कोविड-19 महामारी की दूसरी लहर से देश में उपभोक्ता ऋणों की मांग में खासी कमी देखी गई है। इससे पहले वित्त वर्ष 2021 की तीसरी तिमाही में ऐसे ऋणों की मांग दोबारा बढ़ी थी लेकिन अप्रैल में महामारी की दूसरी लहर आने के बाद विभिन्न उत्पाद श्रेणियों के लिए उपभोक्ता ऋणों की मांग एक बार फिर कम हो गई। भारतीय रिजर्व बैंक (आरबीआई) ने छमाही वित्तीय स्थायित्व रिपोर्ट (एफएससार) में यह बात कही है।
एक और चिंता की बात है कि खुदरा ग्राहकों की साख भी प्रभावित हो रही है। उपभोक्ता ऋणों में आवास ऋण, जायदाद के एवज में ऋण, वाहन ऋण, दोपहिया ऋण, व्यासायिक वाहनों के लिए ऋण आदि आते हैं। कारोबार ऋण, उपभोक्ता वस्तु, शिक्षा एवं स्वर्ण ऋण और क्रेडिट कार्ड भी इसी श्रेणी में आते हैं।
आरबीआई ने एफएसआर रिपोर्ट में कहा है कि तीसरी तिमाही में वापसी करने के बाद वित्त वर्ष 2020-21 की चौथी तिमाही में उपभोक्ता ऋणों की स्थिति सुधर चुकी थी लेकिन कोविड-19 महामारी की दूसरी लहर ने समीकरण पूरी तरह बिगाड़ दिया। रिपोर्ट में कहा गया है कि सितंबर 2020 में कर्ज की किस्तों के भुगतान से अस्थायी छूट समाप्त होने के बाद उपभोक्ताओं की साख कमजोर हुई है। हालांकि इसके बाद भी ऋण मंजूर होने की दर अच्छी रही है क्योंकि कर्जदाताओं ने बेहतर साख वाले ग्राहकों को ऋण देने पर अपना ध्यान केंद्रित करना शुरू कर दिया। हालांकि ऋण लेने वाले सक्रिय ग्राहकों की संख्या एवं बकाया रकम की स्थिति पिछले वर्ष के मुकाबले कमजोर रही।
जहां तक आवास ऋण बाजार का सवाल है तो वित्त वर्ष 2021 की तीसरी एवं चौथी तिमाहियों में देश के बड़े शहरों में जायदाद का पंजीकरण एवं इनकी बिक्री महामारी से पहले के औसत स्तर से अधिक रही। कुछ राज्यों द्वारा स्टांप शुल्क कम करने की इसमें अहम भूमिका रही।
हालांकि बैंकिंग तंत्र में ऋण आवंटन की दर मोटे तौर पर सुस्त ही रही। महामारी के कारण मांग में कमी और बैंकों के जोखिम लेने से पीछे हटने के कारण ऋण आवंटन में तेजी नहीं आ पाई। वित्त वर्ष 2021 में बैंकों का ऋण आवंटन सालाना आधार पर 5.4 प्रतिशत दर से बढ़ा। यह आंकड़ा पिछले चार वित्त वर्षों में सबसे कमजोर रहा। वित्त वर्ष 2021 की पहली तिमाही तक ऋण आवंटन की रफ्तार कमजोर ही रही।
एफएसआर में कहा गया है कि सार्वजनिक एवं निजी क्षेत्रों के बैंकों के ऋण आवंटन की दर सालाना आधार पर क्रमश: 3.2 प्रतिशत और 9.9 प्रतिशत दर से बढ़ी।
