भारत और अमेरिका अगले सात-आठ महीनों में ‘पारस्परिक लाभ वाले बहुक्षेत्रीय द्विपक्षीय व्यापार समझौते’ पर पहले चरण की बातचीत के लिए राजी हो गए हैं। इसे अमेरिकी राष्ट्रपति द्वारा भारत को बार-बार ‘टैरिफ का सबसे बड़ा दुरुपयोगकर्ता’ बताए जाने के समाधान के रूप में देखा जा रहा है।
दोनों देश बाजार पहुंच बढ़ाने, टैरिफ कम करने और टैरिफ के अलावा बाधाएं समाप्त करने के साथ-साथ आपूर्ति श्रृंखला के एकीकरण के क्षेत्र में काम करेंगे। यह जानकारी गुरुवार शाम व्हाइट हाउस में प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी और अमेरिकी राष्ट्रपति डॉनल्ड ट्रंप की मुलाकात के बाद जारी संयुक्त वक्तव्य में दी गई।
प्रस्तावित व्यापार समझौता मोदी और ट्रंप द्वारा तय उस नए लक्ष्य के अनुकूल होगा जिसके तहत दोनों देशों का आपसी व्यापार 2030 तक बढ़ाकर 500 अरब डॉलर तक पहुंचाना है। यह घोषणा उस समय सामने आई जब ट्रंप ने कुछ ही दिन पहले अमेरिकी कारोबारी साझेदारों पर प्रतिक्रिया स्वरूप उच्च टैरिफ लगाया था ताकि वस्तु क्षेत्र में देश का लगातार बना हुआ व्यापार घाटा कम किया जा सके तथा व्यापार के अन्य असंतुलित और गैर बराबरी वाले पहलुओं को सुधारा जा सके। माना जा रहा है कि एक अप्रैल के बाद टैरिफ तथा अन्य ब्योरों को लेकर घोषणा की जाएगी।
विदेश सचिव विक्रम मिस्री ने कहा कि मोदी और ट्रंप की द्विपक्षीय वार्ता के दौरान टैरिफ का मुद्दा बहुत ‘सामान्य’ ढंग से उठा। मिस्री ने वॉशिंगटन में संवाददाताओं से कहा, ‘दोनों नेताओं का अपना-अपना नजरिया था लेकिन उल्लेखनीय बात यह है कि हमें इस मसले पर द्विपक्षीय व्यापार समझौते को लेकर चर्चाएं शुरू करने के रूप में आगे की राह मिली है और यह हमारे लिए बहुत अच्छा अवसर हो सकता है कि हम इस बातचीत को आगे बढ़ाएं और एक ऐसे मसले को लेकर किसी नतीजे पर पहुंचें जिसकी कल्पना ट्रंप के पहले कार्यकाल में की गई थी।’
यह पहला मौका नहीं है जब भारत और अमेरिका व्यापार समझौते के लिए प्रयासरत हैं। जनवरी 2021 में समाप्त ट्रंप के पहले कार्यकाल में भी भारत ने अमेरिका के साथ एक सीमित व्यापार समझौते पर चर्चा की थी लेकिन कोई नतीजा नहीं निकल सका था। माना जा रहा था कि समझौता होने पर अमेरिकी डेरी उत्पादों पर आयात शुल्क कम होगा, संचार और प्रौद्योगिकी उत्पाद सस्ते होंगे और चिकित्सा उपकरणों को बड़ा बाजार मिलेगा।
बदले में भारत अमेरिकी जनरलाइज्ड सिस्टम ऑफ प्रिफरेंसेज (जीएसपी) कार्यक्रम के तहत लाभार्थी का दर्जा बहाल कराने या भारतीय निर्यातकों के लिए शून्य शुल्क लाभ हासिल करने की जी तोड़ कोशिश कर रहा था। जहां अफसरशाह आशावादी बने हुए हैं, वहीं व्यापार विशेषज्ञों ने चेतावनी दी है कि अमेरिका के साथ द्विपक्षीय व्यापार समझौता शायद बहुत व्यावहारिक न हो। काउंसिल फॉर सोशल डेवलपमेंट के प्रोफेसर विश्वजीत धर ने कहा कि अन्य देशों के उलट अमेरिका इकलौता देश है जिसके साथ हम गंभीर मतभेदों के चलते मुक्त व्यापार समझौते पर नहीं पहुंच सके।
धर ने कहा, ‘हमें यह सुनिश्चित करना चाहिए कि हमारे मूल हित-कृषि, बौद्धिक संपदा अधिकार, खाद्य पहुंच आदि के साथ कोई समझौता न हो। भारत विनिर्माण क्षेत्र को भी नया स्वरूप दे रहा है। हमने उसे मजबूती देने के लिए एक स्वायत्त टैरिफ नीति अपनाई है। हम जिस व्यापार साझेदार के साथ बातचीत करें उसे भी इस बात का सम्मान करना चाहिए कि भारत को अपने विनिर्माण क्षेत्र के विकास का अधिकार है।’
इसी तरह पूर्व व्यापार अधिकारी और दिल्ली के थिंक टैंक जीटीआरआई के संस्थापक अजय श्रीवास्तव ने कहा कि मोदी और ट्रंप ने शीघ्र व्यापार समझौता करने को लेकर बातचीत की लेकिन इसका ब्योरा आना बाकी है। यह सीमित समझौता भी हो सकता है और परस्पर जवाबी टैरिफ भी, इसकी घोषणा अप्रैल में हो जाएगी।
संयुक्त वक्तव्य में कहा गया कि आगे चलकर अमेरिका से भारत को औद्योगिक वस्तुओं का निर्यात बढ़ाने के लिए कदम उठाए जाएंगे और भारत से अमेरिका के लिए श्रम गहन विनिर्मित वस्तुओं का निर्यात भी। दोनों पक्ष साथ मिलकर कृषि वस्तुओं का निर्यात बढ़ाने के लिए भी काम करेंगे।
फेडरेशन ऑफ इंडियन एक्सपोर्ट ऑर्गनाइजेशंस के महानिदेशक और मुख्य कार्य अधिकारी अजय सहाय ने कहा कि महत्त्वाकांक्षी होने के बावजूद 500 अरब डॉलर का द्विपक्षीय व्यापार लक्ष्य हासिल करने लायक है क्योंकि अमेरिका के साथ भारत विनिर्माण व्यापार सेवाएं बढ़ाने के लिए प्रयासरत है।
सहाय ने कहा, ‘2018 में लघु व्यापार सौदे की बातचीत के बाद से आर्थिक परिदृश्य बहुत बदल चुका है। जहां तक द्विपक्षीय व्यापार समझौते की बात है, हमें उम्मीद है कि हमें मौजूदा और संभावित निर्यात पर भी शुल्क रियायत मिलेगी। इसके अलावा भारतीय कंपनियों की प्रतिस्पर्धी क्षमता भी बढ़ी है।’