राष्ट्रीय सांख्यिकी कार्यालय (एनएसओ) नए औद्योगिक उत्पादन सूचकांक (आईआईपी) में वस्तु एवं सेवा कर (जीएसटी) के आंकड़ों के इस्तेमाल पर विचार कर रहा है। सांख्यिकी और कार्यक्रम कार्यान्वयन मंत्रालय के सचिव सौरभ गर्ग ने गुरुवार को यह जानकारी दी। नई सीरीज अगले साल फरवरी में जारी होने का प्रस्ताव है।
विश्व बैंक द्वारा आयोजित एक कार्यक्रम ‘ट्रांसफाॅर्मिंग इंडियाज नैशनल स्टैटिस्टिकल सिस्टम’ में बोलते हुए गर्ग ने यह भी उल्लेख किया कि नई आईआईपी सीरीज में सेक्टर के स्तर पर मौसम के हिसाब से समायोजित श्रृंखला भी होगी। इसके अलावा, नई आईआईपी सीरीज चेन पर आधारित होगी, क्योंकि विभिन्न उद्योगों के अधिभार को समायोजित करने के लिए उद्योगों के वार्षिक सर्वे (एएसआई) के आंकड़े उपलब्ध हैं।
साथ ही मंत्रालय उन कारखानों को प्रतिस्थापित करने के लिए भी काम कर रहा है, जिनकी उत्पादन प्रणाली बदल गई है और जो अप्रचलित हो गए हैं या जो लगातार प्रतिक्रिया नहीं दे रहे। गर्ग ने कहा, ‘देश में चल रही आधार वर्ष में बदलाव की प्रक्रिया के तहत हम नई सीरीज में इन नए फीचर्स को शामिल करने पर विचार कर रहे हैं, ताकि देश की आर्थिक गतिविधियों की बेहतर तस्वीर सामने आ सके। आधार वर्ष में बदलाव के तहत हम सभी वृहद संकेतकों के लिए आधार वर्ष को अद्यतन कर रहे हैं।’
इस समय एनएसओ आईआईपी के आधार वर्ष को फिलहाल चल रहे वित्त वर्ष 2012 से संशोधित और अद्यतन करके वित्त वर्ष 2023 करने पर काम कर रहा है। यह उम्मीद की जा रही है कि पहली संशोधित सीरीज फरवरी 2026 में जारी होगी और इसके साथ ही संशोधित सकल घरेलू उत्पाद (जीडीपी) की सीरीज भी जारी होगी। बैंक ऑफ बड़ौदा में मुख्य अर्थशास्त्री मदन सबनवीस ने कहा कि जीएसटी के आंकड़े के इस्तेमाल से असंगठित विनिर्माण क्षेत्र को बेहतर तरीके से शामिल करने में मदद मिलेगी, क्योंकि छोटी और मझोली श्रेणी में आने वाली तमाम इकाइयां जीएसटी के तहत पंजीकृत हैं।
उन्होंने कहा, ‘इसके साथ ही सेक्टर के स्तर पर मौसम के हिसाब से बदलने वाली सीरीज से देश में उत्पादन की बेहतर तस्वीर सामने आएगी। इसकी वजह यह है कि विकासशील अर्थव्यवस्थाओं में तमाम उत्पादन मौसमी होता है और उनके अधिभार को समायोजित करने की जरूरत है। उदाहरण के लिए आइसक्रीम जैसे खाद्य उत्पाद मौसमी प्रकृति के हैं। उनका अधिभार पूरे साल तक सीरीज में रखने से सही तस्वीर सामने नहीं आती है।’राष्ट्रीय सांख्यिकी आयोग के पूर्व कार्यकारी चेयरमैन पीसी मोहनन ने कहा कि चेन पर आधारित आईआईपी से उत्पादन को बेहतर तरीके से जानने में मदद मिलेगी, क्योंकि इसमें उन फैक्टरियों को शामिल किया जा सकेगा, जो एक साल के दौरान बनी हैं या बंद हो गई हैं।
उन्होंने कहा, ‘मौजूदा सीरीज के लिए फैक्टिरयों का सैंपल 2011 में तय किया गया था और खासकर विनिर्माण प्रतिष्ठान कम आयु के होते हैं। वे तेजी से स्थापित होते हैं और जल्द ही बंद हो जाते हैं। ऐसे में इन्हें श्रृंखलाबद्ध करने से बेहतर आंकड़े पाने में मदद मिलेगी।’चेन आधारित व्यवस्था में आईआईपी की तुलना इसके पिछले वर्ष से होती है, न कि नियत आधार वर्ष से। मौजूदा आईआईपी सीरीज में उत्पादन के स्तर का एक आधार वर्ष से तुलना किया जाता है और विभिन्न उद्योगों का अधिभार इस पूरी अवधि के दौरान स्थिर बना हुआ है। वहीं दूसरी ओर चेन आधारित आईआईपी में इस्तेमाल अधिभार को हर साल अपडेट किया जाता है, जिसमें अर्थव्यवस्था की मौजूदा स्थिति का पता चलता है।
अमेरिका जैसी कुछ विकसित अर्थव्यवस्थाओं में चेन आधारित विधि का इस्तेमाल होता है। सबनवीस ने कहा, ‘बहरहाल भारत जैसी विकासशील अर्थव्यवस्थाओं में कृषि और उत्पादन मॉनसून पर निर्भर है। कीमतों और उत्पादन की मात्रा में उतार-चढ़ाव होता रहता है। इसलिए आईआईपी को चेन के हिसाब से करने पर विकृत परिणाम सामने आएंगे।’