नीति आयोग ने पिछले हफ्ते जारी बहुआयामी गरीबी सूचकांक (MPI) जारी किया था, जिसमें 2015-16 और 2019-21 के बीच देश भर में गरीबी में तेज कमी दिखाई गई थी। मगर 10 राज्यों और केंद्रशासित प्रदेशों के 24 जिलों में उसी दौरान गरीबी बढ़ गई, जिसका कारण संभवत: शहरों की ओर पलायन था।
दिल्ली में 11 में से पांच जिलों (मध्य, उत्तर, पश्चिम, दक्षिण पश्चिम और नई दिल्ली) में बहुआयामी गरीबी बढ़ गई। पंजाब में पांच जिलों (बठिंडा, फरीदकोट, जालंधर, लुधियाना, रूपनगर), केरल में चार जिलों (कासरगोड, कोट्टायम, कोझिकोड, पलक्कड़) और हरियाणा (अंबाला, यमुनानगर), तमिलनाडु (चेन्नई, डिंडीगुल) तथा सिक्किम (मांगन, नामची) में भी गरीबी बढ़ी। अरुणाचल प्रदेश, मेघालय, हिमाचल प्रदेश और छत्तीसगढ़ के एक-एक जिले में भी उस दरम्यान गरीबी में इजाफा देखा गया।
जवाहरलाल नेहरू विश्वविद्यालय में असिस्टेंट प्रोफेसर हिमांशु कहते है कि प्रवासियों की लगातार आमद के कारण इन जिलों में बहुआयामी गरीबी के शिकार लोगों का अनुपात बढ़ा हो सकता है। ये प्रवासी देश के अंदरूनी इलाकों से पलायन कर शहर आते हैं। उन्होंने कहा, ‘चूंकि भारत के शहरों और कस्बों में भीतरी इलाकों से लोगों का आना लगा रहता है, इसलिए उन्हें बुनियादी सुविधाएं मुहैया कराना सरकार के लिए चुनौती बन जाता है। इसलिए हमें शहरी गरीबी की ओर ध्यान देना चाहिए, जिस पर नीति निर्माताओं को ध्यान नहीं के बराबर है।’
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चौथे और पांचवें राष्ट्रीय परिवार स्वास्थ्य सर्वेक्षणों के बीच के आंकड़े बताते हैं कि इस बीच मेघालय के वेस्ट खासी हिल्स जिले में बहुआयामी गरीब आबादी का अनुपात सबसे अधिक बढ़ गया। पहले इनकी आबादी 39.6 फीसदी थी मगर पांचवें सर्वेक्षण तक यह बढ़कर 52.5 फीसदी हो गई। इसके बाद बीजापुर, उत्तरी दिल्ली, फरीदकोट और बठिंडा जिलों में गरीबों की आबादी सबसे अधिक बढ़ी।