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Global Risks Report 2023: भारत में आजीविका की बढ़ी लागत का संकट

वैश्विक जोखिम रिपोर्ट ने आजीविका की लागत और जलवायु परिवर्तन को सबसे बड़े जोखिम के रूप में बताया

Last Updated- January 11, 2023 | 11:08 PM IST
Rising cost of living crisis in India
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विश्व आर्थिक मंच (डब्ल्यूईएफ) की वैश्विक जोखिम रिपोर्ट 2023 के अनुसार डिजिटल असमानता, संसाधनों की भू-राजनीतिक प्रतिस्पर्धा, आजीविका की लागत का संकट, ऋण संकट और प्राकृतिक आपदाएं और मौसम संबंधी चरम घटनाएं लघु और मध्यम अवधि के हिसाब से भारत के लिए सबसे बड़े जोखिम हैं।

रिपोर्ट में कहा गया है कि वैश्विक स्तर पर अल्पावधि (2 वर्ष) में सबसे बड़ा जोखिम आजीविका संकट, प्राकृतिक आपदाओं और मौसम से जुड़ी चरम घटनाओं, भू-आर्थिक टकराव, जलवायु परिवर्तन को कम करने में विफलता और बड़े पैमाने पर पर्यावरणीय क्षति की घटनाएं हैं। लंबी अवधि (10 वर्ष) के सबसे बड़े जोखिमों में जलवायु परिवर्तन को रोकने की विफलता और जलवायु परिवर्तन के साथ अनुकूलन, जैव विविधता की हानि, बड़े पैमाने पर अनैच्छिक प्रवासन और प्राकृतिक संसाधन के संकट शामिल हैं।

रिपोर्ट में कहा गया है, ‘2023 की शुरुआत के साथ दुनिया जोखिमों के एक समूह का सामना कर रही है। इनमें पूरी तरह से नए और पहले से मौजूद दोनों तरह के जोखिम हैं। हमने पुराने जोखिमों की वापसी देखी है जिनमें मुद्रास्फीति, आजीविका की लागत का संकट, व्यापार युद्ध, उभरते बाजारों से पूंजी का निकलना, व्यापक सामाजिक अशांति, भू-राजनीतिक टकराव और परमाणु युद्ध का भूत शामिल है। इनका सामना इस पीढ़ी के उद्योग दिग्गजों और सार्वजनिक नीति निर्माताओं को करना पड़ रहा है।’

रिपोर्ट में कहा गया है पुराने वैश्विक जोखिमों को नई प्रगति से बल मिला है। इसमें गैर टिकाऊ स्तर पर बढ़ता कर्ज, कम वृद्धि का नया दौर, कम वैश्विक निवेश और गैर वैश्वीकरण, दशकों की प्रगति के बाद मानव विकस में गिरावट, दोरहे इस्तेमाल (नागरिक और सैन्य) वाली तकनीकों का तेज और अनियंत्रित विकास और जलवायु परिवर्तन का बढ़ता दबाव शामिल है। रिपोर्ट में कहा है, ‘ये सब मिलकर आने वाले दशक को अद्वितीय, अनिश्चित और अशांत आकार दे रहे हैं।’

रिपोर्ट में कहा गया है कि भू-राजनीतिक प्रतिद्वंद्विता और अपने ही देश का ध्यान रखने के रुख से आर्थिक बाधाएं बढ़ेंगी और इससे भविष्य में लघु और दीर्घकालिक दोनों जोखिम बढ़ेंगे। इसमें आगे कहा गया है कि वैश्विक महामारी और यूरोप में युद्ध ने ऊर्जा, मुद्रास्फीति, खाद्य और सुरक्षा संकट को फिर से सामने ला दिया है।

इसकी वजह से पैदा हुआ जोखिम अगले 2 साल तक प्रभावी रहेगा और इसे मंदी का जोखिम है, कर्ज को लेकर दबाव बढ़ रहा है और आजीविका की लागत में बढ़ोतरी जारी है, भ्रामक व झूठी खबरों से समाज का ध्रुवीकरण हो रहा है, जलवायु परिवर्तन से खतरे पैदा हो रहे हैं। रिपोर्ट में कहा गया है, ‘कोविड-19 और यूक्रेन में युद्ध के आर्थिक प्रभाव के कारण आसमान छूती महंगाई, मौद्रिक नीतियों के तेजी से सामान्यीकरण के बीच कम-विकास और कम-निवेश के युग की शुरुआत हुई है।’

डब्ल्यूईएफ की प्रबंध निदेशक सादिया जाहिदी कहती हैं, ‘जिंसों की बढ़ती कीमतों के कारण हमने महंगाई देखी है। इस दौरान कारोबार को बचाने के लिए अर्थव्यवस्थाओं में अतिरिक्त नकदी डाली गई, जो उचित नहीं था। विकसित अर्थव्यवस्थाओं में मंदी की आशंका के साथ स्थिति विकट दिख रही है।’ रिपोर्ट में कहा गया है कि अल्पावधि से परे देखें तो जलवायु परिवर्तन सबसे बड़ा जोखिम है जिसका सामना वैश्विक अर्थव्यवस्था को करना पड़ेगा। यह ऐसी चुनौती है, जिसके लिए हम सबसे कम तैयार हैं।

रिपोर्ट में कहा गया है, ‘प्रकृति को नुकसान और जलवायु परिवर्तन एक दूसरे से जुड़े हुए हैं। अगर एक तरफ विफलता होती है तो इसका असर दूसरे पर भी पड़ता है। किसी नीतिगत बदलाव या निवेश के बगैर जलवायु परिवर्तन का बुरा असर होगा और जैव विविधता को नुकसान पहुंचेगा। इससे खाद्य सुरक्षा को संकट होगा और प्राकृतिक संसाधनों की खपत से विघटन की प्रक्रिया तेज होगी। इससे खाद्य आपूर्ति और आजीविका को खतरा होगा और सबसे ज्यादा असर जलवायु को लेकर भेदनीय अर्थव्यवस्थाओं पर होगा। इसकी वजह से प्राकृतिक आपदाएं बहुत बढ़ जाएंगी।’

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इसमें कहा गया है कि मौजूदा खाद्य, ईंधन और लागत के संकट ने सामाजिक भेद्यता बढ़ा दी है। समाज पर जटिल संकटों का असर बढ़ा है और यह व्यापक तबके की आजीविका पर असर डाल रहा है। यह उन अर्थव्यवस्थाओं को अस्थिर कर रहा है, जो नाजुक हैं। उन देशों पर आर्थिक असर कम है, जो इसे झेल सकते हैं, लेकिन तमाम कम आय वाले देशों को कई तरह के संकट का सामना करना पड़ रहा है।

ऐसे देशों के संकट में ऋण, जलवायु परिवर्तन, और खाद्य संकट जैसे बहुआयामी संकट शामिल हैं। आपूर्ति के दबाव की वजह से आजीविका की लागत का संकट बढ़ रहा है, जो व्यापक मानवीय त्रासदी है। रिपोर्ट में कहा गया है कि इसका सामना अगले 2 साल के दौरान करना पड़ेगा और आयात पर निर्भर बाजारों पर इसका असर अधिक होगा। इसमें कहा गया है कि सामाजिक अशांति और राजनीतिक अस्थिरता न सिर्फ उभरते बाजारों पर असल डाल रहा है, बल्कि विकसित अर्थव्यवस्थाएं भी इससे प्रभावित हैं।

First Published - January 11, 2023 | 10:55 PM IST

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