वैश्विक वित्तीय संकट का असर भारत पर कम से कम पड़े, इसके लिए सरकार विभिन्न नीतिगत उपायों पर चर्चा कर रही है।
इन उपायों में से बैंकिंग क्षेत्र में सुधार, उद्योगों का विनियंत्रण, घाटे में चल रही सार्वजनिक क्षेत्र की कंपनियों की नीलामी, रिटेल क्षेत्र में विदेशी निवेश की अनुमति, श्रम कानून में संशोधन और अन्य लंबित पड़े विधेयकों, मसलन-दिल्ली किराया नियंत्रण कानून लागू करना शामिल है।
सूत्रों का कहना है कि सरकार इन तमाम मुद्दों पर विचार कर रही है। इसका मकसद भारतीय अर्थव्यवस्था के विकास को पटरी पर लााना है और चालू वित्त वर्ष में 9 फीसदी आर्थिक विकास दर के लक्ष्य को हासिल करना है।
संप्रग सरकार का मानना है कि लंबित पड़े सुधारवादी विधेयकों को लागू करके वैश्विक वित्तीय संकट से भारत को बहुत हद तक बचाया जा सकता है।सरकार की योजना है कि मौद्रिक मापदंडों और अन्य नीतिगत निर्णयों को अगले साल से लागू करने की है, जिसकी समीक्षा रिजर्व बैंक करेगा।
सरकार की ओर से उठाए गए इन कदमों से निवेश और माइक्रो-इकोनॉमिक परिदृश्य में बदलाव आ सकता है। जिन योजनाओं पर विचार चल रहा है, उनमें ग्रीन-फील्ड निजी ग्रामीण-कृषि बैंकों में 100 फीसदी प्रत्यक्ष विदेशी निवेश की अनुमति देना शामिल है। इसके तहत इन बैंकों को अनुमति होगी कि वे ग्रामीण, अर्ध ग्रामीण और अर्ध-शहरी क्षेत्रों में अपनी सुविधानुसार शाखाएं खोल सकें।
हालांकि इसमें कुछ बातों को लेकर विवाद भी है, जिसमें क्षेत्रीय ग्रामीण बैंकों और सार्वजनिक क्षेत्र के बैंकों की ग्रामीण शाखाओं के अधिग्रहण का मुद्दा शामिल है।इसके अलावा, लाभ में चल रही गैर-नवरत्न का दर्जा प्राप्त सार्वजनिक क्षेत्र की कंपनियों के 5 से 10 फीसदी शेयरों की बिक्री के मुद्दे पर भी विचार किया जा रहा है, जिसे अंतिम रूप दिया जा सकता है। इसका अर्थ यह है कि सरकार उद्योगों पर से अपना नियंत्रण कम करना चाहती है।
लाभ में चल रही सार्वजनिक क्षेत्र की इकाइयों के कुछ शेयरों को बेचने की योजना
कॉन्ट्रैक्ट श्रम कानून में सुधार लाने की योजना
कुछ क्षेत्रों में विदेशी प्रत्यक्ष निवेश की अनुमति देना