उप्पल मोटर्स हीरो होंडा की एक डीलर है। नोएडा की यह डीलर यह उम्मीद लगाए बैठी थी कि इस त्योहारी मौसम में उसकी बिक्री में 25-30 फीसदी का इजाफा हो जाएगा।
लेकिन उसके सारे अरमान धरे के धरे रह गए। उप्पल मोटर्स के वी. उप्पल ने कहा, ‘तरलता में कमी की घटना बहुत गलत समय पर घट रही है। ग्राहकों के पास पैसा नहीं है। वित्तीय कंपनियां भी पैसा मुहैया कराने की स्थिति में नहीं हैं, क्योकि उनके पास भी पैसे की कमी है।’ उन्होंने कहा, ‘हमलोग तब ही स्टॉक कर रहे हैं, जब कोई ग्राहक बुकिंग करवाता है और उसका एडवांस भुगतान करता है। बैंक ने भी अपने हाथ खड़े कर दिए हैं।
ग्राहक भी परेशान हो गए हैं, क्योंकि आईसीआईसीआई और सिटी फाइनेंशियल जैसी वित्तीय संस्था दो पहिए वाहन के लिए वित्तीय सहायता देना बंद कर चुकी है। कुछ ही कंपनियां हैं, जो थोड़ा बहुत वित्तीय सहायता मुहैया करा रही है।
फुलरटॉन या चोलमंडलम डीबीएस जैसी कंपनियां भी बाइक की कुल कीमत का मात्र 60 फीसदी ही फाइनैंस कर रही हैं। ये कंपनियां पहले 80 से 85 फीसदी वित्त मुहैया कराती है। अब हालत यह है कि ग्राहकों को अपने स्तर पर कुल कीमत का 40 फीसदी इंतजाम करना पड़ रहा है।
ऊंची ब्याज दर की वजह से कार की बिक्री पर भी प्रभाव पड़ा है। कार निर्माता कंपनियां त्योहारी मौसम में भी किसी तरह की छूट नहीं दे रही है। नकदी में कमी की वजह से व्यापार बुरी तरह प्रभावित हो रहा है। कार्यगत पूंजी की कमी, वित्तीय प्रबंधन का डर आदि की वजह से कंपनियां अपनी किसी व्यापारिक गतिविधियों को अंजाम देने में डर रही हैं।
कंपनियां अपने विस्तार की गति भी धीमी कर चुकी है और नई परियोजनाएं तो ठंडे बस्ते में डाल दी गई हैं। नकदी की कमी की वजह से बैंक और वित्तीय संस्थान कर्ज देना कम कर चुके हैं और कार्यगत कर्ज पूंजी के प्रवाह को नियंत्रित करने में जुट गई हैं।
जीवीके ग्रुप के सीएफओ आइजक जॉर्ज ने कहा, ‘बैंक भुगतान में देरी कर रहा है। वह ब्याज की दरों में एक या दो फीसदी के इजाफे के बारे में भी सोच रहा है।’ हालांकि पूंजी की कमी से कंपनियों के इन्फ्रास्ट्रक्चर व्यापार को ज्यादा आघात नहीं पहुंचा है।बैंक कंपनियों को ज्यादा पूंजी लेने पर मना कर रहा है। अगर किसी कंपनी की कार्यगत पूंजी सीमा 500 करोड़ रुपये है और उसने बैंक से 200 करोड़ रुपये कर्ज ले रखा है, तो बैंक आगे और कर्ज देने से मना कर रहा है।
कंपनियों का मानना है कि हालिया सीआरआर कटौती से जो 60,000 करोड़ रुपये जुटाए गए हैं, वह बाजार की स्थिति को संभालने के लिए पर्याप्त नही है। जॉर्ज के मुताबिक, ‘जब आरबीआई डॉलर बेचता है, तो उसके बदले में रुपये लेता है। एक तरफ आप रुपये को बाजार में फैला रहे हैं और दूसरी तरफ रुपये की कमजोरी से रुपया बाजार से गायब होता जा रहा है।