रिजर्व बैंक की ओर से फ्लोरिंट रेट पर दिए जाने वाले कर्ज की बेंचमार्क की समीक्षा की जा रही है। इससे बैंकों की ओर से दिया जाने वाला करीब 70-75 फीसदी कर्ज के प्रारूप पर असर पड़ने की संभावना है।
बेंचमार्क एक आधार दर होता है, जिसके तहत बैंक ग्राहकों को दिए जाने वाले कर्ज पर ब्याज दर तय करता है। रिजर्व बैंक की इस पहल से जुड़े सूत्रों का कहना है कि शीर्ष बैंक की ओर से बेंचमार्क दर की समीक्षा इसलिए की जा रही है, क्योंकि बैंकों की ओर से फ्लोटिंग रेट पर ब्याज दर तय करने में पर्याप्त पारदर्शिता नहीं बरती जा रही है।
आरबीआई ने यह कदम ऐसे समय उठाया है, जब ब्याज दर आसमान छू रही है। यही वजह है कि ज्यादातर बैंक अब फ्लोटिंग रेट पर ब्याज मुहैया कराने की कोशिश में लगे हैं। वाहन लोन की बात करें, तो पहले यह फिक्स्ड दर पर उपलब्ध था, लेकिन अब ज्यादातर बैंक इसे फ्लोटिंग रेट पर मुहैया करा रहे हैं।
सूत्रों के मुताबिक, शीर्ष बैंक पहले ब्याज दर तय करने की विधि पर विचार करेगा, उसके बाद जोखिम प्रबंधन पर ध्यान देगा। एक बैंकर का कहना है कि आमतौर पर लंबी अवधि के लिए लोन फ्लोटिंग दर पर उपलब्ध होता है, जबकि कम समय के लिए फिक्स्ड दर पर कर्ज उपलब्ध होता है।
ज्यादातर बैंक अपने प्रमुख उधरी दर (पीएलआर) को ब्याज दर का आधार बनाते हैं। दूसरी ओर, रिजर्व बैंक की ओर से बैंकों को जोखिम मुक्त बाजार दर अपनाने का निर्देश दिया जाता है। आरबीआई के मुताबिक, पीएलआर जोखिम मुक्त दर नहीं है। सूत्रों का कहना है कि फ्लोटिंग रेट को पूरी तरह से जोखिम मुक्त होना चाहिए। यही वजह है कि रिजर्व बैंक इस बारे में विचार कर रहा है।
सूत्रों के मुताबिक, आरबीआई की ओर से बैंकों को एनडीएस (निगोशिएटेड डीलिंग सिस्टम) को आधार बनाना चाहिए। दरअसल, एनडीएस सरकारी प्रतिभूतियों की खरीद-फरोख्त के लिए आवश्यक ट्रेडिंग प्लेटफॉर्म है। इसके साथ ही दूसरा विकल्प यह भी है कि बैंकों को अपने पीएलआर की समान अंतराल पर समीक्षा करनी चाहिए, ताकि फ्लोटिंग रेट में समय-समय पर जरूरत के मुताबिक बदलाव लाया जा सके।
फिलहाल होता यह है कि जब ब्याज दरों में तेजी से इजाफा होने लगता है, तो तमाम बैंक फ्लोटिंग रेट पर कर्ज देना शुरू करते हैं, लेकिन जब ब्याज दरों में गिरावट आनी शुरू होती है, तो उसमें खास नरमी नहीं लाई जाती।