रिजर्व बैंक द्वारा सीआरआर और रेपो रेट में की गई वृध्दि के बाद बैंकरों को इस बात की सबसे ज्यादा चिंता है कि इससे बैंक कर्जों के डिफाल्टर बढ़ जाएंगे।
एक सार्वजनिक बैंक के अधिकारी का कहना है कि रिजर्व बैंक ने जिन दरों में वृध्दि की है,ये सभी प्राइम लेंडिंग रेट से जुड़ी हुई है। इसलिए यहां एक यह भी संभावना बढती है कि अनियमितताएं बढ़ जाए। बैंकर का कहना है कि बैंक जोखिम वाली परिसंपत्तियों को लोन जारी करने से हिचकिचाएंगे।
रिजर्व बैंक केइस कदम का प्रभाव क्रेडिट बैंकों की क्रेडिट ग्रोथ पर भी पडेग़ा जो कि अभी भी रिजर्व बैंक के अनुमान से ज्यादा है। मौजूदा वित्त्तीय वर्ष केपिछले दो महीनों में बैंकों के क्रेडिट ग्रोथ में करीब 25 फीसदी की वृध्दि हुई है जबकि रिजर्व बैंक का पूरे साल में 20 फीसदी की क्रेडिट ग्रोथ का अनुमान था। भारतीय रिजर्व बैंक के इस कदम से बैंकों की क्रेडिट ग्रोथ भारतीय रिजर्व बैंक के अनुमानित स्तर पर आ जाएगी।
भारतीय रिजर्व बैंक के इस कदम का सबसे ज्यादा प्रभाव बैंकों की जमा दर और ऋण दर पर भी पड़ेगा जबकि बैंक पिछले कुछ समय से अपनी जमा दरों और ऋण दरों में वृध्दि से हिचकिचा रहे थे। यहां तक कि भारतीय रिजर्व बैंक द्वारा अप्रैल में सीआरआर में 0.75 फीसदी की बढ़ोतरी और 11 जून को रेपो रेट बढ़ाने के बाद भी बैंकों ने जमा दरों और ऋण दरों में कोई इजाफा नही किया था। लेकिन अब बैंकों के पास अपनी जमा दरों और ऋण दरों को बढ़ाने के अलावा कोई रास्ता नहीं है।
भारतीय रिजर्व बैंक द्वारा शिकंजा लगातार कसने से यह स्थिति आगे और बिगड़ सकती है। बैंकों के सामने अब मजबूरी होगी कि वे लाभ को बरकरार रखने के लिए यह बोझ ग्राहकों पर डाले। सीआरआर में 0.50 फीसदी की बढ़ोतरी से बैकिंग सिस्टम पर 170 से 180 अरब रुपयों का बोझ पडेग़ा।