आरबीआई की मौद्रिक नीति समिति (एमपीसी) के सदस्य नागेश कुमार ने मनोजित साहा के साथ एक ईमेल साक्षात्कार में कहा कि जहां मुद्रास्फीति में नरमी से नीतिगत गुंजाइश मिलती है, वहीं व्यापार नीति की अनिश्चितताओं पर भी नजर रखने की जरूरत होगी। उनसे बातचीत के अंश:
एमपीसी के ब्योरे में कहा गया है कि मुद्रास्फीति में नरमी के पहलू से नीतिगत गुंजाइश मिलेगी। आपको आगे और कितनी ढील की संभावना दिख रही है?
आर्थिक वृद्धि को रफ्तार देने के लिए फरवरी 2025 में एमपीसी की बैठक के बाद से रीपो दर तीन बार घटाई गई है और इस तरह कुल 100 आधार अंक की कमी की गई है। रीपो दर कटौती का असर उधारी और जमा दरों में देर से दिखा है। हालांकि, जून 2025 की नीतिगत समीक्षा में 50 आधार अंक की भारी कटौती से इसका असर तेजी से दिखा।
अब तक, कुल मिलाकर, नए ऋणों और जमाओं के लिए उधारी दरों में 71 आधार अंक और जमा दरों में 87 आधार अंक की कमी आ चुकी है। इस देरी को देखते हुए आने वाले महीनों में उधारी दरों में और नरमी आ सकती है, खासकर यह देखते हुए कि तरलता अभी भी अधिशेष में है क्योंकि सीआरआर में कटौती का असर हुआ है। भविष्य के नीतिगत कदम वृद्धि और मुद्रास्फीति के बनते समीकरणों पर निर्भर करेंगे।
आपने एमपीसी ब्योरे में उल्लेख किया है कि व्यापार संबंधी अनिश्चितताओं से निजी निवेश पर प्रतिकूल प्रभाव पड़ा है। निजी निवेश को बढ़ावा देने के लिए भारत के नीतिगत उपाय क्या होने चाहिए?
अमेरिका द्वारा भारत पर 25 फीसदी टैरिफ और रूसी कच्चे तेल की खरीद पर बतौर दंड अतिरिक्त 25 फीसदी टैरिफ लगाने की घोषणा का असर हुआ है और व्यापार नीति संबंधी अनिश्चितताओं से निजी निवेश धारणा पर प्रतिकूल प्रभाव पड़ा है। द्विपक्षीय व्यापार समझौते पर बातचीत जारी है। लेकिन अभी इसमें सफलता नहीं मिली है।
यूक्रेन युद्ध को रोकने के लिए अमेरिकी राष्ट्रपति की कूटनीतिक पहल भी चल रही है। इन पहल का अमेरिका को भारत के निर्यात पर लागू होने वाले टैरिफ की दरों और रूसी कच्चे तेल की खरीद की वजह से भारत पर लगाए जाने वाले दंडात्मक टैरिफ पर भी असर पड़ सकता है। जाहिर है, निवेशक भारत के निर्यात पर लागू होने वाले अंतिम टैरिफ के बारे में अधिक स्पष्टता का इंतजार करना चाहेंगे।
अमेरिकी टैरिफ से घरेलू वृद्धि किस तरह से प्रभावित होगी?
भारत पर अमेरिकी टैरिफ बड़ी चिंता का विषय हैं। लेकिन चूंकि भारतीय अर्थव्यवस्था मुख्य रूप से घरेलू खपत और निवेश से ज्यादा संचालित होती है, निर्यात से कम, इसलिए मुख्य चिंता वृद्धि दर पर पड़ने वाले प्रभाव के बारे में उतनी नहीं है, जितनी कि संभावित रोजगार नुकसान और एमएसएमई पर पड़ने वाले असर के बारे में है।
ऐसा इसलिए कि अमेरिका भारत के श्रम-प्रधान उत्पादों जैसे कपड़ा और परिधान, चमड़े के सामान, रत्न और आभूषण, झींगा तथा अन्य खाद्य उत्पादों के निर्यात के लिए एक प्रमुख बाजार है, जिन पर एमएसएमई का दबदबा है। उम्मीद है कि रूसी तेल खरीद पर दंडात्मक टैरिफ वापस ले लिया जाएगा और मौजूदा द्विपक्षीय व्यापार वार्ताएं अंततः भारतीय निर्यात पर अमेरिकी शुल्क को कम करके अधिक सहज स्तर पर लाने में सफल होंगी।