भारतीय रिजर्व बैंक ने बैंकों की नकद आरक्षित अनुपात (सीआरआर) जरूरतों को 100 आधार अंक घटाकर शुद्ध मांग और सावधि देनदारी (एनडीटीएल) का 3 प्रतिशत करने का फैसला किया है। यह फैसला चरणबद्ध तरीके से 6 सितंबर, 4 अक्टूबर, 1 नवंबर और 29 नवंबर, 2025 से शुरू होने वाले पखवाड़ों से प्रभावी होगा।
सीआरआर में कटौती से दिसंबर 2025 तक बैंकिंग व्यवस्था में करीब 2.5 लाख करोड़ रुपये की प्राथमिक नकदी आएगी। ऐतिहासिक रूप से सामान्य समय में सीआरआर 4 प्रतिशत बहाल रखा जाता रहा है। यह राशि बैंकों को केंद्रीय बैंक के पास रखनी पड़ती है और इस पर उन्हें ब्याज नहीं मिलता है। कोविड-19 महामारी के दौरान सीआरआर घटाकर 3 प्रतिशत किया गया था।
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अब माना जा रहा है कि 3 प्रतिशत सीआरआर नया सामान्य स्तर हो सकता है। रिजर्व बैंक के गवर्नर संजय मल्होत्रा ने सीआरआर घटाने की वजह बताते हुए कहा, ‘इससे न सिर्फ नकदी में सुधार होगा, बल्कि इससे बैंकों को फंड की लागत घटाने में भी मदद मिलेगी।’
मल्होत्रा ने नीतिगत फैसले के बाद प्रेस कॉन्फ्रेंस में कहा, ‘पिछले 12-13 साल के आंकड़ों से पता चलता है और कोई भी इसे देख सकता है कि सीआरआर ज्यादातर समय 4 प्रतिशत पर रहा है। कोविड के दौरान हमने इसे 1 प्रतिशत घटाया। अब इस रिजर्व को दरअसल नकदी प्रबंधन के लिए रखा जाता है। ऐसे में अब तक के अनुभव हमें बताते हैं कि यह 4 प्रतिशत रखने की जरूरत नहीं है और शायद 3 प्रतिशत पर्याप्त है।’
उन्होंने कहा, ‘हम नहीं जानते कि भविष्य में क्या होगा। अब ऐसा लग रहा है कि 3 प्रतिशत आरक्षित अनुपात नकदी प्रबंधन के लिए सहज है।’ मल्होत्रा ने कहा कि सीआरआर में कटौती से मौद्रिक नीति का असर भी तेज होगा। उन्होंने जोर दिया कि रिजर्व बैंक नकदी और वित्तीय बाजार की स्थिति की निगरानी जारी रखेगा और जरूरत के मुताबिक सक्रिय रूप से भविष्य में कदम उठाएगा। सीआरआर में कटौती के कारण बैंकों को मिलने वाली नकदी का उपयोग अब राजस्व आय परिसंपत्तियों में किया जा सकेगा, जिससे बैंकों को मार्जिन में सुधार करने में मदद मिलेगी। कुल मिलाकर नीतिगत दर में 100 आधार अंक की कटौती से बैंकों के ब्याज से शुद्ध मुनाफे पर दबाव कम होगा। रिजर्व बैंक के अनुमान के मुताबिक बैंकों का मार्जिन 7 आधार अंक सुधरेगा। उन्होंने कहा, ‘नकदी मुहैया कराने के अलावा इसकी वजह से लागत भी घटेगी और हमारे अनुमान के मुताबिक उनका शुद्ध ब्याज मार्जिन (एनआईएम) कम से कम करीब 7 आधार अंक सुधरेगा। (हम नकदी मुहैया करा रहे हैं) इसलिए नीतिगत फैसले का बेहतर और तेजी से ट्रांसमिशन होगा।’
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आईडीएफसी फर्स्ट बैंक में चीफ इकोनॉमिस्ट गौरा सेनगुप्ता ने कहा, ‘आकलन पूरी तरह से बदल गया है। कोविड के पहले सीआरआर कभी भी 4 प्रतिशत से नीचे नहीं आया। हाल के इतिहास में… संभवतः 1960 के दशक में ऐसा हुआ होगा। यही कारण है कि कोई सीआरआर में कटौती की उम्मीद नहीं कर रहा था। बिना संकट वाले दौर के लिए 4 प्रतिशत को मानक के रूप में देखा गया था। अब सीआरआर 3 प्रतिशत करने का मतलब यह है कि रिजर्व बैंक के विचार में बदलाव आया है कि सामान्य दिनों में कितना पर्याप्त है। अब यह गैर संकट के दौर का सामान्य स्तर लग रहा है।’ उन्होंने कहा, ‘इसका और भी कुछ मतलब है। रिजर्व बैंक नकदी बढ़ाने के लिए ओएमओ का सहारा ले सकता था, लेकिन इसके बजाय उसने सीआरआर में कटौती का विकल्प चुना। यह निर्णय खासकर बैंकों के मार्जिन को ध्यान में रखते हुए टिकाऊ से नकदी बढ़ाने की जरूरत बताता है। ऐसा लगता है कि रिजर्व बैंक बैंकों के लिए मार्जिन का प्रबंध करते हुए नकदी तक उनकी पहुंच आसान करने की कोशिश कर रहा है।’ पिछली बार दिसंबर 2024 की मौद्रिक नीति की घोषणा में रिजर्व बैंक ने सीआरआर 50 आधार अंक घटाकर 4 प्रतिशत किया था।