राष्ट्रीय वित्तीय रिपोर्टिंग प्राधिकरण (एनएफआरए) के चेयरपर्सन के तौर पर अजय भूषण पांडेय का तीन वर्ष का कार्यकाल सोमवार को खत्म हो रहा है। रुचिका चित्रवंशी के साथ एक साक्षात्कार में उन्होंने कहा कि नियामक के निरीक्षण के बाद ऑडिट कंपनी ने सुधारात्मक कदम उठाए हैं जो संकट के प्रमुख कार्यों में से एक है। साक्षात्कार के प्रमुख अंशः
आप इन तीन वर्षों के कार्यकाल को कैसे देखते हैं?
हम ऑडिटिंग को एक संस्था के रूप में स्थापित और स्थिर करने में सक्षम हुए हैं। किसी भी देश के विकास चक्र में निवेश की आवश्यकता होती है और यह सार्वजनिक और निजी स्रोतों या विदेशों से संभव होता है। इसके लिए भरोसे और बेहतर कॉरपोरेट प्रशासन की आवश्यकता होगी। आप यह कैसे सुनिश्चित करते हैं कि जो लोग पैसा लगा रहे हैं वे दर्ज किए जा रहे वित्तीय आंकड़ों पर भरोसा कर सकें? ऐसे में लेखांकन और ऑडिटिंग की भूमिका महत्वपूर्ण हो जाती है। वर्ष 2047 तक हम एक विकसित देश बनना चाहते हैं। यह तभी होगा जब भारतीय वित्तीय रिपोर्टिंग प्रणाली में भरोसा होगा।
उच्च न्यायालय के हाल में आए आदेश (एनएफआरए में कार्यों के विभाजन के मुद्दे पर) के बारे में आप क्या सोचते हैं?
हमने अदालत के आदेश के उस हिस्से को उच्चतम न्यायालय में चुनौती दी है जिसने अपने अंतरिम आदेश में हमें अपनी कार्यवाही जारी रखने और अंतिम आदेशों को तब तक रोकने की अनुमति दी है जब तक कि वह इस मामले पर फैसला नहीं करता जो उचित है। हमें यकीन है कि हम कॉरपोरेट प्रशासन में पारदर्शिता लाने के लिए जो सुधार लाने की कोशिश कर रहे हैं उसके बारे में न्यायपालिका के हर स्तर को आश्वस्त करने में सक्षम होंगे।
आपने अपने कार्यकाल के दौरान निरीक्षण का चलन शुरू किया उसके पीछे क्या विचार था?
एनएफआरए चार धुरी पर काम करता है। पहला, ऑडिटिंग और लेखांकन मानक स्थापित करना। हमने खुद को अंतरराष्ट्रीय मानकों के अनुरूप ढालने की कोशिश की है। दूसरा, क्षमता निर्माण क्योंकि अच्छे मानकों को लागू करने के लिए आपको अधिक लोगों की आवश्यकता होती है। तीसरा पहलू है निरीक्षण। पूरी प्रणाली को देखना बहुत अधिक महत्त्वपूर्ण है। यह किसी भी संगठन के लिए सच है चाहे वह रेस्तरां, होटल या निजी कंपनी, या यहां तक कि सरकार ही क्यों न हो। यदि आपकी प्रणाली अच्छी है तब परिणाम शानदार होंगे। चौथा अनुशासनात्मक कार्रवाई है।
पिछले तीन वर्षों में आपने कितने अनुशासनात्मक आदेश दिए हैं?
लगभग 100 से अधिक। हमें संख्या पर नहीं जाना चाहिए। आदर्श तौर पर मैं सबसे कम संख्या में अनुशासनात्मक आदेश पारित करना चाहूंगा और हमारे विभिन्न दूसरे कदमों के माध्यम से लेखा परीक्षकों के बीच मेहनत और जिम्मेदारी की भावना लाने का प्रयास करना चाहूंगा। चार्टर्ड अकाउंटेंट प्रतिभाशाली लोग हैं जिन्होंने एक सख्त पाठ्यक्रम पूरा किया है। समय के साथ अनुशासनात्मक कार्यवाही की संख्या कम होनी चाहिए।
क्या एनएफआरए के पास कुशल पेशेवरों का एक स्थायी काडर होना चाहिए?
किसी भी अच्छे संगठन का स्वरूप मिला-जुला होना चाहिए। एनएफआरए के पास एक स्थायी काडर है। हमें समय-समय पर बाजार विशेषज्ञों की सेवाएं भी लेनी चाहिए। हम सरकारी विभागों, संस्थानों या अन्य नियामकों के लोगों को प्रतिनियुक्ति (डेप्यूटेशन) पर लेते हैं। हमने युवा पेशेवरों सहित विशेषज्ञों को भी जोड़ा है।
इंस्टीट्यूट ऑफ चार्टर्ड अकाउंटेंट्स ऑफ इंडिया और एनएफआरए के बीच अक्सर टकराहट होती है। आप इनके संबंधों को किस तरह देखते हैं?
आईसीएआई और एनएफआरए एक दूसरे के पूरक रहे हैं। मैंने चार (आईसीएआई) अध्यक्षों के साथ काम किया है और उनके साथ काफी अच्छे समीकरण भी बने। विचारों में मतभेद होगा लेकिन हमें उस पहलू का सम्मान करना चाहिए। हमारे बोर्ड की संरचना ही ऐसी है कि इसमें आईसीएआई के तीन प्रतिनिधि शामिल हैं।
क्या आपको लगता है कि बदलती भू-राजनीतिक स्थिति ऑडिटिंग पेशे और इसके नियमन को प्रभावित कर रही है?
भारत के संबंध में मुझे बड़ी क्षमता दिखाई देती है। हमारे पास छह लाख से अधिक चार्टर्ड अकाउंटेंट हैं और इसके अतिरिक्त कई अन्य वित्त पेशेवर भी इसमें जुड़ रहे हैं।