई।
अक्टूबर कंपनी की योजना इसकी क्षमता बढ़ाकर 3,00,000 ईकाइयों तक करने की है। कंपनी की इंजिन मैन्यूफैक्चरिंग फैसिलिटी में विस्तार का काम भी अक्टूबर तक पूरा हो जाने की संभावना है जिससे कंपनी को घरेलू और विदेशी मांग को पूरा करने में मदद मिलेगी।
कंपनी के लिए इन योजनाओं के पूंजी जुटाना कठिन नहीं है क्योंकि कंपनी का सालाना नगदी लाभ 2,300 करोड़ है। इसके बाद कंपनी के पास 4,000 करोड़ का तरल निवेश भी है जिससे कंपनी मनेसर संयंत्र का विस्तार कर रही है।
कुछ नए उत्पादों जैसे ए स्टार और स्प्लास की लांचिंग से कंपनी की वॉल्यूम ग्रोथ शानदार रहनी चाहिए। महंगाई दर में अगले साल से नरमी आने की संभावनाओं के साथ विशेषज्ञों का कहना है कि मार्च 2009 से भारतीय रिजर्व बैंक ब्याज दरों में कटौती करना शुरु कर सकती है।
कमोडिटी की कीमतों में आ रही गिरावट से ऑटो कंपनियों जैसे मारुति सुजुकी को राहत मिलनी चाहिए। इसकेअलावा प्रतिस्पर्धी माहौल में जहां बाकी कंपनियों ने औसत प्रदर्शन किया है वहीं मारुति को लंबे समय में बहतर प्रदर्शन करना चाहिए।
कंपनी द्वारा अपने तरल निवेश को अपने कोर बिजनेस में लगाने से कंपनी के लाभ प्राप्त करने की क्षमता बढ़नी चाहिए। मौजूदा बाजार मूल्य 618 रुपए पर कंपनी के शेयर में अगले एक से दो सालों में बेहतरीन रिटर्न देने की क्षमता है।
एमटीएनएल
एमटीएनएल जो सभी संचार सुविधाएं जिनमें फिक्स्ड लाइन, मोबाइल, इंटरनेट और ब्राड बैंड सेवाएं प्रदान करती हैं, वह हमारे द्वारा चयनित किए गए स्टॉक में एकमात्र ऐसी कंपनी है जिसके कोर बिजनेस से प्राप्त राजस्व और लाभ में पिछले कुछ सालों में कमी आई है या उसका राजस्व और लाभ निश्चित रहा है।
कंपनी दिल्ली और मुंबई में संचार सेवाएं प्रदान करती है। जिसकी काफी कुछ वजह गलाकाट प्रतियोगिता और सरकारी कंपनी के रुप में इसे मिलने वाली चुनौतियां हो सकती हैं। इसप्रकार जब दूरसंचार सेवाओं के लिए माहौल के बेहतर रहने की संभावना है तब एमटीएनएल की सफलता इस पर निर्भर करेगी कि वह अवसरों का कैसे फायदा उठाती है क्योंकि मुंबई और दिल्ली में पहले से ही काफी कड़ी प्रतियोगिता है।
एमटीएनएल नेपाल और श्रीलंका से भी परिचालन भी करती है हालांकि इसके आकार को देखते हुए यह परिचालन काफी छोटा है। कंपनी ने अपना विस्तार करने के लिए कुछ कदम उठाए हैं।
जिससे कंपनी को पिछली कुछ तिमाहियों में अपने मोबाइल और ब्राडबैंड ग्राहकों की संख्या को धीरे धीरे बढ़ाने में मदद मिली है। मोबाइल सेवाओं में कंपनी ने दिल्ली में ही 7.5 लाख नए ग्राहक जोड़े जबकि मुंबई सर्किल में भी कंपनी ने इतने ही ग्राहक जोड़े।
इससे कंपनी की सेवाओं का लाभ उठाने वाले ग्राहकों की संख्या 34.4 लाख तक पहुंच गई। हालांकि बढ़ते मोबाइल और ब्राडबैंड सेवाओं के बावजूद कंपनी को अपने गिरते राजस्व और लाभ को संभालने में मदद नहीं मिली।
वित्त्तीय वर्ष 2009 की पहली तिमाही में कर्मचारियों पर किए जाने वाले खर्च के बढ़ने से कंपनी के लाभ पर प्रभाव पड़ सकता है। यद्यपि कंपनी ने तकनीक में निवेश लगातार जारी रखा है और मौजूदा समय में वह वीओआईपी सेवाओं के साथ आईपीटीवी जैसी सुविधाएं प्रदान कर रही है।
इसके अलावा कंपनी की योजना अपनी थ्री जी सेवाओं को लांच करना भी है। कंपनी अपने केबल नेटवर्क को भी अपग्रेड कर रही है और उसके अगली पीढ़ी की स्विचेस से सुसज्जित कर रही है।
जिससे कंपनी को किफायत बढ़ाने में मदद मिलनी चाहिए। कंपनी केसमुद्र के नीचे के नेटवर्क से कंपनी को अंतरराष्ट्रीय कारोबार बढ़ाने में मदद मिलनी चाहिए।
मौजूदा बाजार मूल्य 101.35 रुपए पर कंपनी के शेयरों का कारोबार कंपनी के चारो ओंर के हालातों को व्यक्त करता है।
नगदी के कोर बिजनेस के लिए किए गए इस्तेमाल और किसी भी प्रकार के लाभांश के मिलने से कंपनी की विकास दर बढ़नी चाहिए।
बीएसएनएल में विलय के ऐलान और अधिक मात्रा के रियल एस्टेट के विकास या बिक्री के ऐलान से कंपनी के शेयरों के मूल्यांकन पर असर पड़ सकता है।