आदित्य पुरी के नेतृत्व में एचडीएफसी बैंक का सफर काफी दमदार रहा है। यह पिछले दो दशक के दौरान भारतीय उद्योग जगत की सबसे अधिक सफल दास्तां रही है। इस दौरान बैंकिंग क्षेत्र में सरकारी बैंकों का वर्चस्व था लेकिन पुरी ने एचडीएफसी बैंक को इस अवधि में एक स्टार्टअप से उद्योग का अग्रणी बैंक बना दिया जो स्टॉक एक्सचेंज पर सबसे अधिक प्रभावशाली कंपनियों में शामिल है।
एचडीएफसी बैंक करीब 6 लाख करोड़ रुपये के बाजार पूंजीकरण के साथ उद्योग में अग्रणी है। साथ ही वह एक अच्छे मार्जिन के साथ सबसे अधिक लाभप्रद बैंक भी बना हुआ है। सेंसेक्स में शामिल सभी कंपनियों के कुल बाजार पूंजीकरण में एचडीएफसी बैंक की हिस्सेदारी करीब 8 फीसदी है जो 2008 के वैश्विक वित्तीय संकट के समय महज 2 फीसदी था।
एचडीएफसी बैंक को देश में खुदरा ऋण वितरण और बड़े पैमाने पर वेतन खाते खोलने का श्रेय दिया जाता है। बैंक के कुल राजस्व में उसके खुदरा बैंकिंग कारोबार से प्राप्त राजस्व की हिस्सेदारी करीब 50 फीसदी है। यही कारण है कि कठिन आर्थिक वातावरण में भी एचडीएफसी बैं वृद्धि दर्ज करने में समर्थ रहा है। उसका यह मॉडल इतना सफल साबित हुआ कि अन्य प्रतिस्पर्धी बैंक भी आक्रामक तरीके से उसका अनुसरण कर रहे हैं।
हालांकि, पुरी की सबसे बड़ी सफलता बैंक की लाभप्रदता को बरकरार रखते हुए लंबे समय तक लगातार वृद्धि दर्ज करना और उसे डूबते ऋण के चंगुल से बचाना रही है। पिछले एक दशक के दौरान एचडीएफसी बैंक के डूबते ऋण के मुकाबले प्रावधान की रकम उसकी कुल परिसंपत्ति का करीब 0.5 फीसदी रही है जबकि इस दौरान उसकी परिसंपत्तियों में 10 गुना और शुद्ध ब्याज आय में 8 गुना बढ़ोतरी हुई।
पुरी ने 1994 में एचडीएफसी बैंक की स्थापना के बाद से ही जबरदस्त नेतृत्व का उदाहरण पेश किया है और उनके उत्तराधिकारियों को उनकी सफलताओं का अनुकरण करना भी मुश्किल हो सकता है।
