प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी और यूरोपीय आयोग (ईयू) की अध्यक्ष उर्सुला वॉन डेर लेयेन की आगामी बैठक में कार्बन सीमा शुल्क और वनों की कटाई के विनियमन के मामले में भारत की चिंताओं पर चर्चा होने की उम्मीद है। हालांकि, इस संगठन ने भारत को कोई रियायत नहीं देने का संकेत दे दिया है।
यूरोपीय संघ (ईयू) का मानना है कि भारत की कार्बन सीमा समायोजन तंत्र (सीबीएएम) को लेकर कुछ चिंताएं ‘गैर वाजिब’ हैं लेकिन वह बातचीत करने के लिए तैयार है। ईयू के एक वरिष्ठ अधिकारी ने बताया, ‘भारत की सीबीएएम और इसके प्रभाव को लेकर कुछ विशिष्ट चिंताएं हैं। हम निश्चित रूप से सीबीएएम से प्रभावित होने वाले दुनियाभर के सभी पक्षों की चिताओं को हल करने के लिए प्रतिबद्ध हैं.. हम भारत के साथ अपने अनुभव और सीबीएएम के संचालन को साझा करने के लिए खासे उत्सुक हैं। हमारा विश्वास है कि कुछ चिंताएं गैर वाजिब भी हो सकती हैं लेकिन हम इनके समाधान के लिए तैयार होंगे।’
इस अधिकारी ने वनों की कटाई के विनियमन पर बताया, ‘हम इन चिंताओं (वनों की कटाई के विनियमन) को हल करेंगे। हम हमारे भारतीय मित्रों और बाजार के ऑपरेटरों को फिर से आश्वस्त कर सकते हैं कि हम उनके उच्च मानदंडों वाले उत्पादों को हमारे वनों की कटाई के विनियमन के अनुपालन के साथ स्वीकार करेंगे।’यूरोपीय आयोग की अध्यक्ष वॉन डेर लेयेन 27 और 28 फरवरी को भारत आएंगी। उनके साथ 21 देशों के ईयू आयुक्त होंगे।
यह उनकी इस तरह की पहली भारत यात्रा होगी। ईयू के अनुसार सीबीएएम आयात की जाने वाली वस्तुओं पर लगाया जाने वाला कार्बन कर है। कहा जा रहा है कि इससे गैर ईयू देशों के स्वच्छ औद्योगिक उत्पादों को प्रोत्साहित किया जाएगा। सीबीएएम अभी संक्रमण के दौर में है और यह 1 जनवरी, 2026 से पूरी तरह लागू हो जाएगा।
यूरोपीय संघ के वनों की कटाई के विनियमन (ईयूडीआर) में कंपनियों को इस ट्रेड ब्लॉक को भरोसा देना होता है कि वे जिन उत्पादों का निर्यात कर रही हैं उन्हें ऐसी जमीन पर तैयार नहीं किया गया है जहां 31 दिसंबर, 2020 के बाद वनों की कटाई हुई हो।
कंपनियों का उत्पाद उस जमीन पर तैयार किया गया है जिस पर वनों की कटाई नहीं की गई है। यह बड़ी व मध्यम कंपनियों पर 30 दिसंबर, 2025 से और सूक्ष्म व लघु उद्यमों पर 30 जून 2026 से लागू होगा। भारत और चीन समेत कई देशों ने सीबीएएम की निंदा की है। उन्होंने कहा कि यह कार्बन उत्सर्जन कम करने की आड़ में कारोबारी बाधा है।
भारत एक साल से अधिक समय से इन मुद्दों पर अपनी चिंताएं उजागर कर रहा है। भारत ने जोर दिया है कि इन विनियमनों को लागू करने से पहले ‘संक्रमण अवधि’ की जरूरत है। भारत को लगता है कि उसके लाभ सीमित होंगे और दोनों पक्षों के व्यापार समझौते के हस्ताक्षर करने के प्रयास के दौरान यह विनियमन असलियत में गैर व्यापारिक बाधा बन जाएगी।
दिल्ली के थिंक टैंक जीटीआरआई के संस्थापक अजय श्रीवास्तव ने कहा कि सीबीएएम और एफटीए लागू होने के बाद ईयू के उत्पाद भारत में शुल्क मुक्त प्रवेश करेंगे लेकिन भारत के स्टील व एल्युमीनियम को ईयू निर्यात किए जाने की स्थिति में सीबीएएम के कारण उच्च कार्बन शुल्क का सामना करना पड़ेगा।
श्रीवास्तव ने बताया, ‘सीबीएएम उत्पादन के तरीकों पर शुल्क लगाता है। यह विश्व व्यापार संगठन के नियमों की अवहेलना है। भारत को एफटीए में इस मुद्दे को उठाना चाहिए और भारत को अनिवार्य रूप से सुरक्षात्मक भाषा पर जोर देना चाहिए।
दरअसल, ईयू अधिकारियों के लिए भारत की चिंताओं को हल करना मुश्किल कार्य है। इसका कारण यह है कि सीबीएएम में एफटीए के साझेदारों सहित किसी भी देश के लिए कोई छूट प्रावधान नहीं है।’ हालांकि ईयू के अधिकारियों ने कहा कि सीबीएएम ‘उचित उपाय’ है।