दक्षिण-पश्चिम मॉनसून अपने अंतिम चरण में प्रवेश कर चुका है। अमूमन चार महीने के चक्र के अंतिम माह सितंबर के पहले सप्ताह में पीछे हटना शुरू हो जाता है लेकिन इस बार मौसम विभाग ने इसकी संभावित वापसी 17 तारीख तक बताई है और यह पूरे सीजन की तरह झमाझम वर्षा के साथ विदाई की तैयारी में दिख रहा है। अत्यधिक बारिश से जहां देश के बड़े हिस्से में फसलों को सीधा फायदा हुआ, वहीं कई राज्यों में बाढ़ और भूस्खलन के कारण खेतों, घरों और आम जनजीवन को व्यापक नुकसान भी हुआ है।
मौसम विभाग के आंकड़े बताते हैं कि केवल सात वर्षों 1986, 1991, 2001, 2004, 2010, 2015 और 2019 को छोड़ दें तो 1980 के बाद से सितंबर में कभी 167.9 मिलीमीटर (मिमी) के दीर्घकालिक औसत से अधिक बारिश नहीं हुई। लेकिन इस वर्ष पूरे सीजन औसत से अधिक वर्षा हुई है। जून में सामान्य से 8.9 प्रतिशत, जुलाई में 4.8 प्रतिशत और अगस्त में 5.2 प्रतिशत अधिक पानी बरसा है। बिहार, असम, त्रिपुरा, मेघालय और मणिपुर जैसे राज्यों के कुछ हिस्सों को छोड़कर बाकी देश में सामान्य या इससे अधिक बरसात हुई है। खास बात है कि यह न केवल बारिश की मात्रा बल्कि इसके फैलाव और समयबद्धता के मामले में भी यह लगभग सभी क्षेत्रों को कवर करने वाले मॉनसून सीजन में से एक बन गया है।
प्रचुर मात्रा में वर्षा से न केवल खरीफ का बुआई रकबा बढ़ा है, बल्कि जलाशय भी लबालब हो गए और मिट्टी में अच्छी नमी बन गई है जो आगामी रबी की बुआई के लिए शुभ संकेत है। सरकार के 22 अगस्त तक के आंकड़ों के मुताबिक मध्य प्रदेश, पूर्वी राजस्थान, उत्तर प्रदेश, छत्तीसगढ़, झारखंड, पश्चिम बंगाल, ओडिशा, हरियाणा, पंजाब, केरल, कर्नाटक, महाराष्ट्र, तेलंगाना, आंध्र प्रदेश, तमिलनाडु और दक्षिणी बिहार के अधिकांश हिस्सों में पिछले नौ वर्षों के औसत के समान या उससे बेहतर रूट-ज़ोन मिट्टी की नमी बन गई है। लेकिन, यह उत्तरी बिहार, असम के कुछ हिस्सों, गुजरात के सौराष्ट्र, राजस्थान के कुछ इलाकों और दक्षिणी ओडिशा में यह औसत से कम है। बीते 29 अगस्त तक खरीफ की फसलें 10.92 करोड़ हेक्टेयर से अधिक में बोई गईं, जो पिछले वर्ष की इसी अवधि के दौरान 32.5 लाख हेक्टेयर अधिक है, जिसमें धान और मक्का सबसे अधिक बोई गई। इस साल धान की बोआई 4.31 करोड़ हेक्टेयर में हुई जो पिछले वर्ष की इस अवधि से 26.6 लाख हेक्टेयर अधिक है। इसी तरह मक्का क्षेत्रफल 10 लाख हेक्टेयर बढ़कर 94 लाख हेक्टेयर तक पहुंच गया।
अच्छी बारिश और मिट्टी में शानदार नमी का लाभ उठाने की हड़बड़ी ने उर्वरक की मांग बढ़ा दी है। यूरिया की बिक्री अप्रैल और जुलाई के बीच 14.2 प्रतिशत बढ़कर पिछले वर्ष की इसी अवधि की तुलना में 1.24 करोड़ टन हो गई, जबकि डायमोनियम फॉस्फेट (डीएपी) की बिक्री 12.9 प्रतिशत गिरकर 25.6 लाख टन हो गई। इसके बदले एनपीकेएस (नाइट्रोजन, फास्फोरस, पोटेशियम, सल्फर) उर्वरकों की बिक्री भी अधिक हुई जो 27.2 प्रतिशत बढ़कर 50 लाख टन दर्ज की गई। आमतौर पर खरीफ यूरिया और एनपीकेएस का मौसम होता है, जबकि रबी में डीएपी अधिक बिकता है। इस बार किसानों को यूरिया और डीएपी दोनों की ही कमी का सामना करना पड़ा जिससे खुदरा बिक्री केंद्रों पर लंबी-लंबी कतारें देखने को मिलीं। रिपोर्ट के अनुसार इस आपाधापी ने वैश्विक स्तर पर यूरिया की कीमतें बढ़ा दी हैं।
सीजन के शुरू में अधिक बारिश खेती के लिए जहां वरदान साबित हुई, तो अगस्त के मध्य से हुई मूसलाधार ने बड़ा नुकसान कर दिया। एक तरफ कीट लग गए, दूसरी ओर, विशेष रूप से पंजाब, हरियाणा, हिमाचल प्रदेश, उत्तराखंड और जम्मू-कश्मीर में बाढ़ की स्थिति बन गई, जिससे फसलें तबाह हो गईं। अकेले पंजाब में अनुमानित 150,000 हेक्टेयर खड़ी फसलें जलमग्न हो गई हैं, जिससे बासमती और गैर-बासमती चावल की पैदावार प्रभावित होने की आशंका है।
अखिल भारतीय किसान सभा (एआईकेएस) की ओर से बुधवार को जारी बयान में कहा गया कि हरियाणा में 12 जिलों के 1,402 गांवों में लगभग 250,000 एकड़ फसलें बरबाद हो गईं, जबकि हिमाचल प्रदेश में 25,000 एकड़ सेब के बागानों को नुकसान हुआ है। इसी तरह जम्मू-कश्मीर में हजारों एकड़ धान डूब गया। कृषि ही नहीं, बाढ़ और भूस्खलन ने पहाड़ी राज्यों में कहर बरपाया है, जहां राजमार्ग, पुल और बड़ी संख्या में घर-मकान बह गए। सैकड़ों मौतें भी हुईं। केंद्रीय गृह मंत्री अमित शाह ने बाढ़ प्रभावित जम्मू-कश्मीर का दौरा किया है। वह प्रभावित राज्यों के साथ नियमित समीक्षा कर रहे हैं। केंद्र ने पंजाब, हिमाचल प्रदेश, उत्तराखंड और जम्मू-कश्मीर में नुकसान का आकलन करने के लिए एक अंतर-मंत्रालयी टीम बनाई है। केंद्रीय कृषि मंत्री शिवराज सिंह चौहान ने फसल हानि की शिकायतों के लिए एक विशेष निगरानी प्रकोष्ठ की स्थापना की है।
कई विशेषज्ञ जहां अत्यधिक वर्षा का कारण जलवायु परिवर्तन को बता रहे हैं, वहीं देश के प्रमुख मॉनसून विशेषज्ञों में से एक और पृथ्वी विज्ञान मंत्रालय के पूर्व सचिव माधवन नायर राजीवन इससे इनकार करते हैं। बिज़नेस स्टैंडर्ड से बातचीत में उन्होंने कहा कि अगस्त और सितंबर में उत्तर भारत और हिमालयी बेल्ट में अतिरिक्त बारिश जलवायु परिवर्तन से जुड़ी नहीं है, बल्कि यह बंगाल की खाड़ी से प्रचुर नमी वाली पूर्वी हवाओं के साथ पश्चिमी विक्षोभ के संपर्क में आने से जुड़ी है।
सामान्य तौर पर अगस्त में एक या दो पश्चिमी विक्षोभ ही आते हैं, लेकिन इस बार इनकी संख्या चार रही। राजीवन ने कहा कि कुछ वैज्ञानिकों का मानना है कि मॉनसून के दौरान पश्चिमी विक्षोभ में वृद्धि वैश्विक तापन के कारण आर्कटिक समुद्री बर्फ के पिघलने से जुड़ी हो सकती है, लेकिन उन्होंने जोर देकर कहा कि इसका अभी तक कोई निर्णायक प्रमाण नहीं है।