अंतरराष्ट्रीय मुद्रा कोष (आईएमएफ) ने आज कहा कि केंद्र और राज्यों को मिलाकर भारत का सामान्य सरकारी ऋण मध्यम अवधि में सकल घरेलू उत्पाद (जीडीपी) के 100 फीसदी से ऊपर पहुंच सकता है। उसने चेतावनी दी कि लंबी अवधि में कर्ज चुकाने में दिक्कत भी हो सकती है क्योंकि जलवायु परिवर्तन से निपटने के लक्ष्य हासिल करने में देश को बहुत निवेश करना होगा। मगर भारत सरकार मानती है कि सरकारी ऋण से जोखिम काफी कम है क्योंकि ज्यादातर कर्ज भारतीय मुद्रा यानी रुपये में ही है।
आईएमएफ ने अपनी वार्षिक आर्टिकल 4 परामर्श रिपोर्ट में कहा, ‘लंबी अवधि का जोखिम बहुत अधिक है क्योंकि भारत को जलवायु परिवर्तन से निपटने के लक्ष्य तक पहूंचने और जलवायु पर दबाव से उबरने की क्षमता बढ़ाने में बहुत निवेश करना होगा। इसके लिए रकम के नए और रियायती स्रोत ढूंढने होंगे तथा निजी क्षेत्र का निवेश भी बढ़ाना होगा।’ यह रिपोर्ट आईएमएफ के सदस्य देशों की सहमति वाली निगरानी प्रक्रिया का हिस्सा है।’
आईएमएफ में भारत के कार्यकारी निदेशक केवी सुबमण्यन ने एक बयान में कहा कि आईएमएफ का यह दावा अतिशयोक्ति जैसा है कि मध्यम अवधि में ऋण जीडीपी के 100 फीसदी से अधिक पहुंचने का खतरा है।
रिपोर्ट में शामिल अपने वक्तव्य में उन्होंने आगे कहा है ‘लंबी अवधि में कर्ज चुकाने की क्षमता पर जोखिम के बारे में उसके बयान पर भी यही कहा जा सकता है। सरकारी कर्ज पर बहुत कम जोखिम है क्योंकि ज्यादातर कर्ज स्थानीय मुद्रा में है। बीते दो दशकों में विश्व अर्थव्यवस्था को लगे झटकों के बावजूद भारत का सरकारी ऋण और जीडीपी का अनुपात 2005-06 के 81 फीसदी से बढ़कर 2021-22 में 84 फीसदी हुआ और 2022-23 में वापस घटकर 81 फीसदी हो गया।’
आईएमएफ ने कहा कि भारतीय रुपये और अमेरिकी डॉलर की विनिमय दर अक्टूबर 2022 अक्टूबर 2023 के बीच बहुत छोटे दायरे में रही। इसका मतलब है कि केंद्रीय बैंक ने बाजार की स्थिति संभालने के लिए केंद्रीय बैंक ने विदेशी मुद्रा के साथ शायद जरूरत से ज्यादा दखल दे दिया। इसके जवाब में भारत सरकार ने कहा आईएमएफ का यह विश्लेषण ठीक नहीं है और उचित मानदंडों पर आधारित नहीं है। उसने कहा कि विश्लेषण के लिए अवधि का चयन मनमाने ढंग से किया गया है।
रिपोर्ट में कहा गया है कि विनिमय दर और विदेशी मुद्रा दखल के आकलन पर नजरिये काफी अलग थे। अधिकारियों ने कहा कि यह दखल विनिमय दर में अतिरिक्त अस्थिरता कम करने के लिए किया गया। रिजर्व बैंक ने इस आकलन से भी तगड़ी असहमति जताई कि बाजार को संभालने के लिए जरूरी स्तर से भी अधिक विदेशी मुद्रा हस्तक्षेप किया गया होगा। रिजर्व बैंक का दृढ़ विश्वास है कि यह नजरिया गलत है क्योंकि इसमें अपनी सहूलियत के हिसाब से आंकड़े लिए गए हैं।
सुब्रमण्यन ने कहा कि विश्लेषण की बढ़ा दी जाए तो रुपये और डॉलर की विनिमय दर में उतार-चढ़ाव निर्धारित मार्जिन से अधिक हो जाता है। इसका मतलब साफ है कि अवधि अपनी मर्जी से चुन ली गई है।
उन्होंने कहा, ‘भारत की विनिमय दर को स्थिर व्यवस्था बताना गलत है और हकीकत से परे है। पहले की ही तरह बाहरी झटकों से निपटने के लिए विनिमय दर लचीली बनी रहेगी।’
एक सरकारी अधिकारी ने नाम नहीं छापने की शर्त पर कहा, ‘आईएमएफ को भारत की घरेलू मजबूरियां ही नहीं पता। भारत की कुल मुद्रास्फीति में आयातित सामान की महंगाई का बहुत असर है और 1.4 अरब लोगों को यह प्रभावित करती है। इसलिए केंद्रीय बैंक को रुपये में उतार-चढ़ाव को सक्रियता के साथ संभालना पड़ता है।’
आईएमएफ ने कहा है कि भारत की आर्थिक वृद्धि पर आगे आने वाले जोखिम संतुलित हैं। मगर उम्मीद से अधिक पूंजीगत व्यय और अधिक रोजगार के मद्देनजर वृद्धि दर का अनुमान 6 फीसदी से बढ़ाकर 6.3 फीसदी कर दिया गया है।
भारत ने आईएमएफ को बताया है कि उसे 7 से 8 फीसदी वृद्धि होने की पूरी उम्मीद है। आईएमएफ ने कहा, ‘निकट भविष्य में वैश्विक वृद्धि दर में भारी गिरावट व्यापार एवं वित्तीय रास्तों से भारत को प्रभावित करेगी। वैश्विक आपूर्ति श्रृंखला में व्यवधान से जिंसों के दाम घटेंगे-बढ़ेंगे, जिससे सरकारी खजाने पर दबाव बढ़ जाएगा। देश में महंगाई के कारण खाद्य वस्तुओं के निर्यात पर प्रतिबंध लगाना पड़ सकता है। अच्छी बात यह है कि उपभोक्ता मांग और निजी निवेश उम्मीद से बेहतर रहने के कारण वृद्धि को बढ़ावा मिलेगा।’