भारतीय रिजर्व बैंक (आरबीआई) के कोविड-19 राहत पैकेज से अगले 12 से 24 महीनों के लिए वित्तीय संस्थाओं को थोड़ी राहत पहुंचेगी। हालांकि ऐसा मोटे तौर पर चिह्नित संपत्ति गुणवत्ता समस्याओं की पहचान और समाधान को विलंबित करने की कीमत पर होगा। रेटिंग एजेंसी फिच ने यह कहा है।
फिच ने एक वक्तव्य में कहा कि इस बात के आसार बढ़ते जा रहे हैं कि कोविड-19 संक्रमणों की भारत में ताजा लहर से वित्तीय संस्थाओं पर जोखिम बढ़ेगा जिससे आर्थिक रिकवरी से हासिल हुई हाल की लय समाप्त होगी। उसने कहा, ‘हम उम्मीद करते हैं कि महामारी के ताजा लहर से आर्थिक गतिविधि को लगने वाला झटका 2020 के मुकाबले कम विनाशकारी होगा हालांकि मामलों और मौतों की संख्या इस बार बहुत अधिक है। प्राधिकारी काफी सीमित तरीके से लॉकडाउन को लागू कर रहे हैं और कंपनियों तथा लोगों ने ऐसे तरीकों को अपना लिया है जिससे प्रभाव को सहन किया जा सकता है।’ संकेतकों से पता चलता है कि अप्रैल और मई के दौरान गतिविधि में कमी आई है जिससे देश की आर्थिक रिकवरी में देरी हो हो सकती है और नए मामलों की संख्या अत्यधिक उच्च स्तर पर है। संकट लंबे समय तक बने रहने का जोखिम है और हमारे आधारभूत मामलों से अधिक विस्तार हो सकता है खासकर तब जबकि लॉकडाउन को अधिक क्षेत्रों या राष्ट्रीय स्तर पर लागू किया जाता है। फिच ने कहा, ‘हम उम्मीद करते हैं कि यदि आर्थिक दबाव के संकेत बढ़ते हैं तो रिजर्व बैंक वित्तीय क्षेत्र को समर्थन देने के लिए अतिरिक्त कदम उठा सकता है। इनमें ऋण गारंटी योजनाएं या पिछले वर्ष मार्च से अगस्त के दौरान लाई गई व्यापक ऋणस्थगन योजना जैसे कदम शामिल हो सकते हैं।’