रिजर्व बैंक द्वारा रेपो रेट और सीआरआर में किए गए इजाफे के बाद बैंक एक बार फिर अपने कर्ज और जमा की दरें बढ़ाने की तैयार कर रहे हैं।
इस बढ़ोतरी का असर उनकी 2008-09 के लिए अनुमानित कारोबार वृध्दि और मार्जिन पर पड़ेगा। बैंक इस स्थिति के लिए बिलकुल तैयार नहीं थे। अधिकांश बैंक तो जून में रिजर्व बैंक द्वारा किए गए रेपो रेट और सीआरआर में की गई वृध्दि के प्रभावों से ही निपट रहे थे।
ताजा वृध्दि के बाद अधिकांश बैंकों का कहना है कि उनकी एसेट लाइबेलिटी कमेटी जल्दी बैठक करने वाली है। वह इस इजाफे के बाद बाजार की प्रतिक्रिया, परिसंपत्तियों और मार्जिन पर पड़ने वाले प्रभाव का आकलन करेगी। फंडों की लागत दो कारणों से बढ़ने जा रही है। पहला तो रेपो रेट में हुए 0.5 फीसदी इजाफे के कारण और दूसरा सीआरआर में हुए 0.25 फीसदी के इजाफे के कारण। यह दोनों दरें 30 अगस्त से लागू होंगी।
बैंकों के लिए इसके मायने होंगे उनके पास बिना किसी ब्याज मार्जिन के बड़े अनुपात में जमा एकत्र होना। एसबीआई केचेयनमैन ओपी भट्ट ने बताया कि रिजर्व बैंक के इस निर्णय से बैंकों के ब्याज मार्जिन पर दबाव बढ़ेगा। जून 2008 को शुध्द ब्याज मार्जिन(एनआईएम) पिछले साल के 3.27 फीसदी के मुकाबले गिरकर 3.03 फीसदी हो गया था। बैंक ऑफ इंडिया के सीएमडी टीएस नारायणस्वामी ने बताया कि उन्हें कर्ज की दरों में 0.5 फीसदी की बढ़ोतरी की उम्मीद है। उनकी बैंक अगले दो-तीन सप्ताहों में इस पर कोई निर्णय लेगा।
उसने पिछले माह पीएलआर में 0.5 फीसदी का इजाफा किया था, इस बार भी वह इन दरों में इतना या फिर इससे अधिक बढ़ोतरी कर सकता है। बदली परिस्थितियों में बैंक न केवल अपनी दरों में परिवर्तन करने जा रहे हैं, बल्कि वे 2008-09 के लिए वृध्दि दर के अनुमान को भी परिवर्तित करने जा रहे हैं।
सेंट्रल बैंक के कार्यकारी निदेशक के सुब्रमण्यम ने बताया कि बैंकों को अब कर्ज वृध्दि दर के लक्ष्य को भी कम करना होगा। एसबीआई के एक अन्य वरिष्ठ अधिकारी ने बताया कि बैंक अपने जमा वृध्दि के अनुमान को भी घटा रहा है क्योंकि सीआरआर में वृध्दि के बाद दूसरे अतिरिक्त स्रोतों को मोबिलाइज करने के लिए अधिक फंड की आवश्यकता होगी।