नरेंद्र मोदी सरकार भले ही ‘मेक इन इंडिया’ पहल के जरिये विनिर्माण (मैन्युफैक्चरिंग) पर जोर दे रही है लेकिन उसका सकारात्मक असर नहीं दिख रहा है। विदेशी निवेशक FDI (प्रत्यक्ष विदेशी निवेश) को लेकर अभी भी सेवा क्षेत्र (सर्विस सेक्टर) को तरजीह दे रहे हैं। घरेलू रेटिंग एजेंसी इंडिया रेटिंग्स एंड रिसर्च ने बुधवार को यह बात कही। उसने यह भी कहा कि जो प्रत्यक्ष विदेशी निवेश आ रहा है, उनमें से ज्यादातर नई परियोजनाओं या नये निवेश के लिये नहीं है।
फिच रेटिंग्स की इकाई ने कहा, ‘सरकार के ‘मेक इन इंडिया’ के जरिये विनिर्माण क्षेत्र में निवेश आकर्षित करने के प्रयासों के बावजूद FDI प्रवाह अभी सेवा क्षेत्र में ज्यादा है।’ उसने कहा, ‘इसका कारण संभवत: यह हो सकता है कि भारत में विनिर्माण क्षेत्र के मुकाबले सेवा क्षेत्र में काम करना ज्यादा आसान है।’
अप्रैल, 2014 से मार्च, 2022 के बीच सेवा क्षेत्र में FDI बढ़कर 153.01 अरब डॉलर हो गया जो अप्रैल, 2000 से मार्च, 2014 तक 80.51 अरब डॉलर था। वहीं विनिर्माण क्षेत्र में FDI में वृद्धि कम रही और इस दौरान यह 94.32 अरब डॉलर रहा जो अप्रैल, 2000 से मार्च, 2014 के बीच 77.11 अरब डॉलर था।
रेटिंग एजेंसी ने कहा कि सरकार ने देश में विभिन्न क्षेत्रों में पूंजी निवेश आकर्षित करने के लिये 2014 में ‘मेक इन इंडिया’ नाम से अपने प्रमुख कार्यक्रम की शुरुआत की थी। लेकिन इसमें विशेष जोर वैश्विक स्तर के विनिर्माण क्षेत्र पर था। इसी को ध्यान में रखकर विनिर्माण से जुड़े 14 क्षेत्रों के लिये उत्पादन आधारित प्रोत्साहन (पीएलआई) योजना लायी गयी।
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उसने कहा कि वर्ष 2000 से 2014 के दौरान भी कुल FDI में सेवा क्षेत्र की हिस्सेदारी सबसे ज्यादा थी। सेवा क्षेत्र में कारोबार, दूरसंचार, बैंक/बीमा, सूचना प्रौद्योगिकी/ बिजनेस आउटसोर्सिंग और होटल/पर्यटन क्षेत्र को तरजीह दी गयी। वहीं विनिर्माण क्षेत्र में FDI वाहन, रसायन, औषधि और खाद्य प्रसंस्करण जैसे क्षेत्रों तक सीमित रहा। रेटिंग एजेंसी के अनुसार, FDI आकर्षित करने में उभरते बाजारों में भारत का प्रदर्शन बेहतर रहा है और उसकी हिस्सेदारी 2020 में बढ़कर 6.65 फीसदी पर पहुंच गयी। हालांकि, कोविड महामारी के कारण यह घटकर 2021 में 2.83 फीसदी रही।