अधिकांश भारतीय चुनाव प्रचार के लिए जेनरेटिव आर्टिफिशल इंटेलिजेंस (जेन एआई) के उपयोग को भरोसेमंद नहीं मानते। उनका कहना है कि चुनाव अभियान के दौरान इस पर प्रतिबंध लगा देना चाहिए। एडोबी के एक शोध में 82 प्रतिशत से अधिक लोगों ने कहा कि प्रत्याशियों को चुनाव प्रचार के लिए जेन-एआई का इस्तेमाल नहीं करने देना चाहिए।
एडोबी द्वारा सोमवार को जारी फ्यूचर ऑफ ट्रस्ट रिपोर्ट के अनुसार लगभग 94 प्रतिशत भारतीयों का मानना है कि चुनाव की शुचिता बरकरार रखने और डीपफेक एवं भ्रामक सूचनाओं के हानिकारक प्रभाव से इसे बचाने के लिए सरकार तथा आईटी कंपनियों को मिलकर काम करना चाहिए।
एडोबी में वरिष्ठ निदेशक (कंटेंट ऑथेंटिसिटी इनिशिएटिव) एंडी पारसंस ने कहा, ‘चुनाव की पवित्रता को बनाए रखने के लिए सरकार को सबसे पहले और महत्त्वपूर्ण कदम के रूप में न्यू मीडिया के प्रति लोगों में ज्यादा से ज्यादा जागरूकता फैलानी चाहिए। लोगों को यह समझना होगा कि डीपफेक आखिर कितनी खतरनाक चीज है। उन्हें धोखा खाने से बचने के लिए आज के दौर में उपलब्ध तमाम एआई टूल के इस्तेमाल के बारे में अच्छी समझ विकसित करनी चाहिए। जैसे सामग्री की गोपनीयता का पालन कैसे किया जाए।’
पारसंस कहते हैं, ‘हमें बहुत जल्द ऐसे संसार में प्रवेश करना होगा जहां अच्छे कलाकार अपने काम के साथ सामग्री की गोपनीयता को भी अटैच करें और ऑनलाइन सामग्री का इस्तेमाल करने वाले लोगों को इसकी गोपनीयता के बारे में जागरूक करना होगा।’
इस रिपोर्ट को तैयार करने के लिए 2,000 लोगों से बात की गई और ऑनलाइन रहने के दौरान भ्रामक सूचनाओं से सामना होने एवं जेन-एआई के प्रभाव को लेकर उभरती चिंताओं पर उनके अनुभव एकत्र किए गए।
इस शोध में महत्त्वपूर्ण तथ्य यह उभर कर सामने आया कि लगभग 92 प्रतिशत लोगों ने कहा कि ऑनलाइन सामग्री की सत्यता का पता लगाने के लिए कोई उचित टूल जरूर होना चाहिए। लगभग 86 प्रतिशत भारतीय यह भी मानते हैं कि भ्रामक सूचनाएं और हानिकारक डीपफेक भविष्य में होने वाले चुनावों को बहुत अधिक प्रभावित करेगा।
भ्रामक सूचनाओं का जैसे-जैसे प्रसार हो रहा है, 81 प्रतिशत उत्तरदाताओं ने कहा कि उन्हें इस बात का डर रहता है कि वे जो ऑनलाइन सामग्री का इस्तेमाल कर रहे हैं, कहीं वह झूठी, भ्रामक या तोड़मरोड़ कर तो पेश नहीं की गई।
लगभग 93 प्रतिशत भारतीय इस बात से सहमत दिखे कि ऑनलाइन रहते समय यह जानना बहुत जरूरी है कि जो सामग्री वे देख रहे हैं कहीं वह जेन-एआई के जरिए तो तैयार नहीं की गई। इसके अलावा, 94 प्रतिशत उत्तरदाताओं ने कहा कि बच्चों को भी मीडिया के प्रति जागरूक किया जाना चाहिए और ये चीजें उनके स्कूल पाठ्यक्रम में ही शामिल की जानी चाहिए। इससे इंटरनेट पर भ्रामक सूचनाओं को फैलने से रोकने में मदद मिलेगी।