नवंबर महीने में सेवाओं में गतिविधि दशक में दूसरी सबसे तेज गति से बढ़ी है। ऐसा तृतीयक क्षेत्र के लिए प्रतिबंधों में ढील दिए जाने कारण संभव हुआ है। हालांकि, इससे पिछले महीने के मुकाबले इसमें मामूली गिरावट आई है।
हालांकि, आईएचएस मार्किट पर्चेजिंग मैनेजर्स इंडेक्स (पीएमआई) के सर्वेक्षण से पता चलता है कि अंतरराष्टï्रीय यात्रा पर प्रतिबंधों से विदेशों में मांग कमजोर पड़ी है।
सेवाओं के लिए पीएमआई नवंबर में 58.1 रहा जो अक्टूबर के 58.4 से मामूली नीचे है। अक्टूबर में दर्ज की गई यह उछाल साढ़े दस वर्ष का उच्च स्तर था। पीएमआई की भाषा में, 50 से ऊपर के अंक का मतलब विस्तार होता है जबकि 50 से नीचे का अंक संकुचन को दर्शाता है।
पीएमआई विनिर्माण के साथ इससे चालू वित्त वर्ष की तीसरी तिमाही के पहले दो महीनों में निजी क्षेत्र के जबरदस्त प्रदर्शन का अंदाजा मिलता है। पीएमआई विनिर्माण नवंबर महीने में 10 माह के उच्च स्तर पर पहुंच गया। दूसरी तिमाही में जीडीपी में सालाना आधार पर 8.4 फीसदी की वृद्घि दर्ज की गई थी लेकिन कोविड से पूर्व 2019-20 की समान अवधि की तुलना में यह महज 0.3 फीसदी ऊपर रही।
आईएचएस मार्किट की आर्थिक एसोसिएट निदेशक पॉलियाना डी लीमा ने कहा, ‘विनिर्माण और सेवा क्षेत्र पर संयुक्त रूप से नजर डालें तो परिणाम और भी अधिक उत्साहजनक है और अब तक तीसरी तिमाही में आर्थिक प्रदर्शन के लिहाज से अच्छा रहा है।’ सेवा कंपनियों को नए काम मिलने में लगातार वृद्घि और बाजार की परिस्थितियों में चालू सुधार नजर आया। सेवा प्रदाताओं को मिलने वाले नए काम में मोटे तौर पर अक्टूबर की तर्ज पर ही बढ़त दर्ज की गई।
सर्वेक्षण से जुड़ी एक टिप्पणी में कहा गया कि सफल विपणन, मजबूत होती मांग और उपयुक्त बाजार परिस्थितियों ने बिक्री में वृद्घि को बल दिया।
ईंधन, श्रम, माल, खुदरा और परिवहन की उच्च लागतों की खबर के बीच सेवा कंपनियों के बीच औसत इनपुट कीमतों में नवंबर में और अधिक वृद्घि हुई। मुद्रास्फीति की समग्र दर अक्टूबर की तुलना में तेज हुई और अप्रैल के बाद पूरे दशक में दूसरी बार सबसे मजबूत रही। एक ओर जहां कुछ कंपनियों ने उच्च इनपुट लागतों का भार बिक्री मूल्यों में इजाफा कर अपने ग्राहकों पर डाल दिया वहीं अधिकांश कंपनियों ने शुल्कों को अक्टूबर के स्तर पर ही बनाए रखा। लिहाजा, आउटपुट शुल्क में मामूली दर से इजाफा हुआ जो पिछले महीने से धीमा था।
भले ही नवंबर में कारोबार विश्वास सुधर कर तीन महीने के उच्च स्तर पर पहुंच गया लेकिन सकारात्मक धारणा का समग्र स्तर दीर्घावधि औसत से काफी नीचे रहा। कुछ कंपनियों को उम्मीद है कि मांग में वृद्घि बरकरार रहेगी वहीं कई अन्य कंपनियां इस बात को लेकर चिंतित हैं कि उच्च मुद्रास्फीति से रिकवरी को धक्का लग सकता है। इसकी छाया अगले हफ्ते होने वाली भारतीय रिजर्व बैंक (आबीआई) की मौद्रिक नीति समिति (एमपीसी) की बैठक पर पड़ सकती है।
बार्कलेज इंडिया के मुख्य अर्थशास्त्री राहुल बजोरिया ने कहा, ‘कुल मिलाकर हम अब भी मानते हैं कि नीति निर्माता मौद्रिक नीति सामान्यीकरण को आरंभ करने की तरफ बढऩा जारी रखेंगे। हमें पूरी उम्मीद है कि अगले हफ्ते की एमपीसी की बैठक में रिजर्व बैंक रिवर्स रीपो दर में 20 आधार अंकों की वृद्घि करेगा।’
