केंद्रीय वित्त मंत्री निर्मला सीतारमण ने लोक भविष्य निधि (पीपीएफ) जैसी लघु बचत योजनाओं पर ब्याज दरों में कटौती के निर्णय को आज वापस लेने की घोषणा की। उन्होंने कहा कि ‘चूक’ के कारण ब्याज दरों में कटौती की अधिसूचना जारी हुई थी।
सीतारमण ने ट्वीट किया, ‘भारत सरकार की लघु बचत योजनाओं पर ब्याज दर वही रहेगी जो 2020-2021 की अंतिम तिमाही में थी, यानी जो दरें मार्च 2021 तक थीं। पहले दिया गया आदेश वापस लिया जाएगा।’
आर्थिक मामलों के विभाग द्वारा ब्याज दरों में कटौती के आदेश के करीब 12 घंटे बाद वित्त मंत्री ने इसे वापस लेने की घोषणा की। बाद में आर्थिक मामलों का विभाग ने लघु बचत योजनाओं की ब्याज दरों में कटौती के फैसले को निरस्त करने का औपचारिक आदेश जारी किया। इससे विपक्षी दलों को मौका मिल गया और उन्होंने आरोप लगाया कि चार राज्यों में जारी विधानसभा चुनावों को देखते हुए ऐसा किया गया है।
सरकार ने बुधवार को नए वित्त वर्ष की पहली तिमाही के लिए लघु बचत योजनाओं पर ब्याज दरों में 50 से 100 आधार अंक की कटौती की घोषणा की थी। बीते एक साल में यह दूसरा मौका था जब लघु बचत पर ब्याज दरें घटाई गईं हैं। इससे पहले 2020-21 की अप्रैल-जून तिमाही के लिए लघु बचत योजनाओं पर ब्याज दरों में 70 से 140 आधार अंक की कमी की गई थी।
वित्त मंत्री के बयान से स्पष्ट है कि लोक भविष्य निधि (पीपीएफ) पर ब्याज दर पहले की तरह 7.1 फीसदी बरकरार रहेगी जबकि बुधवार को इसे घटाकर 6.4 फीसदी किया गया था। अन्य लघु बचत योजनाओं पर भी ब्याज दरें पहले की तरह ही बनी रहेंगी।
उदाहरण के लिए राष्ट्रीय बचत प्रमाण पत्र (एनएससी) पर 5.9 के बजाय पहले की तरह 6.8 फीसदी और किसान विकास पत्र पर 6.5 फीसदी ब्याज मिलता रहेगा। सुकन्या समृद्घि योजना की ब्याज दरों में कटौती कर 6.9 फीसदी कर दिया गया था लेकिन वित्त मंत्री द्वारा कटौती वापस लेने से अब इस पर 7.6 फीसदी ब्याज बरकरार रहेगा।
विपक्षी दल वित्त मंत्रालय के इस कदम की आलोचना कर रहे हैं। सीतारमण को टैग करते हुए कांग्रेस की नेता प्रियंका गांधी वाड्रा ने ट्वीट किया, ‘सरकार का गुरुवार का निर्णय चुनाव को देखते हुए लिया गया है।’
अटल बिहारी वाजपेयी सरकार में वित्त मंत्री रहे यशवंत सिन्हा को कई निर्णय वापस लेने के लिए भी जाना जाता है। सिन्हा ने ट्वीट किया, ‘आज मैं बहुत दुखी हूं। मैं समझता था कि फैसले वापस लेने का मेरा एकाधिकार रहा है। लेकिन इस सरकार ने मुझे पीछे छोड़ दिया। श्रम कानून, लघु बचत पर ब्याज दरें आदि उदाहरण भर हैं। रोल बैक मोदी।’ सिन्हा अब तृणमूल कांग्रेस में हैं।
नवीनतम उपलब्ध आंकड़ों (2017-18) के अनुसार राष्ट्रीय लघु बचत कोष (एनएसएसएफ) में करीब 15 फीसदी सकल योगदान पश्चिम बंगाल का ही है। शुद्घ योगदान की बात करें तो पश्चिम बंगाल की हिस्सेदारी 2017-18 के दौरान एनएसएसएफ में 13.2 फीसदी रही। 15 फीसदी शुद्घ योगदान के साथ महाराष्ट्र पहले नंबर पर है। तमिलनाडु में भी विधानसभा चुनाव हो रहे हैं और एनएसएसएफ में इस राज्य का योगदान 6.6 फीसदी है।
पश्चिम बंगाल उन गिने-चुने राज्यों में है जहां एनएसएसएफ योगदान में वृद्घि देखी जा रही है। 2007-08 में एनएसएसएफ में इसकी हिस्सेदारी 12.4 फीसदी थी, जो 2009-10 में बढ़कर 14.1 फीसदी हो गई। 2015-16 में यह 14 फीसदी से ज्यादा थी। दूसरी ओर तमिलनाडु का एनएसएसएफ का योगदान इस दौरान थोड़ा घटा है।
