केंद्र सरकार मंगलवार को अपनी महत्त्वाकांक्षी उत्पादन से जुड़ी प्रोत्साहन योजना (पीएलआई) की समीक्षा करेगी। इसका मकसद लाभार्थियों के सामने आने वाली कठिनाइयों को दूर करना है। इसके साथ ही उन क्षेत्रों पर ध्यान दिया जाएगा जहां उम्मीद से कम प्रगति देखी जा रही है।
वाणिज्य एवं उद्योग मंत्री पीयूष गोयल इस तरह की पहली समीक्षा बैठक की अध्यक्षता करेंगे और इसमें पीएलआई योजना के क्रियान्वयन से संबंधित सभी मंत्रालयों के अधिकारी भी इस बैठक में हिस्सा लेंगे। बैठक में योजना में शामिल लाभार्थियों या कंपनियां भी शामिल होंगी।
केंद्र सरकार ने पीएलआई योजना के तहत 14 मुख्य क्षेत्रों के लिए 1.97 लाख करोड़ रुपये आवंटित किए हैं। इनमें दूरसंचार, कपड़ा, वाहन, फार्मास्यूटिकल्स व अन्य क्षेत्र शामिल हैं। इसका मकसद न केवल घरेलू विनिर्माण को बढ़ावा देना है बल्कि रोजगार सृजन के साथ-साथ आयात पर अंकुश लगाना और निर्यात को बढ़ावा देना है।
उद्योग एवं आंतरिक व्यापार संवर्धन विभाग (डीपीआईआईटी) के अनुसार, आज तक सरकार ने मोबाइल विनिर्माण, आईटी हार्डवेयर, फार्मा, थोक दवाइयां, चिकित्सा उपकरण, दूरसंचार, खाद्य उत्पादों और ड्रोन जैसे 8 क्षेत्रों को केवल 2,874 करोड़ रुपये का भुगतान किया है।
सरकारी अधिकारियों ने इस महीने की शुरुआत में कहा था कि इस्पात, कपड़ा, बैटरी, व्हाइट गुड्स, सोलर पीवी और वाहन क्षेत्रों में धीमी प्रगति है, जहां अभी प्रोत्साहन दिया जाना बाकी है। अलग-अलग मंत्रालयों द्वारा इस संबंध में विस्तार से विश्लेषण किया जा रहा है।
व्यापार मंत्रालय के पूर्व अधिकारी और थिंक टैंक ग्लोबल ट्रेड रिसर्च इनिशिएटिव (जीटीआरआई) के संस्थापक अजय श्रीवास्तव ने कहा कि सरकार को पीएलआई योजना को अधिक कारगर बनाने के लिए संभावित दुरुपयोग पर नजर रखनी चाहिए। इसके अलावा, योजना के मानदंडों को थोड़ा सरल करना चाहिए ताकि यह सुनिश्चित की जा सके कि इसका दुरुपयोग नहीं हो।
श्रीवास्तव द्वारा लिखित जीटीआरआई रिपोर्ट के अनुसार, ‘विभिन्न क्षेत्रों के लिए पीएलआई मानदंडों में निवेश, उत्पादन, बिक्री, स्थानीयकरण, उपयोग के लिए इनपुट सहित कई चीजें शामिल हैं। विनिर्माता सभी में फिट बैठे यह जरूरी नहीं है। उदाहरण के लिए, किसी एक मामले में सरकार को चालान पर शक हुआ तो उसने कुछ सौ करोड़ रुपये के प्रोत्साहन को ही अस्वीकृत कर दिया। अधिकतर मामलों में, किसी उत्पाद या चालान का सही मूल्य लगाना काफी मुश्किल होता है। ऐसा करने से दावों के निपटान में देरी होती है। दिशानिर्देश कम होने चाहिए और पारदर्शी रहने चाहिए।’
रिपोर्ट में यह भी सुझाया गया है कि पीएलआई योजना को आसान बनाने का सबसे अच्छा तरीका अंतिम उत्पाद को प्रोत्साहित करने के बजाय कल पुर्जों के स्थानीय उत्पादन को प्रोत्साहित करना है। बैंक ऑफ बड़ौदा के मुख्य अर्थशास्त्री मदन सबनवीस ने कहा कि इसका उपयोग कैसे किया जाना है इसकी निगरानी करना कठिन है। सबनवीस ने कहा, ‘क्योंकि अगर किसी कंपनी ने योजना के लिए आवेदन किया होगा, वह विस्तार के लिए गई होगी।
इसलिए यह पता लगाना मुश्किल है कि पीएलआई के कारण कितना हो रहा है और सामान्य स्थिति में क्या हो रहा है।’ योजना एकमुश्त प्रोत्साहन वाली होनी चाहिए और इसे अंतिम तिथि से आगे नहीं बढ़ाया जाना चाहिए। सबनवीस ने कहा, ‘कंपनियों को इस योजना पर निर्भर नहीं रहना चाहिए।’