भारतीय रिजर्व बैंक (आरबीआई) की छमाही वित्तीय स्थायित्व रिपोर्ट में कहा गया है कि भारत की आर्थिक वृद्धि वैश्विक अर्थव्यवस्था में आने वाले उतार-चढ़ाव से बची हुई है। सोमवार को जारी इस रिपोर्ट में कहा गया है कि मजबूत घरेलू मांग और ठोस वित्तीय प्रणाली के दम पर भारतीय अर्थव्यवस्था मजबूती से आगे बढ़ रही है। मगर इस रिपोर्ट में आगाह किया गया है कि बाहरी कारण कहीं न कहीं जोखिम खड़ा कर सकते हैं।
रिपोर्ट में कहा गया है कि दुनिया में व्यापार के मुद्दे पर बढ़ रहे विवादों और भू-राजनीतिक तनाव बढ़ने से घरेलू अर्थव्यवस्था की चाल प्रभावित हो सकती है। रिपोर्ट के अनुसार दुनिया में बिगड़ते हालात से ऋणों की मांग घट सकती है। हाल में ऋण आवंटन की रफ्तार में खासी कमी दर्ज की गई है।
रिपोर्ट में कहा गया है, ‘इसके अलावा मौजूदा हालात निवेशकों के बीच जोखिम से बचने की प्रवृत्ति को भी बढ़ा सकते हैं और घरेलू शेयर बाजारों में गिरावट का कारण बन सकते हैं। हाल में आई बड़ी गिरावट के बाद भी बाजार फिलहाल अपने ऐतिहासिक ऊंचे स्तरों पर बने हुए हैं।’ रिपोर्ट में कहा गया है कि घरेलू वित्तीय प्रणाली मजबूत बनी हुई है।
आरबीआई की इस रिपोर्ट में कहा गया है कि भारत की अर्थव्यवस्था को ताकत देने वाले कारक अपनी भूमिका मजबूती से निभा रहे हैं और व्यापार आर्थिक हालात की बुनियाद भी ठोस है। रिपोर्ट के अनुसार सोच-समझकर उठाए जा रहे नीतिगत कदमों से भी अर्थव्यवस्था को रफ्तार मिल रही है। मगर रिपोर्ट के अनुसार बाहरी चुनौतियों से इनकार नहीं किया जा सकता। रिपोर्ट में कहा गया है, ‘इन बातों के बावजूद बाहरी हालात और मौसम से संबंधित प्रतिकूल घटनाएं देश की अर्थव्यवस्था की राह में चुनौतियां खड़ी कर सकती हैं।’
रिपोर्ट में बैंकिंग क्षेत्र के बारे में कहा गया है कि अधिसूचित वाणिज्यिक बैकों की परिसंपत्ति गुणवत्ता में लगातार सुधार हो रहा है। रिपोर्ट के अनुसार जीएनपीए अनुपात और एनएपीए अनुपात 31 मार्च 2025 तक कई वर्षों के निचले स्तर क्रमशः 2.3 प्रतिशत और 0.5 प्रतिशत के स्तर पर आ गए हैं।
रिपोर्ट में कहा गया है कि मुद्रास्फीति अनुकूल स्तर पर है और इस बात की पूरी उम्मीद है कि दीर्घ अवधि तक यह आरबीआई के लक्ष्यों के दायरे में ही रहेगी।
वैश्विक अर्थव्यवस्था की दशा एवं दिशा बदलने वाले संरचनात्मक बदलाव पर रिपोर्ट में कहा गया है कि इनसे नीतिगत उपायों करने की राह में चुनौतियां खड़ी हो रही हैं। रिपोर्ट के मुताबिक, ‘दुनिया के केंद्रीय बैंकों और वित्तीय क्षेत्र के नियामकों को सतर्क रहना होगा और अपनी अर्थव्यवस्थाओं एवं वित्तीय तंत्रों की सुरक्षा एवं उनके हितों का ध्यान रखने के लिए समझदारी और तेजी से कदम उठाने होंगे।’
रिपोर्ट में कहा गया है, ‘ऐसे कई संरचनात्मक बदलाव हैं जो वैश्विक अर्थव्यवस्था को नया आकार दे रहे हैं। इन बदलावों में व्यापार के मुद्दे पर दुनिया के देशों में बढ़ रहे मतभेद, नई तकनीक के तेज विकास, जलवायु परिवर्तन और प्रतिकूल भू-राजनीतिक हालात आदि आर्थिक पूर्वानुमानों को मुश्किल और नीतिगत हस्तक्षेपों को चुनौतीपूर्ण बनाते हैं।’ रिपोर्ट के मुताबिक वैश्विक अर्थव्यवस्था में 100 आधार अंक की गिरावट भारतीय अर्थव्यवस्था की वृद्धि दर को 30 आधार अंक तक पीछे धकेल सकती है।