शेयर बाजार के पिछले एक साल के परिदृश्य पर नजर डालें तो जो बात साफ तौर पर उभरती है वह यह कि सूचना -प्रौद्योगिकी यानी आईटी शेयरों की नैया हिचकोले खा रही है।
बाजार में छायी खामोशी को देखते हुए जरूरत है कि हालत पर एक नजर दौड़ायी जाए।भारतीय आईटी उद्योग पर मायूसी के बादल छाये हैं और अमेरिकी सब-प्राइम संकट के असर ने इसमें आग में घी का काम किया। बीते वित्तीय वर्ष के दौरान रुपये की मजबूती ने भी साफ्टवेयर कंपनियों को खासी चोट पहुंचाई। डॉलर के मुकाबले रुपया करीब 12 फीसदी मजबूत हुआ और सॉफ्टवेयर की दुनिया के खिलाड़ियों को काफी नुकसान सहना पड़ा।
अब इस वित्त वर्ष में इन कंपनियों की कमाई में और सेंध लगने के आसार हैं। आईटी पार्क या विशेष आर्थिक क्षेत्र के बाहर स्थित कंपनियों पर कर लगाने की तैयारी कर ली गई है।बुरी खबरें सिर्फ यहीं खत्म नहीं हो जाती क्योंकि अमेरिकी अर्थव्यवस्था नरमी के दौर से गुजर रही है और जानकारों के हिसाब से यह दौर मंदी में तब्दील हो जाएगा। ऐसे हालात में आईटी शेयरों में निवेशकों की दिलचस्पी कम हो गई है तो यह कोई आश्चर्य की बात नहीं है। सॉफ्टवेयर कंपनियों के बाजार मूल्य भी काफी गिर गए हैं।
जाहिर है ऐसे में आईटी बजट और भारतीय कंपनियों को मिलने वाले ठेकों दोनों में कमी आएगी। लेकिन एक पहलू और भी है। दुनिया भर की आईटी कंपनियों से मिल रहे सकारात्मक संकेतों से लगता है कि यह नरमी भारतीय सॉफ्टवेयर कंपनियों को आउटसोर्सिंग के ज्यादा ठेके मुहैया कराएगी।
उदाहरणों पर नजर दौड़ाएं तो एक्सेंचर ने तकनीकी परामर्श के क्षेत्र में बेहतर प्रदर्शन किया तो आईबीएम और कॉग्नीजेंट ने 2008 में 38 फीसदी की राजस्व वृद्धि दर हासिल की। इन उदाहरणों को देख कर ऐसा लगता है कि सूचना प्रौद्योगिकी क्षेत्र के हालात शायद इतने भी बुरे नहीं हैं।
वैश्विक परिदृश्य
ग्लोबल आईटी 2008 मार्केट आउटलुक शोध के मुताबिक इस साल आईटी उत्पाद और सेवाओं की खरीद में अमेरिकी बाजार काफी सुस्त रहेगा , जबकि एशिया-प्रशांत क्षेत्र से बहुत ज्यादा खरीद की उम्मीद है। फॉरेस्टर के इस शोध के आंकड़े कहते हैं कि साल 2008 में दुनिया भर में आईटी उत्पादों की खरीद करीब 65 खरब डालर रहने की उम्मीद है। इसमें से 380 अरब डॉलर साफ्टवेयर उत्पादों और सेवाओं पर खर्च किए जाएंगे जिसमें भारतीय आईटी कंपनियों को महारत हासिल है।
साल 2008 में सॉफ्टवेयर उत्पादों के लिए बजट प्रावधान 8 फीसदी रहने के आसार हैं और यह साल 2007 के मुकाबले 3 प्रतिशत कम है। यह अनुमान डॉलर की कमजोरी का अंदाजा लगाते हुए किए गए हैं। फॉरेस्टर के हिसाब से इस साल आईटी क्षेत्र में ज्यादा मांग एशिया -प्रशांत और तेल का निर्यात करने वाले पूर्वी यूरोप, मध्य पूर्व और अफ्रीका से होगी और ये आईटी क्षेत्र की नैया पार लगांएगे।
एक अन्य रिपोर्ट यूरोपियन आईटी 2008 मार्केट आउटलुक में फॉरेस्टर ने अनुमान लगाया है कि यूरोपीय आईटी बाजार अमेरिकी बाजार की तुलना में तेजी से विकसित होगा। इसकी वजह यह है कि यूरोप में कं प्यूटरों और दूसरे संचार उपकरणों में निवेश के बजाए सॉफ्टवेयर क्षेत्र में निवेश पर ज्यादा बल दिया जा रहा है। यूरोप में आईटी उत्पादों और सेवाओं की खरीद 3.5 फीसदी की दर से बढ़ने की उम्मीद है जबकि अमेरिका में यह 2.8 फीसदी रहने के आसार हैं।
हालांकि यूरोपीय आईटी बाजार अमेरिका के मुकाबले काफी छोटा है। अगर अर्थशास्त्रियों और बाजार के जानकारों की मानें तो अमेरिका में मंदी के चलते कंपनियों को कीमतें कम करनी होंगी और इसका असर यह होगा कि आउटसोर्सिंग बढ़ेगी। जाहिर है, यह भारतीय कंपनियों के लिए फायदे का सौदा होगा। इसलिए भले ही आईटी उत्पादों और सेवाओं के बाजार में गर्मी नहीं है लेकिन दुनिया में अपनी पहचान बनाने वाली बाजार की बड़ी कंपनियों को खास नुकसान नहीं होगा।
आउटसोर्सिंग का हाल
बिरला सनलाइफ के आईटी फंड मैनेजर पेनकर का कहना है कि आईटी शेयरों में सेकुलर ऑफशोरिंग बनी हुई है। हालांकि अमेरिकी अर्थव्यवस्था में छायी मंदी के कारण इन शेयरों को मुश्किलों का सामना करना पड़ सकता है। इसके अतिरिक्त, अमेरिकी कंपनियों पर पड़ने वाले कीमत के दबाव के कारण मध्यम एवं लंबे समय की ऑफशोरिंग में बढ़ोतरी हुई है। विश्लेषकों का मानना है कि इन बड़ी कंपनियों की हालत में अगले साल भी किसी प्रकार की सुधार की संभावना नहीं है।
इसका सिर्फ एक कारण है कि भारतीय कंपनियों का निश्चित कीमत निर्धारण मानदंड है जिससे तुलनात्मक रूप से निर्धारण होता है। इससे अमेरिकी कंपनियों के साथ कीमतों के निर्धारण में काफी फायदा होगा। इसके बावजूद कीमतों में दबाव के चलते भारतीय कंपनियों ने आउटसोर्सिंग के लिये अपनी कीमत में पांच से सात फीसदी के अंतर से बढ़ोतरी की है।
सारे नये समझौते कंपनियां इन्ही दरों पर कर रही हैं। लगातार कमजोर होते डॉलर के कारण सौदे का नवीकरण भी एक से तीन फीसदी के ऊंचे कीमत पर हो रहा है। डॉलर के मूल्यों में पुन: सुधार के बाद ही कीमतों में गिरावट की आशा की जा सकती है।
किसमें है दम
भारतीय आईटी परिदृश्य की बात की जाए तो दुनिया भर में नाम कमाने वाली बाजार की बड़ी कंपनियों (लार्ज कैप) में इतना दम है कि वह किसी भी तरह की मंदी के बावजूद अपना वजूद कायम रख सकें। इसी वजह से इन्फोसिस, टाटा कंसल्टेंसी सर्विस, सत्यम, विप्रो और एचसीएल टेक्नॉलॉजिज का रूतबा बरकरार है। हालांकि पिछले कुछ महीनों में इन कंपनियों को खासी मार पड़ी है और उनके बाजार मूल्य में भी ऐतिहासिक गिरावट दर्ज की गई है।
इसका मतलब यह कि इन पर मंडरा रहे संकट के बादलों में से कई बरस चुके हैं। हालांकि टीसीएस को छोड़ कर किसी भी कंपनी ने बजट या राजस्व में कमी की बात नहीं स्वीकारी पर अप्रैल की शुरूआत में चौथी तिमाही के परिणाम के आने पर सब कुछ साफ हो जाएगा। बैंकिग औैर वित्तीय सेवाओं की मांग में कमी आने की संभावना है लेकिन साफ्टवेयर कंपनियां स्थिति पर काबू पाने के लिए अपनी ताकत आंक रही हैं।
कुल मिलाकर, यह कहा जा सकता है कि अमेरिकी मांग में नरमी आने के बावजूद भारतीय कंपनियों की हालत इतनी भी बुरी नहीं है। हालांकि कर के बोझ और जोखिम प्रबंधन व्यवस्था में कमियों के चलते छोटी और मंझोली सॉफ्टवेयर कंपनियों को नुकसान होगा। नतीजतन लंबी अवधि और जोखिम लेने में रुचि न रखने वाले निवेशक बड़ी सॉफ्टवेयर कंपनियों की ओर आकर्षित होंगे, क्योंकि वे फायदे का सौदा साबित होती हैं।