भारती एयरटेल का शेयर पिछले तीन महीनों के दौरान करीब 30 प्रतिशत कमजोर हुआ है और इस सप्ताह 9 प्रतिशत सुधार से पहले यह अक्टूबर में अपने निचले स्तर पर आ गया। हालांकि शुरुआती गतिरोध तकनीकी कारक थे, जैसे प्रवर्तकों द्वारा हिस्सेदारी बिक्री और एमएससीआई द्वारा बदलाव, जिनसे भारतीय सूचकांक में एयरटेल के भारांक में कमी आई। इसके अलावा क्षेत्र केंद्रित घटनाक्रम से भी इस शेयर में गिरावट को बढ़ावा मिला।
कीमत वृद्घि के अभाव में, पोस्टपेड सेगमेंट में रिलायंस जियो का प्रवेश, फिक्स्ड ब्रॉडबैंड बाजार में आक्रामक दरें और आरजियो की मजबूत बैलेंस शीट ऐसे अन्य कारक थे जिनसे एयरटेल के अल्पावधि परिदृश्य को लेकर बाजार की धारणा कमजोर हुई। हालांकि यह धारणा बरकरार है कि एयरटेल मूल्य निर्धारण के मोर्चे पर लचीलेपन में सक्षम नहीं है, लेकिन उसकी उद्योग हैसियत दरों में वृद्घि के बगैर भी अल्पावधि दबाव का सामना करने के लिहाज से काफी मजबूत है।
निवेशकों की अल्पावधि चिंता पोस्टपेड और फाइबर ब्रॉडबैंड बाजार में मूल्य निर्धारण और एयरटेल पर उसके प्रभाव से जुड़ी हुई है। लेकिन एडलवाइस रिसर्च के प्रणव क्षत्रिय और संदीप अग्रवाल का मानना है कि पोस्टपेड और फाइबर योजनाएं ऐसे क्षेत्रों में हैं जहां आरजियो की कम पैठ है और इसलिए इसे नई मूल्य निर्धारण ताकत के तौर पर नहीं देखा जाना चाहिए। इसका प्रभाव मामूली होगा क्योंकि पोस्टपेड का उद्योग के राजस्व में महज 12 प्रतिशत योगदान है और वायर्ड ब्रॉडबैंड का भारती एयरटेल के भारतीय राजस्व में 5 प्रतिशत का योगदान है। निवेशकों के दिमाग में बड़ा सवाल यह नहीं है कि क्या कीमत वृद्घि होगी बल्कि इसे लेकर है कि इसका समय क्या होगा। पिछली बार कीमत वृद्घि दिसंबर 2019 में हुई थी और उसमें सभी तीनों प्रमुख ऑपरेटरों ने हिस्सा लिया था। बेहद महत्वपूर्ण बात यह है कि आरजियो पर अपनी बैलेंस शीट को कर्ज-मुक्त बनाने का दबाव बना हुआ था। जहां शुरुआती अनुमान इस साल अप्रैल में कीमत वद्घि का दूसरा चरण होने का थाा, लेकिन महामारी और आरजियो द्वारा बड़ी तादाद में कोष उगाही से इसमें विलंब हुआ। विश्लेषकों का कहना है कि मूल्य निर्धारण संबधी बदलाव आरजियो द्वारा कुछ खास लक्ष्य पूरे किए जाने के बाद होगा।
रेनेसां इन्वेस्टमेंट मैनेजर्स के पंकज मुरारका कहते हैं, ‘सबसे बड़ी कंपनी होने की वजह से कीमत वृद्घि को लेकर आरजियो का दबदबा रहेगा। हालांकि कोष उगाही के बाद से वह इसे लेकर जल्दबाजी में नहीं है, लेकिन अपने सस्ते 4जी फीचर फोन की पेशकश के बाद अतिरिक्त बाजार भागीदारी हासिल किए जाने के बाद इसकी जरूरत हो सकती है।’ रिलायंस जियो की राजस्व बाजार भागीदारी करीब 40 प्रतिशत है और उसने इसे बढ़ाकर 50 प्रतिशत करने का लक्ष्य रखा है। हालांकि एडलवाइस का मानना है कि आरजियो यदि अपना प्रतिफल सुधारना चाहती है तो उसे मध्यावधि में दरें बढ़ाने की जरूरत होगी। 40 प्रतिशत की राजस्व बाजार भागीदारी के बावजूद, आरजियो का प्रतिफल वित्त वर्ष 2020 में 8 प्रतिशत के आरओसीई के साथ कमजोर रहा। उनका कहना है कि उसकी ग्राहक वृद्घि धीमी पड़ी है, इसलिए दर वृद्घि आरओसीई बढ़ाने का एकमात्र विकल्प है। टावर/फाइबर परिसंपत्तियों को अलग किए जाने से उसकी नेटवर्क लागत 67 प्रतिशत बढ़ जाएगी। एयरटेल के लिए कुछ चिंताओं में एंट्री-लेवल के ग्राहकों से जुड़े रहना भी शामिल है, जो इसकी वजह है कि कंपनी कीमत वृद्घि को लेकर सतर्कता बरत रही है। ग्राहक रुझान में बदलाव आने और आरजियो के साथ कीमत अंतर (खासकर प्रीपेड सेगमेंट में) बढऩे की आशंका है। प्रीपेड सेगमेंट का उद्योग के ग्राहकों में 95 प्रतिशत योगदान है। विश्लेषकों का मानना है कि कीमत वृद्घि के अभाव के बावजूद एयरटेल अपना एआरपीयू सुधार रही है, जो पिछले साल की पहली तिमाही के 129 रुपये से बढ़कर इस साल की पहली तिमाही में 157 रुपये पर पहुंच गया। दिसंबर में कीमत वृद्घि के अलावा, एआरपीयू को एक साल पहले के स्तरों के मुकाबले 4जी ग्राहकों के बड़े समावेश और ग्राहकों के 2जी से अपग्रेड होने से मदद मिली थी।
एयरटेल की बाजार भागीदारी भी लगातार बढ़ी है और यह जियो से पहले की अवधि के मुकाबले काफी ज्यादा है। सितंबर 2016 में यह एक-चौथाई दूरसंचार बाजार भागीदारी के साथ स्पष्ट रूप से नंबर एक पर थी। जहां जियो ने तब से बाजार को मजबूत बनाया है, वहीं एयरटेल की भागीदारी 28 प्रतिशत से ज्यादा बढ़ी है। विश्लेषकों का मानना है कि कीमतों में यथास्थिति को देखते हुए भी हालात एयरटेल और आरजियो के लिए सकारात्मक होंगे, क्योंकि उन्होंने अपनी बाजार भागीदारी मजबूत बनाई है और यह क्षेत्र धीरे धीरे प्रमुख दो कंपनियों वाले बाजार की ओर बढ़ रहा है और एयरटेल नंबर दो बनी हुई है।
