किसी भी वित्तीय लेन-देन के लिये पैन(स्थायी खाता नंबर) की आवश्यकता को अनिवार्य बनाने के प्रस्ताव पर जीवन बीमा कंपनियां बहुत गंभीर हैं। वित्त मंत्री पी चिदंबरम ने अपने बजट भाषण में सभी वित्तीय लेनदेन के लिये पैन कार्ड को अनिवार्य बनाने का प्रस्ताव दिया था। वित्त मंत्री के इस प्रस्ताव से बीमा कंपनियों के बीच यह संदेह हो गया कि क्या बीमा प्रोडक्ट भी वित्तीय लेनदेन की सीमा के भीतर आ जाएंगे।
भारतीय जीवन बीमा निगम के एक उच्च अधिकारी ने बिजनैस स्टैंडर्ड से कहा कि यदि पैन कार्ड बीमा के लिये अनिवार्य हो जाता है तो इससे गांवों में बीमा कंपनियों के व्यापार को गहरा नुकसान पहुंचेगा। इस समय यह कुल बीमा उद्योग के 40 फीसदी से भी अधिक है।
उन्होंने यह भी कहा कि इससे बीमा कंपनियों को आईआरडीए के निर्धारित मानकों को पूरा करने में भी दिक्कतें आयेंगी। आईआरडीए के मानकों के अनुसार एक बीमा कंपनी को अपने पहले,दूसरे,तीसरे,चौथे,पांचवें और सांतवे साल में ग्रामीण क्षेत्र में कुल बीमा पॉलिसियों का क्रमश: सात फीसदी, 12 फीसदी,14 फीसदी, 16 फीसदी और 19 फीसदी करना अनिवार्य है।
उन्होंने यह भी कहा कि गांवों के लोगों को पैन कार्ड के बारे में अभी जानकारी नही है और वे यह भी नही जानते है कि इसे कैसे पाया जाता है विशेषकर कस्बों और गांवो में। यहां तक कि कस्बों और गांवों के निवेशकों के ऊपर से पैन कार्ड की अनिवार्यता समाप्त कर देनी चाहिये।
बीमा उद्योगों के सूत्रों के अनुसार किसी भी मामले में अगर कोई व्यक्ति एक लाख के ऊपर का बीमा कराता है तो एंटी मनी लाँडरिंग पालिसी के तहत उसे कुछ जमानतें देनी पड़ती है। मेट्रो शहरों में बीमा कंपनियां बीमा करते समय पैन कार्ड और अन्य वित्तीय कागजात जमा करते है जबकि ग्रामीण क्षेत्रों में जमीन और संपत्ति कर की रसीदों को बीमा धारकों से इकठ्ठा किया जाता है। इसलिये वित्त मंत्री की पैन कार्ड अनिवार्य बनाने की आकांक्षाएं इन दो प्रकिया से भी पूरी हो सकती है।
बीमा उद्योग के सूत्रों का कहना है कि बीमा एक सामाजिक उपकरण है जो किसी आकस्मिक आपदा से सुरक्षा देता है। यह कोई उत्पाद नहीं है जिसे बेचा जा सके बल्कि यह एक वायदा है। इसके अतिरिक्त भारतीय जीवन बीमा निगम ने बजट में घोषित 1000 करोड़ रुपये की ग्रामीण बीमा योजना के बारे में विस्तार से बताने के लिये वित्त मंत्रालय को लिखा है।
