चौथे चरण में जिन 96 सीट पर सोमवार को मतदान होगा, उनमें बहुत सारी ऐसी हैं, जो अपने सतत विकास लक्ष्य को हासिल नहीं कर सकी हैं। इसी साल फरवरी में ‘कार्यवाही : भारत में जनसंख्या, स्वास्थ्य और सामाजिक-आर्थिक कल्याण को लेकर निर्वाचन क्षेत्र स्तर पर वर्ष 2030 के लिए सतत विकास लक्ष्यों से संबंधित आंकड़े’ शीर्षक से प्रकाशित रिपोर्ट का बिज़नेस स्टैंडर्ड द्वारा किए गए विश्लेषण के अनुसार आधे से अधिक निर्वाचन क्षेत्र जनसंख्या, स्वास्थ्य और सामाजिक-आर्थिक लक्ष्यों से संबंधित 33 संकेतकों में से 17 में बहुत पीछे छूट गए हैं। एसवी सुब्रमण्यन, अमर पटनायक और रॉकली किम द्वारा तैयार यह रिपोर्ट अकादमिक जनरल लांसेट में प्रकाशित हुई है।
महिलाओं में एनीमिया की समस्या से निपटने में सभी 96 निर्वाचन क्षेत्र अपने लक्ष्य से बहुत पीछे रह गए हैं। इसी प्रकार जो महिलाएं गर्भवती नहीं हैं, उनमें भी एनीमिया दूर के लक्ष्य को ये निर्वाचन क्षेत्र हासिल नहीं कर सके। गर्भवती महिलाओं में एनीमिया से निपटने में लगभग 96 प्रतिशत निर्वाचन क्षेत्र लक्ष्यों से पीछे हैं। इसी प्रकार लगभग इतने ही निर्वाचन क्षेत्र कुपोषण और मोटापे से निपटने के लक्ष्यों को प्राप्त नहीं कर पाए।
लक्ष्यों से पिछड़ने का मतलब ऐसे निर्वाचन क्षेत्रों से है जो 2021 तक एसडीजी लक्ष्यों को हासिल करने में नाकाम रहे और जिन्होंने 2016 से 2021 के बीच कम से कम या नकारात्मक प्रगति दर्ज की है।
यदि वे अपने प्रदर्शन में सुधार नहीं करते और इसी गति से आगे बढ़े तो वे 2030 तक भी अपने लक्ष्यों को प्राप्त करने में नाकाम रहेंगे। दूसरी ओर, लक्ष्य की तरफ बढ़ते निर्वाचन क्षेत्रों में वे शामिल हैं, जो वर्ष 2021 तक तो अपने एसडीजी लक्ष्य को प्राप्त नहीं कर पाए लेकिन उन्होंने 2016 और 2021 के बीच आवश्यक सुधार दर्ज किया है और यदि वे इसी गति से आगे बढ़े तो 2030 तक अपने लक्ष्यों को हासिल कर लेंगे।
इन आंकड़ों के अनुसार 90 प्रतिशत निर्वाचन क्षेत्र ऐसे हैं जो महिलाओं के पास फोन की पहुंच, स्वास्थ्य बीमा तथा 18 वर्ष से कम उम्र की बच्चियों की शादी रोकने जैसे लक्ष्य को पाने से पिछड़ गए हैं।
राष्ट्रीय परिवार स्वास्थ्य सर्वेक्षण 2019-21 (एनएफएचएस-5) के विश्लेषण के अनुसार पश्चिम बंगाल के बीरभूम निर्वाचन क्षेत्र में 80.2 प्रतिशत महिलाएं एनीमिया की शिकार हैं और इस क्षेत्र की स्थिति पूरे देश में सबसे खराब दर्ज की गई है। एनएफएचएस-4 में यह आंकड़ा 63.4 प्रतिशत पर था। कुपोषण और मोटापे के संकेतकों के मामले में महाराष्ट्र का नंदूरबार सूची में सबसे नीचे है।
अध्ययन के अनुसार निर्वाचन क्षेत्रों से संबंधित ये आंकड़े जिला विकास समन्वयक और निगरानी समिति (दिशा) की योजनाओं की सफलता के लिहाज से बहुत महत्त्वपूर्ण होते हैं। ये आंकड़े संबंधित निर्वाचन क्षेत्र में चिह्नित समस्याओं से बेहतर तरीके से निपटने में अधिकारियों की बहुत अधिक मदद करते हैं। निर्वाचन क्षेत्रों ने अन्य संकेतकों में काफी सुधार दिखाया है।
कुल 97.9 प्रतिशत निर्वाचन क्षेत्रों ने 10 से 14 आयु की युवतियों में गर्भावस्था से जुड़ी चिंताओं से निपटने के लक्ष्यों को हासिल कर लिया है। इसके अलावा बहुआयामी गरीबी और उसके बाद बिजली की पहुंच एवं महिलाओं में तंबाकू सेवन की समस्या से निपटने जैसे लक्ष्यों को हासिल करने में भी काफी हद तक कामयाबी मिली है। आंध्र प्रदेश के मछलीपत्तनम में 90 प्रतिशत महिलाओं के पास बैंक खाता है।
यह आंकड़ा चौथे चरण में चुनाव में जाने वाले सभी 96 निर्वाचन क्षेत्रों में सबसे अधिक है। मछलीपत्तनम क्षेत्र में महिलाओं में तंबाकू की लत छुड़ाने की दिशा में भी अच्छा प्रदर्शन कर रहा है और यहां तंबाकू का सेवन करने वाली महिलाओं की दर बहुत कम है। इसके अलावा मध्य प्रदेश का इंदौर ऐसा निर्वाचन क्षेत्र हैं के 100 प्रतिशत घरों तक बिजली पहुंच गई है और इस मामले में इसका प्रदर्शन सबसे अच्छा आंका गया है।