मंदी से जूझ रहे छोटे और मझोले उद्यमियों को राहत मिल सकती है। देश के बैंकों ने उनकी तरफ मदद का हाथ बढ़ाया है।
इन बैंकों ने संकेत दिया है कि वे इन छोटे उद्यमियों को दिये गए कर्ज पर राहत दे सकते है और देर से किस्त अदा करने पर लगाया गया जुर्माना माफ कर सकते है। बैंकों ने छोटे उद्यमियों के लिए कर्ज की सीमा बढ़ाने के लिए जरूरी मार्जिन भी कम करने का भरोसा दिया है।
भारतीय बैंक संघ और लघु व मध्यम उद्यमी और निर्यात संगठनों के नुमाइंदों के साथ हुई बैठक के बाद यह बात साफ हुई। बैठक के दौरान छोटे उद्योगों के प्रतिनिधियों ने एक स्वर में कर्ज के लिए जरूरी मार्जिन घटाने की मांग रखी। वे चाहते थे कि 100 करोड़ रुपये के स्टॉक के बदले 75 करोड़ का कर्ज देने के बजाए बैंक 85 करोड़ का कर्ज दे।
देर से किस्त अदा करने पर लगाए गए जुर्माने को माफ की मांग भी उठी। मंदी के मौजूदा माहौल में छोटी इकाइयों ने बेचे गए माल या सेवा के बदले भुगतान या तो रोक दिया है या फिर उसमें देरी कर दी है। छोटे उद्यमियों का कहना था कि दुनिया भर में मंदी के हालात के चलते कई देशों से मांग घट गई है।
स्थानीय बाजार में भी मांग पर असर पड़ने से उनके पास तैयार माल का घर लग गया है। भारतीय बैंक संघ के अध्यक्ष और बैंक ऑफ इंडिया के अध्यक्ष व प्रंबध निदेशक टी एस नारायणस्वामी ने बैठक के बाद कहा कि इन दोनों मांगों पर बैंक विचार कर सक ते है, यह बैंकों के विवेक पर निर्भर करता है और इसके लिए नियमों में किसी तरह के बदलाव की जरूरत नहीं है।
छोटे उद्योगों के प्रतिनिधियों ने ब्याज में सब्सिडी की मांग करते हुए कहा कि एक साल तक कर्ज न चुकाने की छूट दी जाए। उन्होंने फंसे हुए कर्जो के बारे में मौजूदा नियमों में ढील की मांग भी रखी। नारायणस्वामी ने कहा इन मांगों को लेकर भारतीय बैंक संघ को सरकार और रिजर्व बैंक से बात करनी पड़ेगी क्योंकि ये वित्तीय मामले है।
बिजली की किल्लत वाले राज्यों में स्थापित औद्योगिक इकाइयों ने जेनरेटर खरीदने के लिए आसान शर्तो पर कर्ज दिए जाने की मांग की है। देश भर में छोटे और मझोले उद्योगों पर करीब डेढ़ लाख करोड़ रुपये का कर्ज है और उन्हें ब्याज पर दो फीसदी की सब्सिडी का मतलब होगा बजट में सालाना तीन हजार रुपये का प्रावधान।
इस साल सरकार ने खेती के कर्जो पर ब्याज अनुदान के रूप में 1600 करोड़ रुपये का प्रावधान कर रखा है।
जहां तक फंसे हुए कर्जो का सवाल है तो लघु उद्यमियों को इस समय कर्ज की किस्त के लिए नब्बे दिन की मोहलत दी जाती है, न देने पर इसे फंसा हुआ कर्ज मान लिया जाता है। छोटे उद्यमियों की मांग है कि इसे बढ़ाकर 180 दिन किया जाए।