मुख्य आर्थिक सलाहकार (सीईए) वी अनंत नागेश्वरन ने कहा है कि भारत के लिए समग्र गरीबी अधिक और प्रत्यक्ष रूप से चिंता का विषय है।
नागेश्वरन ने कहा कि असमानता एक सापेक्ष अवधारणा है, इसके साथ ही आर्थिक रूप से वंचित तबका मध्य वर्ग में शामिल हो रहा है। उन्होंने कहा कि अब रोटी, कपड़ा और मकान से आगे नीतियों पर ध्यान देने की जरूरत है, जिससे विकास का इंजन चालू रह सके।
‘पर्सपेक्टिव्स आन द इनइक्वलिटी डिबेट इन इंडिया’ नाम से लिखे गए एक लेख में सीईए नागेश्वरन ने कहा है कि विकसित अर्थव्यवस्थाओं में ज्यादा असमानता की वजह से विपरीत सामाजिक आर्थिक परिणाम आए हैं और प्रति व्यक्ति आमदनी का बहुत मामूली असर पड़ा है, वहीं इसके विपरीत भारत का अनुभव अलग रहा है और भारत में वृद्धि और असमानता के बीच टकराव कम रहा है।
सीईए ने कहा है कि भारत जैसे विकासशील देश में वृद्धि की क्षमता अधिक है और गरीबी घटाने की संभावनाएं भी अधिक हैं। ऐसे में भारत में अर्थव्यवस्था के बढ़ते आकार पर ध्यान देना अहम है और खासकर निकट भविष्य में ऐसा किया जाना चाहिए।
जीवन स्तर उठाने और गरीबी व असमानता को कम करने के लिए धन के पुनर्वितरण को समस्या बताते हुए नागेश्वरन ने कहा कि एक उचित जीवन स्तर बनाने के लिए औसत आमदनी को कई गुना बढ़ाने की जरूरत है। उन्होंने कहा कि निरंतर उच्च आर्थिक वृद्धि गरीबी उन्मूलन की पूर्व शर्त है।
इसके अलावा सीईए ने मध्य वर्ग के विस्तार पर जोर दिया है। इसे विकासशील अर्थव्यवस्था में मांग के चालक और स्वतः सतत वृद्धि के रूप में देखा जाता है। इससे खपत, बचत और मानव संसाधन के इस्तेमाल के साथ टिकाऊ विकास का एक चक्र बनता है।
सीईए ने कहा है, ‘खराब असमानता जैसे शिक्षा और स्वास्थ्य तक असमान पहुंच सीधे तौर पर विकास की क्षमता को कम करता है। साथ ही यह व्यक्तिगत स्तर पर भी गलत है। इसकी वजह से विकास में बड़ी समस्याएं आती हैं। ’