अमेरिका के पूर्व राष्ट्रपति डोनाल्ड ट्रम्प ने 2 अप्रैल को एक नई टैरिफ नीति की घोषणा की, जिससे भारत की बड़ी ऊर्जा कंपनियां, जैसे रिलायंस इंडस्ट्रीज और नायरा एनर्जी, प्रभावित हो सकती हैं। ये कंपनियां रूस और वेनेजुएला से सस्ता कच्चा तेल खरीदती हैं और अमेरिका को पेट्रोल-डीजल जैसे ईंधन बेचती हैं। लेकिन अब यह रणनीति मुश्किल हो सकती है।
ट्रम्प ने सभी देशों से आयात पर 10% टैरिफ लगाया है और उन देशों पर और ज्यादा शुल्क लगाया है, जिनका अमेरिका के साथ व्यापार घाटा है। भारत पर 26% टैरिफ लगा है, जबकि चीन पर 34%। इससे भारतीय कंपनियों के लिए अमेरिका को सामान बेचना महंगा हो सकता है।
हालांकि, फिलहाल ऊर्जा उत्पादों को इस टैरिफ से बाहर रखा गया है। अमेरिकी पेट्रोलियम एसोसिएशन ने इसके लिए लॉबिंग की, ताकि अमेरिकी बाजार में पेट्रोल-डीजल की कीमतें ज्यादा न बढ़ें। इससे भारत को थोड़ी राहत जरूर मिली है, क्योंकि भारत हर साल अमेरिका को करीब 5 अरब डॉलर (₹41,700 करोड़) के पेट्रोलियम उत्पाद बेचता है। लेकिन यह छूट कब तक जारी रहेगी, इस पर अब भी संशय बना हुआ है।
रिलायंस और नायरा एनर्जी पर क्या असर पड़ेगा?
रिलायंस इंडस्ट्रीज की जामनगर रिफाइनरी दुनिया की सबसे आधुनिक रिफाइनरियों में से एक है। यह रोजाना 1.36 मिलियन बैरल कच्चे तेल को प्रोसेस कर सकती है। यह सस्ते और कम गुणवत्ता वाले तेल (जैसे रूस और वेनेजुएला से आने वाला तेल) को प्रोसेस कर यूरोप और अमेरिका को महंगे दामों पर पेट्रोल-डीजल बेचने में सक्षम है।
2024 में, भारत ने अमेरिका को 67,000 बैरल प्रति दिन (bpd) ईंधन निर्यात किया, जिसमें से 91% हिस्सा रिलायंस का था और 5% नायरा एनर्जी का। 2025 में यह संख्या घटकर 23,000 bpd रह गई, जिसमें भी रिलायंस का 91% हिस्सा था।
अब ट्रम्प प्रशासन ने वेनेजुएला से तेल खरीदने वाले देशों पर 25% अतिरिक्त टैक्स लगा दिया है। साथ ही, उसने धमकी दी है कि अगर रूस ने यूक्रेन के साथ शांति वार्ता आगे नहीं बढ़ाई, तो रूसी तेल खरीदने वाले देशों पर 25-50% अतिरिक्त टैक्स लगाया जाएगा।
अगर ऐसा होता है, तो भारत, चीन और यूरोप के कई देशों को यह फैसला करना पड़ेगा कि वे सस्ता रूसी तेल खरीदें या अमेरिकी बाजार में ईंधन बेचना जारी रखें। अगर भारत ने रूसी तेल खरीदना जारी रखा, तो अमेरिकी बाजार में अपने पेट्रोल-डीजल की बिक्री पर असर पड़ सकता है।
भारत का व्यापार घाटा और ऊर्जा संकट
भारत और अमेरिका के बीच व्यापार संतुलन देखा जाए, तो भारत अमेरिका को ज्यादा सामान बेचता है, जिससे उसे $36 बिलियन (₹3 लाख करोड़) का लाभ होता है। लेकिन जब बात ऊर्जा उत्पादों की आती है, तो भारत का अमेरिका के साथ व्यापार घाटा है।
भारत अमेरिका से ज्यादा कच्चा तेल और प्राकृतिक गैस खरीदता है, जबकि ईंधन का निर्यात कम करता है। 2024 में, भारत ने अमेरिका से 7.86 मिलियन टन कच्चा तेल और 13.7 मिलियन टन पेट्रोलियम उत्पाद खरीदे, जिनकी कुल कीमत $9.3 बिलियन (₹77,600 करोड़) थी।
वहीं, भारत ने अमेरिका को सिर्फ 5.1 मिलियन टन पेट्रोलियम उत्पाद बेचे, जिनकी कुल कीमत $4.4 बिलियन (₹36,700 करोड़) थी। इसके अलावा, भारत ने अमेरिका से $2.6 बिलियन (₹21,700 करोड़) की लिक्विफाइड नेचुरल गैस (LNG), $1 बिलियन (₹8,300 करोड़) का पेट्रोलियम कोक और $4 बिलियन (₹33,400 करोड़) का कोयला भी खरीदा। कुल मिलाकर, भारत का अमेरिका के साथ ऊर्जा व्यापार घाटा $12-13 बिलियन (₹1 लाख करोड़ से ज्यादा) का है।
आगे क्या होगा?
अगर ट्रम्प प्रशासन रूसी और वेनेजुएला के तेल पर सख्त पाबंदियां लगाता है, तो भारतीय कंपनियों के लिए सस्ते कच्चे तेल का स्रोत सीमित हो जाएगा। इससे भारत में तेल की लागत बढ़ सकती है और पेट्रोल-डीजल के दामों पर भी असर पड़ सकता है।
फिलहाल, ऊर्जा उत्पादों को टैरिफ से छूट मिली हुई है, लेकिन यह कब तक जारी रहेगी, इस पर कोई पक्की जानकारी नहीं है। अगर भविष्य में अमेरिका इस छूट को हटा देता है, तो भारतीय ऊर्जा कंपनियों की लागत बढ़ सकती है और उनके मुनाफे पर असर पड़ सकता है। इसलिए, रिलायंस और नायरा एनर्जी को अपने रणनीतिक फैसले बहुत सोच-समझकर लेने होंगे।