भारत ने ‘ग्लोबल साउथ’ की आवाज बनने की पेशकश करते हुए दक्षिण के देशों की ओर से दुनिया को ‘प्रतिक्रिया, पहचान, सम्मान और सुधार’ का नया एजेंडा दिया है। गुरुवार को शुरू हुए दो दिवसीय विशेष शिखर सम्मेलन, वॉयस ऑफ ग्लोबल साउथ, के पहले सत्र को प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने डिजिटल माध्यम से संबोधित किया। प्रधानमंत्री ने कहा, ‘हमारा (ग्लोबल साउथ) भविष्य सबसे अधिक दांव पर लगा है।
अधिकतर वैश्विक चुनौतियों के लिए ग्लोबल साउथ जिम्मेदार नहीं है, लेकिन इसका सबसे अधिक प्रभाव हम पर ही पड़ता है।’ सम्मेलन में शामिल होने वाले कई देश निवेशवाद के दौर से गुजरे हैं। ‘ग्लोबल साउथ’ एशिया, अफ्रीका और दक्षिण अमेरिका के देशों को कहा जाता है।
प्रधानमंत्री ने कहा कि दुनिया संकट की स्थिति में है और इससे निपटने के लिए जहां तक भारत की सहायता का प्रश्न है, ‘आपकी आवाज, भारत की आवाज है। आपकी प्राथमिकताएं, भारत की प्राथमिकताएं हैं।’
प्रधानमंत्री ने कहा कि दुनिया को एक समावेशी और संतुलित अंतरराष्ट्रीय एजेंडा तैयार करके ग्लोबल साउथ की प्राथमिकताओं का जवाब देना होगा। इसे यह स्वीकार करना होगा कि सभी वैश्विक चुनौतियों पर ‘साझी लेकिन अलग-अलग जिम्मेदारियों’ का सिद्धांत लागू होता है। मोदी ने साथ ही सभी देशों की सम्प्रभुता का सम्मान, कानून का शासन और मतभेदों एवं विवादों का शांतिपूर्ण निपटारा करने तथा अधिक प्रासंगिक बने रहने के लिये संयुक्त राष्ट्र सहित अंतरराष्ट्रीय संस्थानों में सुधार की वकालत की।
प्रधानमंत्री ने कहा कि हमने पिछले वर्ष के पन्ने को पलटा है जिसमें हमने युद्ध, संघर्ष, आतंकवाद और भू राजनीतिक तनाव को देखा। उन्होंने कहा कि इनमें खाद्य, उर्वरक, ईंधन की बढ़ती कीमतें, जलवायु परिवर्तन के कारण उत्पन्न आपदाएं और कोविड महामारी के दूरगामी आर्थिक प्रभाव शामिल रहे। यह अनुमान लगाना भी कठिन है कि अस्थिरता की यह स्थिति कितने समय तक चलेगी।
प्रधानमंत्री ने कहा कि वर्तमान और पिछली वैश्विक चुनौतियों के लिए विकासशील देश जिम्मेदार नहीं हैं। उन्होंने कहा कि दुनिया जिन समस्याओं का सामना कर रही है, उनमें से अधिकांश विकसित देशों द्वारा इन पर थोपी गई हैं। उन्होंने कहा, ‘हमने इसे कोविड महामारी, जलवायु परिवर्तन, आतंकवाद और के प्रभावों में देखा है। यहां तक कि यूक्रेन विवाद भी इसी का हिस्सा है। हमारी समाधान की भूमिका या आवाज से भी इन देशों पर असर नहीं पड़ता है।’
यह कहते हुए कि भारत ने हमेशा अपनी विशेषज्ञता और ज्ञान को अल्प-विकसित देशों के साथ साझा करने की कोशिश की है, उन्होंने याद दिलाया कि भारत का तरीका पूरे विश्व और सभी क्षेत्रों में विकास के लिए सबके साथ मिलकर काम करना है। प्रधानमंत्री ने कहा, ‘हमने महामारी के दौरान 100 से अधिक देशों को दवाओं और टीकों की आपूर्ति की।
भारत हमेशा साझा भविष्य को निर्धारित करने में विकासशील देशों के साथ तत्परता से खड़ा रहा है।’ उन्होंने आगे कहा, ‘चूंकि भारत इस वर्ष जी20 अध्यक्षता कर रहा है, यह स्वाभाविक है कि हमारा उद्देश्य ग्लोबल साउथ की आवाज को बढ़ाना है। ग्लोबल साउथ के लोगों को अब विकास के फायदे से बाहर नहीं रखा जाना चाहिए। हमें मिलकर वैश्विक राजनीतिक और वित्तीय प्रशासन को नया स्वरूप देने का प्रयास करना चाहिए। यह असमानताओं को दूर कर अवसरों को बढ़ा सकता है, विकास का समर्थन कर सकता है और प्रगति और समृद्धि ला सकता है।’
मोदी ने कहा कि विकासशील देशों का एक साझा इतिहास है। पिछली शताब्दी में, ‘हमने विदेशी शासन के खिलाफ अपनी लड़ाई में एक-दूसरे का समर्थन किया। हम इस शताब्दी में फिर से नागरिकों के कल्याण के लिए ऐसे ही मिलकर काम कर सकते हैं।’ प्रधानमंत्री का भाषण आने वाले महीनों में चर्चाओं का मुद्दा होगा क्योंकि भारत इस बार जी20 की अध्यक्षता कर रहा है जिसमें कई वैश्विक नेता हिस्सा लेंगे।