BS BFSI Summit: भारतीय रिजर्व बैंक के गवर्नर शक्तिकांत दास ने मुद्रास्फीति पर लगाम कसने में नरमी से इनकार कर दिया। उन्होंने वृद्धि के बारे में आशावादी रहते हुए महंगाई को लेकर बड़े जोखिम का हवाला दिया। बिजनेस स्टैंडर्ड बीएफएसआई इनसाइट समिट के दौरान तमाल बंद्योपाध्याय के साथ बातचीत में उन्होंने कहा कि भारतीय वित्तीय क्षेत्र दूसरे देशों में किसी भी तरह के उतार-चढ़ाव से निपटने के लिए सुदृढ़ है। संपादित अंश:
दो प्रमुख अंतरराष्ट्रीय घटनाएं हैं, जिनका बाजार को इंतजार था- अमेरिका में राष्ट्रपति चुनाव के नतीजों का और चीन के अधिकारियों द्वारा घोषित किए जाने वाले राजकोषीय नीतिगत समर्थन का। मुझे लगता है कि चुनाव में पूरी मतगणना प्रक्रिया तक इंतजार करना हमेशा समझदारी होती है। मुझे लगता है कि कुल मिलाकर भारत-अमेरिकी संबंध बहुत मजबूत हो गए हैं।
दोनों देशों के बीच एक रणनीतिक साझेदारी है और यह जारी रहेगी, चाहे कोई भी जीते। भारतीय अर्थव्यवस्था और भारतीय वित्तीय क्षेत्र आज अच्छी स्थिति में है और दूसरे देशों से आने वाले किसी भी तरह के झंझावात से निपटने के लिहाज से काफी सुदृढ़ है। वहां (अमेरिका में) क्या हो रहा है, हम मूकदर्शक हैं। हम देख रहे हैं। लेकिन जब हमारे घरेलू बाजार की बात आती है तो नियामक के रूप में हम मूकदर्शक नहीं हैं।
हमारा संदेश बहुत सुसंगत रहा है। रुख में बदलाव से हमें भविष्य के लिए कदम तय करने के लिए लचीलापन और विकल्प मिलता है। हमने रुख इसलिए बदला क्योंकि मौद्रिक नीति समिति (एमपीसी) ने महसूस किया कि विकास और मुद्रास्फीति अब अच्छी तरह से संतुलित और बेहतर स्थिति में हैं और इस वजह से रुख बदलना सही था। हालांकि, निरंतर भू-राजनीतिक संघर्ष, भू-आर्थिक गुटों, जलवायु संबंधी जोखिमों और जिंसों की कीमतों में बढ़ोतरी से मुद्रास्फीति के बढ़ने का जोखिम काफी अधिक है। मुझे लगता है कि संदेश स्पष्ट था कि हमें अपने भविष्य के कदमों को लेकर काफी सतर्क रहना होगा। यह नहीं मान लेना चाहिए कि हमने यह कर लिया है, इसलिए अगला कदम दरों में कटौती का है। रुख में बदलाव का मतलब यह नहीं है कि अगली बैठक में दरों में कटौती की जाएगी।
जहां तक मुद्रास्फीति का सवाल है, अगला कदम बहुत सावधानी से उठाया जाना चाहिए। मैंने अपने मौद्रिक नीति वक्तव्य में बहुत स्पष्ट रूप से कहा था कि सितंबर और अक्टूबर में मुद्रास्फीति के आंकड़े ऊंचे रहने की आशंका है। सितंबर में मुद्रास्फीति के आंकड़े 5.5 फीसदी रहे। अक्टूबर में मुद्रास्फीति फिर से बहुत अधिक रहने वाली है, शायद सितंबर के आंकड़ों से भी अधिक। हमने अपने मौद्रिक नीति वक्तव्य में इसकी चेतावनी दी थी, इसलिए हमारा संदेश काफी सुसंगत है।
अंतरराष्ट्रीय मुद्रा कोष ने अपने विश्व आर्थिक आउटलुक में भारत के लिए 7 फीसदी वृद्धि का अनुमान जताया है। जहां तक हमारी अर्थव्यवस्था का मामला है, यहां जो आंकड़े आ रहे हैं वे मिलेजुले हैं। हम उच्च गति वाले जिन संकेतकों की निगरानी करते हैं (करीब 70-80 फीसदी संकेतक), उनमें मैंने पाया कि सिर्फ औद्योगिक उत्पादन सूचकांक (आईआईपी) के आंकड़े और शहरी इलाकों में एफएमसीजी की बिक्री में ठीक-ठाक नरमी है। लेकिन उसके अलावा जीएसटी, ई-वे बिल, टोल संग्रह, हवाई यात्रियों के आंकड़े, स्टील उद्योग, सीमेंट क्षेत्र और वाहन क्षेत्र का प्रदर्शन काफी अच्छा रहा है।
आने वाले आंकड़े मिलीजुली तस्वीर पेश कर रहे हैं, लेकिन यहां नकारात्मक से ज्यादा सकारात्मक आंकड़े हैं। हम मौजूदा साल की दूसरी छमाही की शुरुआत में हैं। पहली तिमाही की वृद्धि पर केंद्र और राज्य सरकारों की तरफ से कम खर्च के कारण असर पड़ा, शायद आम चुनाव के कारण। साथ ही पहली तिमाही में राजकीय सब्सिडी का भुगतान काफी ज्यादा था, जिसने जीडीपी के आंकड़ों को नीचे खींचा।
हालांकि सरकार के खर्च में वृद्धि होने लगी है – केंद्र और राज्यों के राजस्व और पूंजीगत व्यय में वृद्धि होने लगी है। दूसरी तिमाही में सब्सिडी व्यय में वृद्धि हुई है, जिसका जीडीपी आंकड़ों पर शायद नकारात्मक प्रभाव पड़ेगा। लेकिन आर्थिक गतिविधियां अभी भी मजबूत बनी हुई है। कृषि क्षेत्र ने बहुत अच्छा प्रदर्शन किया है; खरीफ उत्पादन पिछले साल की तुलना में 6 फीसदी अधिक है; सेवा क्षेत्र भी बहुत अच्छा प्रदर्शन कर रहा है।
इस साल कुल मिलाकर सेवा निर्यात में लगभग 14 फीसदी की वृद्धि हुई है। विनिर्माण आईआईपी (जो सितंबर में थोड़ा कम हुआ था) अक्टूबर में बढ़ गया है। इसलिए मैं यह कहने में जल्दबाजी नहीं करूंगा कि अर्थव्यवस्था धीमी हो रही है। मैं आशावादी हूं या निराशावादी, यह मुद्दा नहीं है; जो उपलब्ध प्रमाणों के आधार पर चल रहा हूं।
कुल 9,400 एनबीएफसी में से सिर्फ चार के खिलाफ कार्रवाई हुई है। आरबीआई की कार्रवाई नपी-तुली, चुनिंदा होती है और बहुत ही नपे-तुले तरीके से की जाती है। ऐसी हर कार्रवाई अचानक नहीं होती। कार्रवाई से पहले अलग-अलग संस्थाओं के साथ कई महीनों तक सीधी बातचीत होती है। हमें कुछ गंभीर कमियां दिखती हैं, संस्थाओं को बताया जाता है और हम उन्हें सुधार के उपाय करने के लिए पर्याप्त समय देते हैं। कई मामलों में सुधार के उपाय किए जाते हैं और हम कोई कार्रवाई नहीं करते।
वास्तव में, ऐसे मामलों की संख्या बहुत अधिक है, जहां हमने कोई कार्रवाई नहीं की। इसका मतलब यह नहीं है कि हमारे एनबीएफसी या वित्तीय क्षेत्र में कुछ बुनियादी तौर पर गलत है। कुल मिलाकर, वित्तीय क्षेत्र, एनबीएफसी क्षेत्र सिस्टम के स्तर पर बहुत मजबूत बने हुए हैं। केवल कुछ मामलों में ही हम कार्रवाई करते हैं, जहां हमें पर्याप्त कार्रवाई नहीं दिखती या कार्रवाई होती ही नहीं दिखती या की गई कार्रवाई हमारी अपेक्षाओं के अनुरूप नहीं होती या देर हो रही होती है, केवल उन्हीं मामलों में हम कार्रवाई करते हैं। और, कार्रवाई के विस्तृत कारणों को हमेशा संबंधित कंपनी के साथ साझा किया जाता है। ऐसा नहीं है कि उन्हें अंधेरे में रखा जाता है।
हमारी कार्रवाई दंडात्मक नहीं, बल्कि सुधारात्मक है। कई मामलों में जहां हमने कार्रवाई की है और वहां छह महीने में अनुपालन लगभग 100 फीसदी पहुंच गया और अगर हम संतुष्ट हैं तो हम प्रतिबंध हटा देते हैं। यह किसी संस्थान की स्थिरता के लिए अच्छा है। यह वित्तीय क्षेत्र के लिए अच्छा है और सबसे बढ़कर उपभोक्ता के लिए अच्छा है। यह (कार्रवाई) अचानक नहीं है; मनमानी नहीं है। यह नपा-तुला कदम है।
हमारे पास इस बारे में कोई दृष्टिकोण नहीं है कि ऋण वृद्धि अधिक है या कम। यह प्रत्येक बैंक में मौजूद स्थिति और स्थितियों पर निर्भर करता है। कोविड-19 के बाद खुदरा ऋणों के लिए उपभोक्ता मांग में तेजी आई। स्वाभाविक रूप से, बैंक जहां अवसर होगा, वहां ऋण देंगे। कुछ चीजें हैं जिन पर हम हमेशा नज़र रखने की कोशिश करते हैं।
बैंकों और एनबीएफसी के अंडरराइटिंग मानक क्या हैं और क्या क्रेडिट वृद्धि को बढ़ावा देने के लिए अंडरराइटिंग मानकों को कम किया जा रहा है। बैंकिंग क्षेत्र में कुल मिलाकर मुझे लगता है कि अंडरराइटिंग मानकों में काफी सुधार हुआ है। एनबीएफसी क्षेत्र में भी सुधार हुआ है, लेकिन अभी भी हमें कुछ ऐसे अपवाद मिलते हैं जहां हमें लगता है कि अंडरराइटिंग मानकों को और अधिक मजबूत बनाने की आवश्यकता है। इसलिए, सिस्टम के स्तर पर कोई समस्या नहीं है।
हम हर बैंकिंग इकाई की देनदारी के पक्ष को भी देखते हैं। क्या जमाएं ऋण वृद्धि के साथ आनुपातिक रूप से बढ़ रही हैं क्योंकि उनके बीच कुछ सह-संबंध होना चाहिए। हमने बैंकों के लिए ऋण-जमा अनुपात सख्त नहीं किया है। लेकिन यह कुछ ऐसा है जिसे हर बैंक समझता है कि सीडी अनुपात पूरी तरह से एकतरफा नहीं हो सकता है।
इसलिए, हम देनदारियों को यह जानने के लिए देखते हैं कि क्या मध्यम अवधि का ऋण अल्पकालिक उधारी पर तो नहीं टिका। इसलिए, हम देखते हैं कि देनदारियों और परिसंपत्तियों की संरचना अच्छी तरह से संतुलित है या नहीं। आज बैंक इसे लेकर कहीं अधिक जागरूक हैं। सिस्टम स्तर पर सीडी अनुपात लगभग 80 फीसदी है, जो कुछ महीने पहले की तुलना में काफी अच्छा है। लेकिन यहां कुछ अपवाद भी हैं लेकिन वे काफी सुधार दिखा रहे हैं।
यह साबित करने के कोई ठोस आंकड़े नहीं है कि रकम शेयर बाजार में जा रही है। हालांकि इस बात के संकेत हैं कि रकम शेयर बाजार में जा रही है। इसका कितना हिस्सा शेयर बाजार में जा रहा है, इसका अनुमान लगाना बहुत मुश्किल है। हमने शेयर बाजार में जाने वाले पैसे के बारे में मोटा अनुमान लगाने के लिए आंतरिक रूप से एक त्वरित नमूना सर्वेक्षण किया लेकिन हम उस आंकड़े पर पक्के तौर पर नहीं कह सकते।
बैंकों को खुद ही यह देखने की जरूरत है कि वे जो असुरक्षित ऋण दे रहे हैं, उसका अंतिम उपयोग क्या हो रहा है। बैंकों के लिए यह सुनिश्चित करना चुनौतीपूर्ण है कि ऋण का उपयोग इच्छित उद्देश्यों के लिए किया जा रहा है। आवास के उद्देश्य से या कुछ उपभोक्ता टिकाऊ वस्तुओं आदि के लिए दिए जाने वाले ऋणों के अंतिम उपयोग की निगरानी की जा सकती है। लेकिन असुरक्षित ऋण ओपन ऐंडेड होते हैं और अंतिम उपयोग की निगरानी करना बहुत मुश्किल होता है। लेकिन जहां तक संभव हो, मुझे लगता है कि बैंकों को असुरक्षित ऋणों के अंतिम उपयोग की निगरानी करने की कोशिश करने की जरूरत है।
सीबीडीसी एक प्रायोगिक परियोजना है और अभी भी प्रयोग के चरण में है। और इसे पहले ही दिन से ही शुरू करने का हमारा इरादा भी नहीं था क्योंकि हम मुद्रा से डील कर रहे हैं। डिज़ाइन की सुरक्षा, रक्षा और मजबूती बहुत महत्वपूर्ण है। इसका मौद्रिक नीति पर भी प्रभाव पड़ता है। डिज़ाइन सुविधाओं और संभावित उपयोग के मामले, संभावनाओं के संबंध में हर दिन कुछ न कुछ सीखने को मिलता है। हम सीबीडीसी को पेश करने की जल्दी में नहीं हैं। जब हम सही समय को लेकर आश्वस्त हो जाएंगे, तो हम इसे पेश करेंगे।