अगले 25 वर्षों में ओईसीडी देशों की तुलना में देश की प्रति व्यक्ति आय में लगातार 12.4 फीसदी की वृद्धि करने की आवश्यकता होगी ।
एक नए स्वतंत्र भारत के नीति निर्माताओं ने विकसित दुनिया के साथ तालमेल बिठाने के लिए 1947 में मिश्रित अर्थव्यवस्था का रास्ता अपनाने का निर्णय लिया। उन्होंने सोचा कि भारत समय के साथ बदलावों को अपनाते हुए कम्युनिस्ट यूएसएसआर मॉडल को दोहराने में सक्षम होगा। भारत एक निम्न मध्यम आय वाली अर्थव्यवस्था बन गया है लेकिन अभी भी यह विकास में कम्युनिस्ट चीन से पीछे है।
भारतीय नीति निर्माताओं के पास नया स्पष्ट लक्ष्य है। प्रधान मंत्री नरेंद्र मोदी ने अपने स्वतंत्रता दिवस भाषण में भारत को अगले 25 वर्षों में आजादी का 100वां साल मनाते हुए भारत को एक विकसित अर्थव्यवस्था में बदलने का संकल्प लिया है।
विकसित देशों के साथ तुलना करने से पता चलता है कि अगर भारत उस लक्ष्य को हासिल करना चाहता है तो उसे अभी बहुत आगे जाना है। 2021 में भारत की प्रति व्यक्ति आय (क्रय शक्ति समता के आधार पर अंतरराष्ट्रीय डॉलर में गणना) 7,333.5 डॉलर पर इसी साल में चीन के आधे से भी कम थी। यह आर्थिक सहयोग संगठन और विकसित देशों की प्रति व्यक्ति आय (48,482.1 डॉलर) का सातवां हिस्सा था इसमें विकसित अर्थव्यवस्थाओं का एक समूह शामिल है।
जबकि भारत की प्रति व्यक्ति आय पिछले 25 वर्षों में ओईसीडी देशों की दर से दोगुनी दर से बढ़ी है और अगले 25 वर्षों में इन समूहों के बराबर पहुंचने के लिए इसे लगातार 12.4 फीसदी की दर से बढ़ने की आवश्यकता होगी। मौजूदा स्थिति के हिसाब से उस स्तर तक पहुंचने के लिए भारत को 8.2 फीसदी की दर से बढ़ना होगा।
सामाजिक संकेतकों के मुताबिक भारत को बराबरी से बढ़ने की आवश्यकता होगी। शिशु मृत्यु दर 1996 में 76 प्रति 1,000 से घटकर 2020 में 27 प्रति 1000 हो गई थी लेकिन यह अभी भी ओईसीडी के छह के औसत से चार गुना अधिक थी। वर्तमान गति से अगर भारत में विकास हुआ तो 2047 में शिशु मृत्यु दर केवल 10 प्रति 1,000 पहुंच पाएगी।
ओईसीडी के स्तर तक पहुंचने के लिए पिछले 25 वर्षों की तुलना में जन्म के समय भारत की जीवन प्रत्याशा में तेजी से सुधार करना होगा। मौजूदा गति से यह ओईसीडी अर्थव्यवस्थाओं से कम ही रहेगा। भारत में 1995 और 2020 के बीच पुरुषों और महिलाओं में जीवन प्रत्याशा की दर में नौ साल बढ़े हैं।
तृतीयक शिक्षा में समानता या स्नातक पाठ्यक्रमों में नामांकित छात्रों की संख्या और भी अधिक चुनौतीपूर्ण है। ओईसीडी अर्थव्यवस्थाओं में 77 फीसदी की तुलना में भारत की एक तिहाई से भी कम आबादी ने तृतीयक शिक्षा प्राप्त की थी। ओईसीडी अर्थव्यवस्थाओं की बराबरी करने के लिए भारत को अपने बुनियादी ढांचे में काफी सुधार करने की जरूरत होगी। 2019-20 में भारत में प्रति 100,000 लोगों पर केवल 30 कॉलेज थे और एआईएसएचई के डेटा से पता चलता है कि 2015-16 की तुलना में प्रति कॉलेज नामांकन में गिरावट आई है।
पिछले 25 वर्षों में भारत की महिला श्रम भागीदारी में भी गिरावट आई है जबकि ओईसीडी देशों में इसमें बढ़ोतरी हुई है। भारत को पहले गिरावट को रोकना होगा और फिर इसे ओईसीडी के स्तर पर ले जाना होगा। ओईसीडी की महिला श्रम भागीदारी दर भारत की तुलना में 2.7 गुना है। यह दर 1996 में यह 1.6 गुना थी।
शहरीकरण की दर ओईसीडी देशों की तुलना में तेज रही है, लेकिन शहरी क्षेत्रों में रहने वाले भारतीयों की संख्या अभी भी विकसित अर्थव्यवस्थाओं का एक भाग है।
2021 में ओईसीडी अर्थव्यवस्थाओं में हर पांच में से चार लोग शहरी क्षेत्रों में रहते थे। अगर भारत अपनी इसी गति को बनाए रखता है तो 2047 तक शहरी क्षेत्रों में रहने वाली आबादी आधी से भी कम हो जाएगी। अमेरिका जैसी अर्थव्यवस्थाओं की तुलना में भारतीय ऊर्जा का बारहवां हिस्सा उपयोग करते हैं। इसे, विकसित देशों के स्तर तक पहुंचने के लिए ऊर्जा के बुनियादी ढांचे में काफी निवेश की आवश्यकता होगी।
ओईसीडी देशों में 86 फीसदी की तुलना में 2021 में भारत में 43 फीसदी लोगों ने इंटरनेट का उपयोग किया। सस्ती कीमतों और स्मार्टफोन की आसानी से उपलब्धता के कारण भारतीय इंटरनेट उपयोगकर्ताओं की संख्या तेजी से बढ़ रही है।