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आसान नहीं तेल कंपनियों के जख्म पर मरहम लगाना

Last Updated- December 07, 2022 | 4:41 AM IST

ईंधन की कीमतों में सरकार की ओर से की गई बढ़ोतरी का कोई खास फायदा होता नजर नहीं आ रहा है। भारतीय रिफाइनरियां विदेशी बाजार में जिस कच्चे तेल को खरीदती है, शुक्रवार को उसकी कीमत प्रति बैरल 126.96 डॉलर पाई गई।


जबकि गुरुवार को यह कीमत प्रति बैरल 119.81 डॉलर पर बनी हुई थी। पिछले हफ्ते जब भारत की ओर से खरीदे जाने वाले कच्चे तेल की कीमत प्रति बैरल 125 डॉलर के करीब थी तो सरकार ने अनुमान व्यक्त किया था कि तेल मार्केटिंग कंपनियों को ईंधन की बिक्री से राजस्व में 2,45,000 करोड़ रुपये का नुकसान उठाना पड़ सकता है।

पर अब लगता है कि यह अनुमान और भी बदतर हो सकता है कि तेल की कीमत ने 125 डॉलर के स्तर को भी पार कर लिया है। इंडियन ऑयल के बास्केट की कीमत में प्रति बैरल एक डॉलर की बढ़ोतरी होने से सालाना नुकसान 3,000 करोड़ रुपये तक बढ़ जाता है।

पेट्रोलियम मंत्रालय के एक आला अधिकारी ने बताया, ‘कीमतों में कितनी बढ़ोतरी की जाए इसका निर्धारण यह मान कर किया गया था कि वैश्विक बाजार में कच्चे तेल की कीमतों में गिरावट होगी। पर ऐसा हो नहीं रहा है। ऐसे में लगता है कि कंपनियों को हो रहे घाटे में कोई खास सुधार नहीं आएगा।’ उन्होंने साथ ही कहा, ‘फिलहाल ऐसा नहीं लगता की कीमतें नीचे आएंगी।’

कीमतों में बढ़ोतरी और शुल्क में कटौती से ऑयल मार्केटिंग कंपनियों के घाटे में 42,000 करोड़ रुपये की कमी आने की उम्मीद है। वहीं तेल उत्पादन और मार्केटिंग कंपनियां दोनों ही मिलकर अब भी 65,000 करोड़ रुपये का नुकसान उठाएंगी, जबकि सरकार 94,600 करोड़ रुपये के बॉन्ड्स जारी करेगी। फिर भी अगर इंडियन ऑयल बास्केट प्रति बैरल 125 डॉलर पर बना रहता है तो 43,600 करोड़ रुपये का नुकसान और बनता है, जिसे कौन उठाएगा स्पष्ट नहीं है। 

First Published - June 9, 2008 | 10:27 PM IST

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