भारतीय बीमा विनियामक एवं विकास प्राधिकरण (आईआरडीएआई) ने बीमा कंपनियों को इक्विटी डेरिवेटिव के माध्यम से जोखिम का बचाव करने की अनुमति देने का निर्णय किया है। इससे कंपनियों को बाजार के उतार-चढ़ाव से निपटने और पॉलिसीधारकों के रिटर्न की रक्षा करने में मदद मिलेगी। हालांकि, इस कदम से उनकी निवेश योजनाओं में बदलाव की संभावना नहीं है।
मौजूदा नियामकीय व्यवस्था के तहत आईआरडीएआई बीमा कंपनियों को फॉरवर्ड रेट एग्रीमेंट (एफआरए), ब्याज दर स्वैप और एक्सचेंज ट्रेडेड ब्याज दर वायदा (आईआरएफ) के रूप में रुपया ब्याज दर डेरिवेटिव में सौदे करने की इजाजत देता है। फिक्स्ड इनकम डेरिवेटिव के अलावा, बीमा कंपनियों को खरीदारों को सुरक्षा देने के लिए क्रेडिट डिफॉल्ट स्वैप (सीडीएस) में भी सौदों की अनुमति है।
बीमा कंपनियों द्वारा इक्विटी बाजार में निवेश के बढ़ते रुझान और इक्विटी कीमतों में उतार-चढ़ाव को देखते हुए आईआरडीएआई ने महसूस किया कि बीमा कंपनियों को इक्विटी डेरिवेटिव के माध्यम से हेजिंग की अनुमति की जरूरत है। जीवन बीमा कंपनियां आमतौर पर अपने पोर्टफोलियो का करीब 30-35 प्रतिशत हिस्सा इक्विटी बाजार और शेष फिक्स्ड इनकम सेगमेंट में निवेश करती हैं।
भारती अक्सा लाइफ इंश्योरेंस के मुख्य निवेश अधिकारी राहुल भुस्कुटे के अनुसार आईआरडीएआई का यह कदम खासकर जीवन बीमा कंपनियों के लिए महत्त्वपूर्ण है क्योंकि सामान्य बीमा कंपनियों की तुलना में इक्विटी में उनका ज्यादा निवेश है।
उन्होंने कहा, ‘हालांकि इससे हमारी निवेश रणनीति में ज्यादा बदलाव नहीं आएगा, लेकिन इक्विटी पोजीशन का आसानी से प्रबंध करने में मदद मिलेगी। कभी-कभी डेरिवेटिव का उपयोग करके पोजीशन को सुरक्षित बनाना बेहतर होता है।’
यूनिट-लिंक्ड पॉलिसियों में बीमा कंपनियों 100 प्रतिशत इक्विटी में निवेश कर सकती हैं या इक्विटी और डेट दोनों में निवेश कर सकती हैं। पारंपरिक फंडों में, इक्विटी आवंटन या तो निश्चित हो सकता है या इसमें बदलाव किया जा सकता है। औसतन, जीवन बीमा कंपनियां 35:65 का इक्विटी और डेट अनुपात रखती हैं। हालांकि यह कंपनियों के बीच अलग-अलग भी हो सकता है।
ऐक्सिस मैक्स लाइफ इंश्योरेंस के सीआईओ सचिन बजाज ने कहा, ‘आईआरडीएआई का यह कदम बीमा कंपनियों को बाजार की अस्थिरता का प्रभावी तरीके से मुकाबला करने और पॉलिसीधारकों के रिटर्न को सुरक्षित बनाने में मददगार होगा। इक्विटी डेरिवेटिव का लाभ उठाकर बीमा कंपनियां उतार-चढ़ाव वाले बाजारों में बेहतर तरीके से काम कर सकती हैं जिससे उनके निवेश पोर्टफोलियो में स्थिरता और वृद्धि सुनिश्चित हो सकती है।’
इस बीच इक्विटी बाजार के विशेषज्ञों का मानना है कि बीमा नियामक के निर्णय से सिंगल स्टॉक ऑप्शन में तरलता बढ़ाने में मदद मिलेगी। आईआरडीएआई के दिशा-निर्देशों के अनुसार बीमा कंपनियां अपनी इक्विटी में होल्डिंग के विरुद्ध शेयरों, सूचकांक वायदा और विकल्प में हेजिंग की खरीदारी में सक्षम होंगी जो उनकी जोखिम और पोजीशन लिमिट पर निर्भर करेगी। इक्विटी डेरिवेटिव का इस्तेमाल सिर्फ हेजिंग के लिए ही किया जाएगा। इक्विटी डेरिवेटिव
में किसी भी प्रकार के ओवर-द-काउंटर (ओटीसी) एक्सपोजर पर प्रतिबंध लगाया गया है।
इस समय बीमा कंपनियां नियामक के दिशा-निर्देशों का अध्ययन कर रही हैं और वे आगामी वित्त वर्ष 2026 के दौरान ही नीतियां बनाएंगी। एचडीएफसी लाइफ के सीआईओ प्रसून गजरी ने कहा, ‘दिशा-निर्देश हाल में जारी किए गए हैं। हम इनकी समीक्षा कर रहे हैं और अपने सभी हितधारकों से परामर्श के बाद अनुकूल नीति तैयार करेंगे।’