निवेश में सफलता इस बात पर निर्भर नहीं करती कि आप कितने बेहतर तरीके से बाजार का अनुमान लगा लेते हैं, बल्कि इस बात पर निर्भर करती है कि आप कितनी देर तक बाजार में बने रहते हैं।
यह पुरानी कहावत समय के साथ हर बार सच साबित हुई है। कई सालों में बाजार ने तेजी और मंदी दोनों का मुंह देखा है। और दिलचस्प यह है कि शायद ही किसी अल्पावधि निवेशक ने बाजार से लगातार कमाया हो।
अल्पावधि और दीर्घावधि निवेशकों में यही अंतर है कि जिस तरह कि समुद्र के किनारे खड़े लोगों में जो जल्दबाजी करता है, बेशक वह हर लहर में नई उम्मीद की खोज करता है, लेकिन अंत में लहरें उसका साथ छोड़ देती हैं और वह अंत में किनारे पर ही खड़ा रहता है। जबकि दूसरी ओर दीर्घावधि निवेशक समुद्र में नाव के साथ उड़ान भरता है।
बेशक इसमें शुरुआत में लहरों का सामना करने में मुश्किल आती हो, लेकिन एक बार कामयाबी हासिल हो जाए तो आसानी से समुद्र पार किया जा सकता है। ऐसी बेहद कम लहरें होती हैं, जो आपको प्रभावित कर सकें, उस पर भी आपकी मजबूती आपको मदद करती है। इसलिए छोटे निवेशक या व्यापारी हमेशा हारने से पहले कम समय के लिए मुनाफा पाते हैं और फिर उन्हें दोबारा से मेहनत करनी पड़ती है।
आखिर मुश्किलें अल्पावधि निवेशकों के ही रास्ते का रोड़ा क्यूं बनती हैं? इसे समझने से पहले हमें समझना होगा कि शेयर बाजार में दो तरह के ही भाव होते हैं, एक डर का और दूसरा जीत का। आर्थिक सिध्दांत कहता है कि बाजार मूल्य मांग और आपूर्ति का संतुलन केन्द्र होता है। अगर गहराई से देखें तो मांग जीत का और आपूर्ति डर का लक्षित करते हैं। दूसरे शब्दों में बाजार मूल्य मिले-जुले डर और बाजार के सभी भागीदारों की खुशी (जीत) का संतुलन केन्द्र है।
अल्पावधि में जब जीत अधिक हो जाती है, बाजार उचित बुनियादी मूल्यांकन से परे ऊपर चढ़ता है और आसमान की बुलंदियों को छूता है। बिक्री के बाद छोटे रूप में पैदा हुए डर से बाजार नीचे गिरता है, जो आगे बढ़ते हुए बर्फ के ढेर की तरह बड़ा होता चलता है। हालांकि दीर्घावधि में डर और जीत दोनों के पास अपने कारण और उचित तर्क होते हैं। दीर्घावधि मूल्यांकन खुद-ब-खुद बुनियादी मूल्यांकन का अनुसरण करता है।
अगर कंपनियां अच्छा विकास करती हैं और मुनाफा कमाती हैं, ऐसे में उनके शेयरों के भाव न बढ़ने के पीछे कोई कारण नजर नहीं आता। ऐसे में सीधे इक्विटी या फिर म्युचुअल फंड के रास्ते से लंबे समय के लिए निवेश में बना रहना बेहतर होगा और कम समय के आकर्षण से परहेज करना चाहिए। लंबे समय से हमारा मतलब कम से कम तीन वर्ष या उससे अधिक है।
सोचिए कि क्या कोई निवेशक बाजार में पिछले साल नवंबर या दिसंबर में आया हो, ताकि कम से कम महीनों में ज्यादा से ज्यादा मुनाफा कमा पाए? ऐसे में उसको कम से कम बाजार में मजबूती आने तक निवेशित रहना होगा या उसे अपने निवेश से निकलने के वक्त बड़े नुकसान का सामना करने के लिए तैयार रहना होगा।
अल्पावधि निवेशक अक्सर बाजार में तेजी को देखते हुए प्रवेश करते हैं। ऐसे में अक्सर अच्छा सौदा उनके बाद ही होता है। बेशक वे निवेश कर मुनाफा कमा भी लें, लेकिन उन्हें लगता है कि अभी भी और कमाया जा सकता है, इसलिए वे कुछ बदलावों के साथ निवेश में बने रहते हैं। पैसा फंसा होने के कारण उन्हें बेच कर निकलने की भी जल्दी होती है।
चलिए इसके लिए हम किसी अल्पावधि निवेशक की एक काल्पनिक स्थिति की मदद लेते हैं, जिसमें भिन्न-भिन्न इक्विटी फंड का वास्तविक शुध्द परिसंपति मूल्य (एनएवी) लेते हैं। यह फंड दिसंबर 1993 में लॉन्च किया गया था, जब हर्षद मेहता के घोटाले के चलते बाजार बिल्कुल ठंडा पड़ा हुआ था।
हालांकि बाजार में फिर से तेजी का दौर आया और अल्पावधि के निवेशक ने 1995 में दोबारा से बाजार में अपनी उपस्थिति दर्ज करवाई और वह भी सिर्फ 1997 में भारी मंदी देखने के लिए, जिसमें उसने नुकसान पर इन्हें बेच दिया। दोबारा से तकनीकी क्षेत्र में भारी तेजी के चलते उसने के बार फिर अपनी हिम्मत बटोरी और 35 रुपये के एनएवी के साथ बाजार में उतर गया।
जब तक बाजार में तेजी बनी रही थी, वह बाजार में अपने फंड के साथ बना रहा और उसने 2000-01 की वैश्विक मंदी को भी झेला। बाजार वैश्विक मंदी के बाद एक बार फिर 2003 में कुद उठे, जिसमें कॉर्पोरेट का बेहतर प्रदर्शन और आर्थिक वृध्दि शामिल हैं। जैसे कि हमेशा अल्पावधि निवेशक करते हैं, वह भी शुरुआत में तो दूर रहा और फिर 40 के एनएवी में बाजार में प्रवेश किया।
बाजार में उसके बाद भी तेजी देखी गई और निवेशक को उम्मीद थी कि अब आखिरकार वह पैसा बना लेगा, राजग (राष्ट्रीय जनतांत्रिक गठबंधन) की हार से पहले बाजार में जबर्दस्त गिरावट आई और निवेशक फंड को बेचने के लिए बेचैन हो उठे, ताकि अभी तक जितना मुनाफा उसने बनाया है, उसे बचा सके।
कुछ समय के बाद फिर से बाजार में तेजी का दौर बना रहा, लेकिन इस बार बाजार के पैंतरों से चकराया हुआ निवेशक बाजार से दूर ही रहा। बाजार में लगातार तेजी बनी रही और निवेशक आखिरकार 80 के एनएवी पर बाजार में दोबारा उतर गया।
जून 2006 में बाजार मुंह के बल गिरा और निवेशक ने अपनी लागत से कुछ ऊंचे दामों में फिर से उन्हें बेच दिया। कहानी ने फिर खुद को दोहराया, निवेशक ने 2007 में 160 के एनएवी पर इक्विटी फंड खरीदा, इस बार भी हालिया मंदी में उसका मुनाफा छूमंतर हो गया, जब एनएवी गिर कर समान स्तर पर पहुंच गया। इससे अल्पावधि निवेशक बुरी तरह से टूट गया और अब उसके पास कोई दिशा तय नहीं थी।
दूसरी ओर दीर्घावधि निवेशक इसी समय से बने रहते हुए उसे, 15 वर्षों से भी कम समय में 163.6 प्रतिशत का रिर्टन मिला। इसका मतलब हुआ कि उस निवेशक को जिसने 10 हजार रुपये निवेशक किए थे, उसे उतनी ही अवधि में 1.6 लाख रुपये मिले।