सामान्य श्रेणी के वैतनिक रोजगार में बीते पांच वर्षों के दौरान सर्वाधिक गिरावट हुई है। सालाना आवधिक श्रमबल सर्वेक्षण (PLFS) के आंकड़ों के मुताबिक 2018-19 में सामान्य (अन्य) वर्ग की नियमित वैतनिक रोजगार में हिस्सेदारी 33 प्रतिशत थी और यह 2022-23 में गिरकर 26.8 प्रतिशत हो गई। लिहाजा इसमें 6.2 प्रतिशत की गिरावट आई।
इसकी तुलना में ‘अन्य पिछड़ा वर्ग’ (OBC) में 2.4 प्रतिशत की गिरावट आई। वर्ष 2022-23 में ओबीसी श्रमिकों की हिस्सेदारी गिरकर 19.8 प्रतिशत हो गई जो 2018-19 में 22.2 प्रतिशत थी। इसके बाद अनुसूचित जनजाति श्रेणी में 0.7 प्रतिशत की गिरावट आई।
वर्ष 2022-23 में इस श्रेणी की वैतनिक रोजगार में हिस्सेदारी गिरकर 12.3 प्रतिशत हो गई जबकि यह 2018-19 में 13 प्रतिशत थी। इस क्रम में अनुसूचित जाति आबादी के रोजगार गुणवत्ता में सबसे कम गिरावट आई। वर्ष 2022-23 में अनुसूचित जाति (SC) का वैतनिक रोजगार गिरकर 20.3 प्रतिशत हो गया जबकि यह 2018-19 में 20.8 प्रतिशत था।
बाथ यूनिवर्सिटी के विजिटिंग प्रोफेसर संतोष मेहरोत्रा ने कहा कि ऐतिहासिक रूप से देखें तो हाशिये पर पड़े समुदायों जैसे अनुसूचित जाति और अनुसूचित जनजाति की वैतनिक रोजगार में कम हिस्सेदारी थी।
अर्थव्यवस्था के रोजगार के अवसर पैदा नहीं करने के कारण ‘सामान्य श्रेणी’ सर्वाधिक प्रभावित हुई है। उन्होंने कहा, ‘ऐतिहासिक रूप से वैतनिक रोजगार में बेहतर शिक्षित ‘सामान्य श्रेणी’ का दबदबा था और इसमें भी आमतौर पर शहरी लोगों का था।